शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

काँग्रेस का हाथ पूँजीपतियों के साथ

शेषनारायण सिंह
नई दिल्ली, २6 मार्च। काँग्रेस पार्टी ने पूरे जोशो खरोश के साथ अपना चुनाव घोषणापत्र जारी कर दिया। हर बार की तरह इस बार भी कुछ वैसे ही वायदे किये गये जिनको पूरा कर पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है। लेकिन इस बार काँग्रेस के घोषणा पत्र में वचन दिया गया है कि देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से इकोनॉमिक फ्रीडम के आर्थिक दर्शन की बुनियाद पर डाल दिया जायेगा। काँग्रेस पार्टी ने जो घोषणा पत्र जारी किया है उसके आधार पर अगर अर्थव्यवस्था का प्रबंधन किया गया तो आर्थिक गतिविधियों पर जो थोड़ा बहुत सार्वजनिक कंट्रोल बना हुआ है वह भी पूरी तरह से समाप्त हो जायेगा।
इकोनॉमिक फ्रीडम की सर्वमान्य परिभाषा में बताया गया है कि यह किसी भी देश में आर्थिक सम्पन्नता हासिल करने का वह तरीका है जिसमें किसी सरकार या किसी आर्थिक ऑथोरिटी को कोई हस्तक्षेप न हो। व्यक्तियों को अपनी निजी संपत्ति, मानव संसाधन और श्रम का संरक्षण करने की असीमित आज़ादी होती है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में इकोनॉमिक फ्रीडम के तत्व होते हैं। अगर उसमें सविल लिबर्टी के तत्व डाल दिए जाएँ तो वह पूरी तरह से स्वतंत्र हो जायेंगे और इकोनॉमिक फ्रीडम की श्रेणी में आ जायेंगे। ध्यान में रखना चाहिए कि भाजपा के नेतानरेंद्र मोदी भी इस देश में इकोनॉमिक फ्रीडम की अवधारणा के समर्थक हैं और उनको इस क्षेत्र में दिया जाने वाला देश सर्वोच्च पुरस्कार भी मिल चुका है। दिलचस्प बात यह है कि यह पुरस्कार उनको राजीव गांधी फाउन्डेशन की ओर से दिया गया था जिसकी अध्यक्ष काँग्रेस की नेता सोनिया गांधी हैं। जानकार बताते हैं कि अर्थव्यवस्था के दार्शनिक आधार के बारे में काँग्रेस और भाजपा दोनों ही मनमोहन सिंह के आर्थिक चिंतन को सही मानते हैं।
 काँग्रेस के घोषणा पत्र में वे सारी बातें समाहित कर ली गयी हैं जो अगर लागू हो गयीं तो इस देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से आर्थिक मनमानी के निजाम के अधीन हो जायेगी। काँग्रेस के घोषणा पत्र को मोटे तौर पर पंद्रह सूत्रों में पिरोया गया है। इसमें स्वास्थ्य, पेंशन, आवास का अधिकार, सम्मान का अधिकार, उद्यमित्ता का अधिकार आदि को शामिल किया गया है। महिलाओं के अधिकार, सुरक्षा आदि से सम्बंधित जो पारंपरिक बातें हैं वह महत्वपूर्ण हैं लेकिन जो बातें देश की अर्थव्यवस्था को निरंकुश पूंजी के हाथ में देने वाली हैं उनका अब तक शासक वर्गों की किसी राजनीतिक पार्टी ने विरोध नहीं किया है। विकास दर और अन्य आंकड़ों के बीच में जो बातें देश की अर्थव्यवस्था को आम आदमी की पहुंच के बाहर ले जाने वाली हैं उनको बहुत ही करीने से बीच में डाल दिया गया है काँग्रेस के घोषणा पत्र में लिखा है कि “हम एक ऐसी खुली हुई और कम्पटीशन वाली अर्थव्यवस्था को प्रमोट करेंगे जिसमें घरेलू और दुनिया भर के पूंजीपति और आम आदमी एक दूसरे के खिलाफ प्रतिस्पर्धा कर सकेगें।” इसका भावार्थ यह हुआ कि देश की अर्थव्यवस्था को बिलकुल स्वतंत्र छोड़ दिया जायेगा जिसमें उद्योग लगाने के लिए बैंक से क़र्ज़ लेकर आया हुआ कुशल और प्रशिक्षित इंजीनियर, देश का सबसे धनी उद्योगपति और अमरीका या यूरोप की बड़ी से बड़ी कंपनी समान अवसर के साथ एक दूसरे का मुकाबला कर सकेंगे। सरकार की तरफ से किसी को कोई विशेष सुविधा या अवसर नहीं दिया जायेगा। आसानी से समझा जा सकता है कि यह प्रबंधन क्या गुल खिलायेगा! कृषि क्षेत्र में भी भारी निवेश की बात की गयी है लेकिन खेती से होने वाली पैदावार को भी कारपोरेट तरीके से करने पर जोर दिया जायेगा और धीरे धीरे देश कारपोरेट खेती की तरफ अग्रसर होगा। काँग्रेस का तर्क है कि ऐसा करने से खेती से मिलने वाली पैदावार बढ़ेगी। लेकिन इकोनॉमिक फ्रीडम का लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा क्योंकि किसान के हाथों में जो अभी खेती के उत्पादन के साधन का नियंत्रण है वह कारपोरेट हाथों में चला जायेगा क्योंकि किसान इस देश के बड़े औद्योगिक घरानों और दुनिया भर के कृषि धन्नासेठों से मुकाबला नहीं कर सकेगा।
बड़े औद्योगिक घरानों को अभी सबसे ज़्यादा परेशानी मजदूरों को उचित मजदूरी देने में होती है और कर्मचारियों की तनखाह एक बड़ा बोझ होता है। कई बार तो ऐसा होता है कि कारखाने में कोई काम नहीं होता और कर्मचारियों को तनखाह देना पड़ता है। इसको दुरुस्त करने के लिए देश और विदेश के उद्योगपति पिछले कई वर्षों से कोशिश कर रहे हैं। उसको श्रम कानून में सुधार का नाम दिया जाता रहा है। काँग्रेस के घोषणा पत्र में इस बार इस समस्या का हल भी निकाल दिया गया है। घोषणा पत्र में लिखा है कि ऐसी लचीली श्रमनीति बनाई जिससे औद्योगिक उत्पादान की प्रतिस्पर्धा बनी रहे और भारतीय उत्पादन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कम्पटीशन बना रहे। इसका अर्थ यह ऐसे श्रम कानून बनाए जायेंगे जिसके बल पर उद्योगपति जब चाहे कर्मचारियों और मजदूरों को काम पर रखें या जब चाहें अलग कर दें। काँग्रेस के घोषणापत्र में बाकी बातें वही हैं जो काँग्रेस पिछले दस वर्षों से करती रही है। लेकिन अगर काँग्रेस सत्ता में आयी तो उनके घोषणा पत्र में ऐसी व्यवस्था है कि साधारण पूंजीवादी निजाम से आगे बढ़ कर इकोनॉमिक फ्रीडम वाला निजाम कायम कर दिया जायेगा।

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