मेरे हार्टअटैक के कुछ दिन बाद डॉ. अवचट ने मेरी बीमारी में पढ़ने के लिए बर्नी सीगल नामक अमेरिकन सर्जन द्वारा लिखी हुई प्रसिद्ध पुस्तक लव मेडिसिन ऐंड मिराकल मुझे भिजवाई. शुद्ध इच्छाशक्ति व मानसिक प्रयोगों से कैंसर के उपचार और विलक्षण अनुभवों का इसमें वर्णन है. सीगल कहते हैं कि हमारे मन का शरीर पर प्रचंड प्रभाव पड़ता है. कैंसर के अनेक रोगियों को रोग होने से पहले डिप्रेशन होता है.
दिल्ली और मद्रास में किए गए 40 वर्ष से अधिक उम्र के मध्यवर्गीय पुरुषों पर सर्वेक्षण से पता चला है कि उनमें से प्रत्येक पांच व्यक्ति में से एक को मधुमेह और दस में से एक को हृदयरोग था. संसार के किसी भी देश की जनसंख्या में ये रोग इतने बड़े पैमाने पर नहीं हैं. 1970 के बाद भारतीय शहरों में अनेक सर्वेक्षण हुए, उनसे पता चला कि इन बीमारियों का अनुपात प्रत्येक दशक में बढ़ता ही जा रहा है और लोग कम आयु में हृदयरोग के शिकार हो रहे हैं. अब तो भारतीय पुरुष 30 से 40 वर्ष की आयु में मृत्यु के दरवाजे पर आ खड़ा होता है. लगभग 50 वर्ष पहले अमेरिका में भी हृदयरोग का ऐसा ही दौर आया था, जिसकी कई वजहे थीं. मसलन, दूसरे महायुद्ध के बाद की समृद्धि, जीवन स्तर में अचानक सुधार, खाने-पीने की बहुतायत और यंत्रों के कारण शारीरिक श्रम की आवश्यकता का अभाव. कार के कारण पैदल चलने की आवश्यकता नहीं रही. टीवी के सामने बैठकर मनोरंजन व विज्ञापन देखना कार से सुपर मार्केट जाकर टीवी पर विज्ञापनों में देखी हुई सारी वस्तुएं खरीद लाना और घर आकर फिर से टीवी के सामने बैठकर उन्हें खाते-पीते रहना. इस प्रकार की जीवनशैली के कारण 1950 से 1960 के दशक में अमेरिका में हृदयरोग का और उसके कारण होने वाली मृत्यु का परिणाम प्रचंड रूप से बढ़ गया था, पर बाद के 10-15 वर्षों में अमेरिकन नागरिकों ने इसके कारण खोज निकाले. धूम्रपान, आहार में प्राणिजन्य फैट की बहुतायत (दूध, मक्खन, चीज, अन्डे, मांस), खून में बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल, ऊंचा रक्तचाप व बैठक वाली निष्क्रिय जीवनशैली, प्रमुख कारणों के रूप में उन्हें समझ में आए. बैठकवाली जीवनशैली खतरनाक है. ऑफिस, कुर्सी, ड्रॉइंग रूम, सोफा और बेडरूम, ये खतरनाक स्थान हैं, क्योंकि समृद्ध संसार के ज्यादातर लोग यहीं मरते हैं. ये सब बातें उनकी समझ में आ गईं और वहीं से उन्होंने अपनी जीवनशैली में परिवर्तन लाने के प्रयत्न शुरू कर दिए. अमेरिका में 40-50 वर्ष पूर्व जो हुआ. ठीक वही आज भारत में हो रहा है. एक बड़े समृद्ध वर्ग का भारत में उदय हो गया है. उच्च और मध्यम वर्ग मिलाकर भारत में आज करीब तीस करोड़ लोग हैं. यानी की दूसरा अमेरिका ही भारत में है. यह है भारत का अमेरिका, जो तेजी से अमेरिका की जीवनशैली, खाने-पीने की अधिकता, शारीरिक श्रम से मुक्ति, शराब और धूम्रपान वाली जीवनशैली अपना रहा है. आधुनिक जीवन में कार, टीवी, फ्रिज व होटल आदि को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. इसके कारण बैठक वाली खाऊ-पीऊ जीवनशैली चल पड़ी है. इसके साथ ही बढ़ती हुई महात्वाकांक्षा और करियर की तीव्र स्पर्धा और दौड़-भाग के कारण मानसिक तनाव भी पश्चिम जैसा ही बढ़ता जा रहा है. अत: भारत में हृदयरोग का प्रभाव अचानक बढ़ता दिखाई दे रहा है, लेकिन अभी कुछ कारण अविदित हैं. इस जीवनशैली को अंगीकार करने के बाद गोरों को जिस अनुपात में हृदयरोग होता है, उसकी अपेक्षा भारतीय व्यक्ति को कहीं अधिक अनुपात में होता है. भारत से जाकर लंदन, सिंगापुर, कनाडा या दक्षिण अफ्रीका में बस गए हजारों कुटुम्ब हैं. ये ज्यादातर मध्यम या उच्च वर्ग के हैं. वहां की समृद्धि का उनकी जीवनशैली पर खूब असर हुआ है. समान जीवनशैली वाले इंग्लैंड के गोरे, काले और भारतीय लोगों का तुलनात्मक अध्यन जब कुछ चिकत्सकीय वैज्ञानिकों ने किया, तब पता चला कि वहां के भारतीय वंश के लोगों में मधुमेह और हृदयरोग का अनुपात अन्य वंशियों की तुलना में सर्वाधिक है. भारत के गांवो में रहते हुए भारतीयों को ये रोग नहीं थे. परन्तु समृद्ध पश्चिमी जीवनशैली अपनाते ही गोरे और काले लोगों की अपेक्षा भारतवंशी लोगों को यह रोग ज्यादा परिमाण में होते हैं. ऐसा ही चित्र सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा में भी उभरा और यही चित्र भारतीय शहरों में भी देखा गया. अत: चिकित्सा-क्षेत्र में यह निष्कर्ष निकाला गया कि कुछ आनुवंशिक अथवा जीवशास्त्रीय कारणों से भारतवंशी लोग मधुमेह व हृदयरोग का सबसे अधिक खतरा पाले हुए हैं. भारत में हृदयरोग की लहर का स्पष्टीकरण भारतवंशी लोगों की हृदयरोग के प्रति नैसर्गिक कमजोरी तथा मध्यम वर्ग की नवीन जीवन शैली में है. धन-दौलत या धन्धे की खींचतान के पीछे न भागकर आदिवासी गांवों में स्वास्थ्य सेवा तथा रिसर्च करने वाले, महत्वाकांक्षा एवं तनावरहित जीवन जीने वाले मुझ जैसे समाजसेवी को हृदयरोग क्यों हुआ?
मेरे हार्टअटैक के कुछ दिन बाद डॉ. अवचट ने मेरी बीमारी में पढ़ने के लिए बर्नी सीगल नामक अमेरिकन सर्जन द्वारा लिखी हुई प्रसिद्ध पुस्तक लव मेडिसिन एंड मिराकल मुझे भिजवाई. शुद्ध इच्छाशक्ति व मानसिक प्रयोगों से कैंसर के उपचार विलक्षण अनुभवों का इसमें वर्णन है. सीगल कहते हैं कि हमारे मन का शरीर पर प्रचंड प्रभाव पड़ता है. कैंसर के अनेक रोगियों को रोग होने से पहले डिप्रेशन होता है. डिप्रेशन, चिंता, भय ये शरीर को नकारात्मक संकेत देते हैं. इस कारण शरीर की पेशियों की जीने की इच्छा व शक्ति कम हो जाती है. ऐसे समय में कैंसर तथा अन्य बड़े रोग शरीर को जकड़ लेते हैं, क्योंकि चिन्ताग्रस्त शरीर उन रोगों को बढ़ने देता है. उनसे लड़ने की शरीर में इच्छा ही नहीं बचती. बर्नी सीगल का यह प्रतिवादन मुझे संभव प्रतीत होता है. और हाल ही में एक अनुसंधान की रिपोर्ट पढ़ी. शरीर की प्रमुख रक्तवाहिनियों में निर्माण होने वाले अथरोस्किलरोसिस को नापने की तकनीक विशेषज्ञों ने विकसित की है. इस तकनीक से बर्कले कैलिफोर्निया के विशेषज्ञों ने विविध लोगों की रक्तवाहिनियों का परीक्षण किया तो उन्हें ज्ञात हुआ कि जो खिन्न है, जिसका मन प्रसन्न नहीं है, ऐसी मन: स्थिति वाले लोगों के शरीर की रक्तवाहिनी नलियां अन्दर से संकरी हो गई थीं. तो स्पष्ट है कि खिन्न मन:स्थिति भी हृदय रोग का कारण बनता है.
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