गुरुवार, 12 जून 2014

लवमैरिजः समस्या सामाजिक, समाधान प्रशासनिक !

इक़बाल हिंदुस्तानी

पुरूषप्रधान समाज की ‘तालिबानी सोच’ पता नहीं कब बदलेगी?

प्यार करना अपराध नहीं है यह स्वाभाविक और प्राकृतिक है और दो बालिग युवक युवती का अपनी पंसद से शादी करना संवैधानिक अधिकार है। इसके बावजूद ऐसी घटनायें बढ़ती जा रही हैं जिनमें पहले प्रेमी-प्रमिका को चोरी छिपे इसलिये प्यार करना पड़ता है क्योंकि उनका परिवार और समाज इस तरह के रिश्तों को बिगाड़ और पाप समझता है और फिर प्रेम सम्बंध जब इस मोड़ पर आ जाते हैं जहां दोनों एक साथ जीवन गुजारने की बात तय कर लेते हैं तो घर से यह सोचकर दूर भाग जाते हैं क्योकि गैर सम्प्रदाय और गैर बिरादरी ही नहीं अपनी ही जाति में ही शादी की इच्छा जताने से परिवार वाले इस बात के लिये तैयार नहीं होते कि उनकी मर्जी के बिना कोई रिश्ता तय हो।

अब चूंकि प्यार अंधा होता है सो लड़का लड़की पहले से ही यह मानकर चलते हैं कि उनके परिवार वाले खासतौर पर लड़की के घर वाले किसी कीमत पर उनकी पसंद की शादी करने को तैयार नहीं होंगे और इसके विपरीत अगर लड़का विजातीय या विधर्मी हुआ तो इस बात की आशंका कई गुना बढ़ जाती है कि पहले लड़की पर तरह तरह की बंदिशें लगाई जायेंगी, उत्पीड़न होगा और वह नहीं मानी तो लड़के को डराया धमकाया जायेगा नहीं तो लड़का लड़की में से किसी एक या दोनों की जान भी ली जा सकती है। कई बार ऐसे मामलांे में लड़की की पढ़ाई बीच में ही ख़त्म कराकर घर मंे कैद कर दिया जाता है। उसको एक कमरे में कैदियों की तरह बंद कर दिया जाता है। भूखा प्यासा रखा जाता है और परिवार की बात ना मानने तक सताया जाता है। उसके बाज़ार या किसी समारोह में भी आने जाने पर रोक लगा दी जाती है। उसका मोबाइल वापस लेकर हर तरह के संवाद पर रोक लगा दी जाती है।

अगर लड़की इतने पर भी नहीं मानती तो उसकी शादी आनन फानन में किसी भी सजातीय लड़के से बेमेल होने के बावजूद जल्दबाज़ी में कर दी जाती है। कई बार परिवार प्रेमी से बचाने को लड़की को लेकर कहीं किसी दूसरे शहर या गांव में जा बसता है लेकिन प्यार का रोग ऐसा है कि वह इस सबके बावजूद परवान चढ़ता रहता है। जबकि लड़के के मामले में ऐसा कुछ नहीं होता, ना ही लड़के के इस क़दम को परिवार की नाक कटवाने वाला कदम समझा जाता है। ये हमारे समाज के लिंग के आधार पर पक्षपात और दोगलेपन के दो पैमाने हैं। एक बात और जब भी लड़का लड़की घर से भागकर लवमैरिज करते हैं तो लड़के पर ही यह आरोप लगाया जाता है कि वह लड़की को लेकर भाग गया, जबकि सदा ऐसा नहीं होता।

एक अजीब बात और देखने में आती है कि जब लड़की के लाइफ स्टाइल,गतिविधियों और सुविधाओं में अचानक बदलाव और बढ़ोत्तरी होती है तब तो परिवार कोई नोटिस लेता नहीं और जब लड़की लड़का प्रेम की डोर में बंधने बाद एक हो जाते हैं तब हायतौबा मचती है। इतना ही नहीं जब लड़की प्रेम विवाह करने के इरादे से घर से भाग जाती है तो आईपीसी की धरा 363 और 366 की रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है। अकसर यह देखने में आता है कि लड़की के परिवार का यह दावा झूठा होता है कि उनकी लड़की नाबालिग है और उसको बहला फुसलाकर अपहरण करके ले जाया गया है। क्या यह संभव है कि कोई युवक किसी युवती को अपने साथ बस या रेल से कहीं अपहरण करके ले जाये और वह लड़की चुपचाप उसके साथ कई सप्ताह तक रहती रहे और ना कभी शोर मचाये और ना ही वहां से मौका मिलने पर घर लौटने की कोशिश करे?

इस झूठे आरोप की पोल अकसर तब खुल जाती है जब पुलिस मुखबिर या लड़के के परिवार व मित्रों से जानकारी मिलने पर लड़की को बरामद कर कोर्ट में पेश करती है। पहले तो मांबाप लड़की को घर वापसी के लिये लोकलाज की दुहाई देते हैं लेकिन जब वह नहीं मानती और मजिस्ट्रेट के सामने दो टूक बयान देती है कि वह अपनी मर्जी से घर छोड़कर लड़के साथ गयी थी और उसी के साथ रहना चाहती है। ऐसे में मांबाप यह प्रयास भी करते हैं कि किसी तरह लड़की उनके साथ ना भी जाये तो लड़के के साथ ना जाये और उसको नारी निकेतन भेज दिया जाये जिससे एक बार फिर लड़की को समझाने बुझाने का मौका परिवार को मिल जाये लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। प्यार में अंधे प्रेमी प्रेमिका ज़बरदस्ती अलग किये जाने पर मरना तो मंजूर करते हैं लेकिन साथ नहीं छोड़ना चाहते।

सवाल यह है कि क्या पुलिस की ही ज़िम्मेदारी है कि वह जवानी की दहलीज़ पर पांव रखते ही लड़का लड़की पर नज़र रखे कि उनका चाल चलन पसंद नापसंद और संबंध किससे क्यों चल रहे हैं और वे घर से भाग तो नहीं जायेंगे या भागेंगे तो कहां कहां जा सकते हैं या परिवार का भी यह कर्तव्य बनता है कि वह अपने जवान होते बच्चो पर कड़ी नज़र रखे। हालांकि यह ना तो ठीक है और ना ही पूरी तरह संभव है कि परिवार लड़की को प्यार करने से रोक सके लेकिन यह बात इसलिये कही जा सकती है कि अगर आप तालिबानी सोच से ग्रस्त हैं तो अपनी लड़की को पहले ही सोच के स्तर पर इस बात के लिये तैयार करें कि प्यार करना और घर से भागकर अपनी पसंद से लवमैरिज करना हमें किसी कीमत पर स्वीकार नहीं होगा यह उसके लिये भी भविष्य में अच्छा साबित नहीं होगा और जिस दिन वह ऐसा करेगी परिवार से उसका कोई सम्बंध नहीं रहेगा।

इसके बावजूद भी अगर लड़की यही सब करती है तो उसको उसके हाल पर छोड़ देना चाहिये। यह उसका जीवन और उसका अधिकार भी है पिछले दिनों यूपी के बिजनौर में प्रेम सम्बंधों का एक ऐसा साधारण मामला साम्प्रदायिक रूप अख्तियार करके संवेदनशील बन गया जो पूरे देश में आम बात हो चुकी है। हालांकि इस मामले की आड़ में राजनीतिक रोेटियां सेंकने का असल मकसद था जो किसी हद तक कामयाब भी रहा लेकिन यह भी सच है कि इसके पीछे सम्प्रदाय और बिरादरी की वह तालिबानी सोच भी काम कर रही थी जो अकसर पात्र बदलने पर दूसरी ओर भूमिका निभाती है। ऐसे ही लोग प्यार के दुश्मन बनकर हर साल वेलेनटाइन डे को प्रेमी प्रेमिकाओं को मारते पीटते और डराते धमकाते हैं लेकिन कानून की रक्षा करने वाली पुलिस तब भी तमाशा देखती है और अब भी उसी दकियानूसी समाज का प्रतिनिधित्व करते हुए लड़के को विलेन और लड़की को नाक का सवाल मानकर कार्यवाही करती है।

हम यहां स्पश्ट कर देना चाहते हैं कि हमारा मकसद किसी एक सम्प्रदाय या बिरादरी को इसके लिये जिम्मेदार या दोषी ठहराना नहीं है। चाहे लड़की किसी भी समुदाय या जाति की हो उनका रूख़ कमोबेश लगभग वही रहता है जो इस मामले में देखने को मिला।

आंकड़ों के हिसाब से देखें तो बिजनौर ज़िले की पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि 2011 में कुल 503 लड़कियां गायब हुयीं थीं, जिनमें से पुलिस ने 250 को बरामद भी कर लिय था। इस साल अब तक चार महीनों में ही 527 लड़कियां लापता हो गयीं। इनमें से 417 अकेले अप्रैल में घर छोड़ कर चलीं गयीं। इनमें से 281 को पुलिस ने बरामद भी कर लिया। हो सकता है सरकार बदलने से पुलिस ने लड़कियों के घर से गायब होने के मामले संवेदनशील मानकर एफआईआर आराम से लिखनी शुरू कर दी हों जिससे यह आंकड़ा एकदम से बेहद बढ़ा हुआ नज़र आ रहा हो। इनमें से कुछ ने प्रेमसंबंधों के कारण कोर्ट मैरिज कर ली तो कुछ अपने मांबाप के साथ चलीं गयीं लेकिन एक बड़ी तादाद ऐसी लड़कियों की भी रही जो अपने प्रेमियों के साथ हमेशा के लिये कहीं दूर चलीं गयीं। जनपद में कुल रपट 1402 हुयीं हैं।

जिनमें से लगभग आधी लड़कियों के गुम होने की हैं। हैरत की बात यह है कि अन्य जनपदों में जहां हर महीने पांच से दस लड़कियों की गुमशुदगी दर्ज की जाती है वहीं बिजनौर जनपद में यह आंकड़ा प्रतिदिन तीन से पांच लड़कियां गायब होने का है। ज़िले के एएसपी सिटी संजय सिंह का कहना है कि यह आंकड़ा इतना बड़ा होता जा रहा है कि पुलिस के अन्य काम इस चक्कर में पीछे छूट जाते हैं।

इससे पहले सहारनपुर के डीआईजी एस के माथुर को शासन ने एक फरियादी से यह कहने पर उनके पद से हटा दिया था कि अगर उनकी बहन ऐसे भाग जाती तो वह या तो उसे गोली मार देते या फिर खुद आत्महत्या कर लेते। उनका यह भी कहना था कि जिसकी बहन बेटी घर से भाग जाती है वह आदमी समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहता। ऐसे ही संतकबीरनगर के एसपी र्ध्मेंद्र कुमार को उनके पद से हटाया गया जब उन्होंने यह कहा कि ज़िले की 70 प्रतिशत लड़कियां घर से भाग रहीं हैं, ऐसे में चोर और लुटेरों को पकड़ंू या लड़कियां बरामद करूं? इस बयान को गैर ज़िम्मेदारी का मानते हुए धर्मेंद्र कुमार को भी उनके पद से हटा दिया गया। इससे पहले बिजनौर ज़िले के पुलिस कप्तान दलवीर सिंह यादव को भी ग्राम जंदरपुर के एक ऐसे ही मामले के तूल पकड़ने पर मैनपुरी स्थानांतरित कर दिया गया था। हमारा मानना है कि यह प्रशासनिक कम और सामाजिक समस्या अधिक है।

मुहब्बत के लिये कुछ खास दिल मख़सूस होते हैं,

ये वो नग़मा है जो हर साज़ पे गाया नहीं जाता।



लेखक 30 वर्षों से पत्रकारिता से जुड़े हैं पब्लिक अवर्जवर के संपादक हैं। सम्पर्क09412117990, 013412230111 बांसमंडी नजीबाबाद, ज़िला बिजनौर यूपी
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