अपनी हर एक समस्या के लिए समाज और व्यवस्था को दोष देने की परम्परा का निर्वहन करते हुए मैं एक बार फिर राज्य सरकार को गुटखे पर पाबंदी लगाने के लिए बधाई देने के साथ ही गुजारिश करूंगा कि गुटखे पर पूरी तरह प्रतिबंध क्यों न लगा दिया जाए। इससे घटिया कैमिकल, सुपारी और नष्ट कर दिए जाने योग्य जर्दे का इस्तेमाल कर बनाए गए कैंसर के टूल को समाप्त करने में मदद मिलेगी।
राज्य सरकार ने राजस्थान में गुटखे पर प्रतिबंध कर दिया है, लेकिन एक सुराख (बहुत बड़ा सुराख) खुला छोड़ दिया है। इसके अनुसार राजस्थान में केवल उस गुटखे को प्रतिबंधित किया गया है जिसमें पान मसाला और तम्बाकू पहले से मिला हुआ हो। दुकानदार पान मसाला और तम्बाकू अलग अलग बेच सकते हैं। ऐसे में गुटखे पर प्रतिबंध केवल सांकेतिक बनकर रह जाएगा। राज्य सरकार को लगा कि गुटखा खाने वाले लोगों में कैंसर की समस्या अधिक है। हो सकता है इसके लिए राज्य सरकार ने किसी मेडिकल रिपोर्ट का सहारा लिया हो। तो क्या यह मेडिकल रिपोर्ट यह कह सकती है कि
पान मसाला और गुटखा अलग अलग खरीदने और बाद में उन्हें मिलाकर खाने से कैंसर नहीं होगा?
गुटखे पर प्रतिबंध से पहले भी मैं रजनीगंधा पान मसाला और तुलसी 00 मिलाकर खाता था। आज भी खा रहा हूं। उसकी सप्लाई पर किसी प्रकार की रोक नहीं लगी है। हां, जिन गुटखों की सप्लाई पर रोक लगी है, वे इतने महंगे हो गए हैं कि गुटखा प्रेमी आज की तारीख में रोटी से अधिक गुटखे पर खर्च कर रहे हैं। भले ही रजनीगंधा तुलसी पर रोक नहीं लगी है, लेकिन दूसरे गुटखों पर रोक का असर रजनीगंधा पर हुआ है और दस रुपए एमआरपी का यह सैट (सात रुपए का पान मसाला और तीन रुपए का जर्दा) आज पंद्रह से बीस रुपए में मिल रहा है। मुझे पैसा अधिक देने में कोई दिक्कत नहीं है, मजे की बात तो यह है कि पंडितजी को खिलाने वाले भी एक ढूंढो दस मिलते हैं, लेकिन मुझे पीड़ा है, कालाबाजारी से।
गुटखे की कीमतें बढ़ने का यह दूसरा प्रकरण है। इससे पहले राज्य में पॉलीथिन पर रोक लगाने के साथ ही गुटखे के पाउच पर भी रोक लगा दी गई थी। इसके चलते बाजार में पड़ा गुटखा महंगा बिकने लगा था। दस रुपए का रजनीगंधा उन दिनों बीस रुपए के भाव देख आया था, फिर बारह या तेरह रुपए से नीचा को कभी बिका भी नहीं। मैंने अपने समाचार पत्र के जरिए स्थानीय डीलर और कंपनी के प्रतिनिधि को लाइन में लिया था। कंपनी प्रतिनिधि ने तो दीपावली के बाद कह दिया कि होली से पहले इसके भाव कम करवा देंगे (आप देखिए पान मसाला बनाने वाली कंपनी का प्रतिनिधि यह बात कह रहा है) और स्थानीय वितरक ने कहा कि मांग अधिक है और उसके पास सामान देने के लिए पर्याप्त आदमी नहीं है। आपको यह लॉजिक समझ में नहीं आया होगा। मामला यह है कि रजनीगंधा का स्थानीय वितरक बहुत अधिक “ईमानदार” आदमी है। इसलिए वह अधिक कीमत पर माल नहीं बेचता। बस उसके पास माल होता ही नहीं है। इसका तो अब क्या ईलाज है। ऐसे में रिटेल दुकानदारों को एमआरपी से भी ऊंची कीमत देकर अंडरकटिंग कर रहे लोगों से माल खरीदना पड़ता है।
सरकार और गुटखे के खिलाडि़यों की मिलिभगत से आम जनता का साथ दिखाई दे रहा है। सरकार ने बैन लगा दिया और कंपनियों ने गुटखा बेचना बंद कर दिया। बस अलग अलग ही तो बेचते हैं...
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