लखनऊ 26 मार्च 2014। मुजफ्फरनगर दंगे पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुये रिहाई मंच ने कहा है कि अदालत द्वारा यह कह देने के बाद कि प्रदेश सरकार दंगा रोकने में नाकाम रही, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व सपा प्रमुख मुलायम सिंह पूरे सूबे की इंसाफ पसन्द अवाम से माफी माँगें।
सामाजिक संगठन अवामी कौंसिल के महासचिव व अधिवक्ता असद हयात ने कहा कि मुजफ्फरनगर दंगे की सीबीआई जाँच और पीड़ितों को मुआवजा दिलाने संबन्धी जनहित याचिकाओं पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय की इस टिप्पणी से यह प्रमाणित हो गया है कि दंगे को रोकने में राज्य सरकार पूरी तरह नाकाम रही और उसकी इस नाकामी ने अपराधियों का मनोबल बढ़ाया जिसके कारण भारी जनधन की हानि हुयी। सरकार द्वारा पीड़ितों को पांच लाख रुपया देते हुये यह शर्त लगाई गई थी कि यदि वह अपने गांव वापिस जायेंगे तो यह राशि उनसे वसूल ली जायेगी। इस शर्त को सर्वोच्च न्यायालय ने गलत करार दिया है।
जनहित याचिका नंबर 170 सन् 2013 के सह याचिकाकर्ता असद हयात ने कहा कि न्यायालय द्वारा सीबीआई जाँच और एसआईटी के गठन से फिलहाल इंकार किया गया है, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि न्यायालय ने वर्तमान जाँच एजेंसी एसआईसी को निरंकुश बना दिया है। जाँच के लिये लंबित प्रत्येक मामले में निष्पक्ष विवेचना करने का दायित्व एसआईसी का है और यदि वह ऐसा नहीं करेगी तो ऐसे प्रत्येक मामले को निष्पक्ष अग्रविवेचना कराए जाने के लिये पुनः न्यायालय के समक्ष लाया जायेगा। न्यायालय की यह टिप्पणी की प्रत्येक आरोपी को गिरफ्तार किया जाये, भले ही उसका सामाजिक और आर्थिक स्तर कितना ही बड़ा क्यों न हो, से स्पष्ट है कि अधिकारियों द्वारा ऐसे लोगों के गिरफ्तार किए जाने में पक्षपातपूर्ण ढंग से हीला हवाली की जा रही थी और दंगे की वास्तविक षडयतंत्रकारियों को इसांफ की इस लड़ाई में हम सलाखों के पीछे पहुंचाकर दम लेंगे।
असद हयात ने कहा कि मुआवजे के संबन्ध में सत्रह सौ राशन कार्ड धारकों और दंगा प्रभावित लगभग चालीस गांव के पीड़ितों के सम्बन्ध में कोई आदेश न्यायालय द्वारा पारित न होने पर मायूसी का इजहार किया। उन्होंने कहा कि यह संभवतः न्यायालय द्वारा किसी चूक से विचारित होने से रह गया है इसलिये कानूनविदों से मशवरा किया जा रहा है और न्यायालय के समक्ष पुनः रिव्यू याचिका डालने के लिये विचार किया जा रहा है।
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