शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

आप स्मार्ट हो रहे हैं या नहीं?



Posted: 26 Mar 2014 07:23 AM PDT

ये लीजिए. एक और. पहले फ़िलिप्स लेकर आया था, अब एलजी का बल्ब भी स्मार्ट हो गया. रोज ही नई नई खबरें आती हैं कि आज ये स्मार्ट हो गया, कल वो स्मार्ट हो गया. बुद्धू बक्सा – यानी टीवी से लेकर आपका दुपहिया-चौपहिया वाहन और आपका टूथब्रश सब तो स्मार्ट होते जा रहे हैं. यहाँ तक कि आपका आधुनिक कपड़े धोने का पाउडर भी स्मार्ट हो गया है क्योंकि उसमें भी एक्टिव स्मार्ट कण होते हैं जो धूल से प्यार करते हैं और उन्हें प्यार से खा कर धो डालते हैं.

ठीक है, दुनिया स्मार्ट होती जा रही है. यहाँ दुनिया का अर्थ दुनिया का आदमी न निकालें. कृपया. गॅजेट्स और उपकरण स्मार्ट होते जा रहे हैं, मगर लगता नहीं कि आदमी की स्मार्टनेस (यदि कोई उपलब्ध हो) खोती जा रही है? उसका स्मार्टनेस डाउन होता जा रहा है.

मेरी बात से इत्तेफ़ाक नहीं हो तो जरा अपने हाथ के मोबाइल फ़ोन पर निगाह मार लें. आपके पास भी मोबाइल फ़ोन है. स्मार्ट वाला. ठीक है. अब बिना संपर्क सूची देखे, अपने किसी मित्र को सीधे कोई नंबर डायल कर दिखा दें जरा? हो गई न आपकी स्मार्टनेस हवा? लैंडलाइन के जमाने में या जब इनमें मेमोरी नहीं होती थी तो आपको अपने दस पंद्रह मित्रों रिश्तेदारों के फ़ोन नंबर जुबानी याद रहते थे. नहीं? और अब? अब अपनी बीवी या अपने पति का मोबाइल नंबर भी आपको शायद याद न हो, क्योंकि आपने अपने स्मार्टफ़ोन में उसका प्रोफ़ाइल बना कर उसमें उसका बढ़िया सा फ़ोटो डाला हुआ है, और नंबर डायल करने के लिए हर बार उस पर प्यार भरी उँगली फिराते हैं. है न नंबर याद रखने का सबसे ईडियाटिक तरीका? और, भले ही आप अपने हाथों में पचास-हजारी स्मार्टफ़ोन की झलक दिखा कर अपने स्मार्टनेस को दिखाने की लाख कोशिश करें, उसे तो तब हवा होनी ही है, जब आपसे कोई उसमें बाई डिफ़ॉल्ट इंस्टाल किसी ऐप्प की फंक्शनलिटी बारे में पूछ लेगा, जिसके बारे में आपको हवा ही नहीं होती है!

धर्म और संप्रदाय का मामला तो और भी गज़ब का है. आदमी अपने तथा-कथित बेहद स्मार्ट आई-मोबाइल या आई-कंप्यूटर (इंटरनेट इनेबल्ड ईडियट,) पर बैठ कर पाँच-दस हजार साल पुरानी कही गई अर्थ-अनर्थ की बातों में उलझा बैठा रहता है और इंटरनेट के फ़ेसबुकी पन्नों पर घोर मारकाट मचाता रहता है. आज का आधुनिक युद्ध का मैदान बन गया है यह. की-बोर्ड से युद्ध. असली युद्ध से कई गुना मजा देने वाला और कभी खत्म न होने वाला. और मजे की बात यह कि यहाँ हर कोई अपना ज्ञान बघारता है, और उसके चक्कर में उसे यह पता नहीं होता कि दरअसल वो अपनी स्मार्टनेस की बखिया खुद उधेड़ रहा होता है.

नए नए स्मार्ट उपकरण नित्य बन रहे हैं, फिर भी, मेरे विचार में दुनिया में ऐसी कोई खोज नहीं हो सकेगी, कोई ऐसा मददगार उपकरण या गॅजेट इस ब्रह्मांड के समयकाल में सर्वकालिक रूप से कभी भी नहीं बनाया जा सकेगा जो किसी स्त्री को –

* किसी पार्टी के लिए गारंटीड आधे घंटे से भी कम समय में तैयार करवा दे,
* किसी खास रंग के परिधान की खरीदी पंद्रह मिनट के भीतर करवा दे,
जिन स्त्रीवादियों को यह लग रहा होगा कि यह तो सरासर स्त्री जगत पर हमला है और इन बातों से पुरुषत्व अहंकार झलक रहा है तो, जरा सब्र करें. अगली पंक्ति पढ़ें - काश ऐसी कोई खोज हो जाए जिसके जरिए पुरुष सचमुच का स्मार्ट हो जाए! स्त्री थोड़ी बहुत स्मार्ट तो खैर, होती है, एंड मैन, बेसिकली इज़ ए पिग इन डिस्गाइज़!

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