सोमवार, 7 अप्रैल 2014

भगत सिंह का रास्‍ता- इलेक्‍शन नहीं, इंक़लाब का रास्‍ता!

आर.एस.एस. के धार्मिक कट्टरपन्थी फासिस्ट और केजरीवाल जैसे पाखण्‍डी भी भगत सिंह की क्रान्तिकारी छवि को भुनाने की टुच्‍ची कोशिश कर रहे हैं…

गीतिका
लखनऊ। आज देश गहरे आर्थिक-राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक संकट में धँसता जा रहा है, जनता की मेहनत और प्राकृतिक संसाधनों को देशी-विदेशी पूँजीपतियों की अन्‍धी-नंगी लूट के हवाले कर दिया गया है, समाज में भयंकर भ्रातृघाती कलह और रुग्‍ण-बर्बर अपराध फैलते जा रहे हैं और बदलाव की चाहत रखने वाले नौजवान विकल्‍प की तलाश में हैं। ऐसे में भगत सिंह के विचार आज पहले से कहीं ज़्यादा प्रासंगिक हो गये हैं। आने वाले आम चुनाव एक बार फिर इस सच्‍चाई की ओर इशारा कर रहे हैं कि 65 वर्ष तक तरह-तरह के चुनावी मदारियों के भ्रम में पड़े रहने के बजाय अगर हमने इंक़लाब की राह चुनी होती तो भगत सिंह के सपनों का भारत आज एक हक़ीक़त होता।
भगत सिंह की क्रान्तिकारी विरासत और आज की चुनौतियाँ” विषय पर 23 मार्च की शाम अनुराग पुस्‍तकालय,लखनऊ में नौजवान भारत सभा की ओर से आयोजित बातचीत में शामिल छात्रों-नौजवानों ने कहा कि आज हमें नये सिरे से भगत सिंह के विचारों को व्‍यापक जनता के बीच लेकर जाना होगा और एक आमूलगामी क्रान्ति की लम्‍बी तैयारी के काम में लगना होगा। हमें शहर-शहर, गाँव-गाँव में मज़दूरों, ग़रीब किसानों, छात्रों-नौजवानों के जुझारू क्रान्तिकारी संगठन खड़े करने होंगे और एक नयी क्रान्तिकारी पार्टी खड़ी करने की ओर बढ़ना होगा जिसका खाका भगत सिंह ने ‘क्रान्तिकारी कार्यक्रम का मसविदा‘ में पेश किया था।
वक्‍ताओं ने कहा कि भगत सिंह का लक्ष्य सिर्फ साम्राज्यवाद और सामन्तवाद से मुक्ति नहीं था। राष्ट्रीय मुक्ति के संघर्ष को वह समाजवादी क्रान्ति की दिशा में यात्रा का एक मुकाम मानते थे और इसके लिए मज़दूरों-किसानों की लामबन्दी को सर्वोपरि महत्त्व देते थे। इन सच्चाइयों से देश की व्यापक जनता को, विशेषकर उन करोड़ों जागरूक, विद्रोही, सम्भावना-सम्पन्न युवाओं को परिचित कराना ज़रूरी है जिनके कन्धों पर भविष्य-निर्माण की कठिन ऐतिहासिक ज़ि‍म्‍मेदारी है। भगत सिंह और उनके साथियों के वैचारिक पक्ष के बारे में जनता में व्‍याप्‍त नाजानकारी का लाभ उठाकर ही भाजपा और आर.एस.एस. के धार्मिक कट्टरपन्थी फासिस्ट भी उन्हें अपने नायक के रूप में प्रस्तुत करने की कुटिल कोशिशें करते रहते हैं। अब केजरीवाल जैसे पाखण्‍डी भी भगत सिंह की क्रान्तिकारी छवि को भुनाने की टुच्‍ची कोशिश कर रहे हैं।
भगत सिंह ने अपने समय के राष्ट्रीय आन्दोलन और भविष्य की सम्भावनाओं का जो आकलन किया था, कांग्रेसी नेतृत्व का उन्होंने जो वर्ग-विश्लेषण किया था, देश की मेहनतकश जनता, छात्रों-युवाओं और सहयोद्धा क्रान्तिकारियों के सामने क्रान्ति की तैयारी और मार्ग की उन्होंने जो नयी परियोजना प्रस्तुत की थी, उसका आज के संकटपूर्ण समय में बहुत अधिक महत्त्व है। आज पूरा देश देशी-विदेशी पूँजी की बेलगाम लूट और निरंकुश वर्चस्व तले रौंदा जा रहा है, श्रम और पूँजी के बीच ध्रुवीकरण ज़्यादा से ज़्यादा तीखा होता जा रहा है, सभी संसदीय पार्टियों और नकली वामपन्थियों का चेहरा और पूरी सत्ता का चरित्र एकदम नंगा हो चुका है और भगत सिंह की चेतावनी एकदम सही साबित हो चुकी है। बेशक भगत सिंह के समय के भारत से आज का भारत काफी बदल चुका है। लेकिन भगत सिंह के दिखाये रास्‍ते की दिशा आज भी सही है। एच.एस.आर.ए. ने जनता को जगाने और अपने उद्देश्यों के प्रचार के लिए ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध कुछ आतंक की कार्रवाइयों को अंजाम दिया, लेकिन क्रान्तियों और जन-संघर्षों के इतिहास के अध्‍ययन से भगत सिंह और उनके साथी इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि क्रान्ति अपनी निर्णायक मंज़िल में अनिवार्यतः सशस्त्र और हिंसात्मक होगी, लेकिन मज़दूरों-किसानों-छात्रों-युवाओं के खुले जन-संगठन बनाये बिना और व्यापक जनान्दोलनों के बिना क्रान्ति की तैयारियों को निर्णायक मंज़िल तक पहुँचाया ही नहीं जा सकता।
भगत सिंह के विचारों की रौशनी में आज की दुनिया और संघर्ष के नये तौर-तरीकों को जानने-समझने के लिए नियमित सामूहिक अध्‍ययन और चर्चा का सिलसिला चलाने और इन विचारों को लेकर लोगों के बीच जाने के निर्णय के साथ बैठक समाप्‍त हुई।

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