एक खबर पढ़कर मन बहुत विचलित हुआ, उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही एक लड़की अपने प्रेमी के साथ फिल्म देख कर घर जा रही थी और चाँद सिरफिरे लोंगो ने उसकी अस्मत को लूटा उअर चलती बस से फेंक दिया। मरणासन्न अवस्था में उसे अस्पताल में भरती कराया गया। शायद वह लड़की बच भी जाय। पर क्या वह सामान्य जीवन जी पायेगी शायद नहीं। ऐसी घटनाये आये दिन घट रही हैं। ऐसी घटनाओ को अंजाम देने वाले जिन्हें नरपिशाच की संज्ञा देना उचित समझूंगा। वे बड़े घर के बिगडैल बेटे ही होंगे। क्या पुलिस उनका पता लगा पाई है। यदि नहीं लगा पाई तो क्यों ? डेल्ही जैसे शहर में सुरक्षा के दृष्टि से जगह जगह सीसी टीवी कैमरे लगाये गए हैं। सफ़ेद रंग की वह बस कही न कही किसी कैमरे में कैद हुयी होगी। पर मैं समझता हूँ की धनकुबेरो के कुपुत्र अपनी मर्दानगी पर कही जाकर जश्न मना रहे होंगे और किसी दिन फिर एक बड़ी घटना को अंजाम देंगे। सर्कार के नुमैन्दे उनको बचाने की जुगत में लगे होंगे। क्योंकि उन्ही धनकुबेरो के पैसे से हमारे जनप्रतिनिधियों के शौक पूरे होते हैं।
देखा जाय तो असली दोषी वे नहीं हैं। बल्कि दोषी वे हैं जो इन्हें बचाने के प्रयास में लगे होंगे। जिस लड़की के साथ यह घटना घटी है। उसके परिवार की हालत क्या होगी इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। उनके मन मष्तिस्क में तूफ़ान उठा होगा उसकी हम सिर्फ कल्पना कर सकते हैं किन्तु उस दर्द को वही महसूस कर सकता है जिसके ऊपर यह बीत रहा होगा।
कुछ लोग यह भी सोच रहे होंगे की एक लड़की को रात को फिल्म देखने जाने की जरूरत ही क्या थी। पर सोचने वाली बात यह है की वह घटना जब घटी तो उस समय रात के दस भी नहीं बजे होंगे। महानगरो के लिए यह समय कोई मायने नहीं रखता है। हम सामाजिक समानता की बात करते हैं। हम यह भी गर्व करते हैं हमारे देश की नारियां चाँद पर पहुँच चुकी है। यह भी कहा जाता है की एक शिक्षित महिला ही परिवार को शिक्षित कर सकती है। कहने का तात्पर्य यही है की बिना महिलाओ के शिक्षित हुए बिना समाज शिक्षित नहीं हो सकता।
पर सोचना यह भी होगा की जब तक इस तरह के नर पिशाच दिल्ली में घुमते रहेंगे तो लोग अपनी लडकियों को दिल्ली भेजकर उच्च शिक्षा दिलाना गवारा करेंगे शायद नहीं। आज पूर्वांचल के कई शहरो से लोग अपनी लड़कियों को महानगरो में भेजते है। वे सोचते हैं की यदि उनकी लड़की पढ़ लिख लेगी तो वह अपने परिवार के साथ देश का नाम भी रोशन करेगी। पर इस घटना सिर्फ उसी एक परिवार को दुःख के भवर में नहीं धकेला है, बल्कि उन सभी परिवारों को भयाक्रांत कर दिया है। जिनके घर की लड़कियां आज महानगरो में जाकर पढ़ रही हैं। हजरों परिवार आज भयभीत होंगे। ऐसी घटनाएँ सिर्फ एक परिवार नहीं बल्कि हजारो लाखो परिवारों के मन में एक अंजना सा भय पैदा कर देती हैं। सवाल यह उठता है की हमारी सर्कार ऐसी घटनाओ को रकने के लिए और दोषियों को सजा दिलाने के लिए कौन सा कदम उठती है या इसे मात्र एक घटना मानकर इसे राजनितिक बयानबाज़ी तक सिमित रख कर भूल जाती है। लड़की एक खिलौना नहीं है जिसके साथ खेलो और तोड़कर फेंक दो। वह किसी की बेटी और बहन है। वह कैसे सुरक्षित रहेगी यह सोचना हम सभी का दायित्व है।
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