सोमवार, 18 अगस्त 2014

संविधान और कानून के राज को इतिहास बना रहे हैं प्रधानसेवक

अब जनता के खिलाफ खुल्ला एकाधिकारवादी कारपोरेट युद्ध मेक इन इंडिया, लालकिले की प्राचीर से एफडीआई राजका आवाहन, पीपीपी सुनामी, योजना आयोग खारिज और सत्ता का केंद्रीयकरण
पलाश विश्वास 

कम मेक इन इंडिया

मोदी ने विश्व के बाकी देशों को भारत में आकर काम करने का निमंत्रण दिया। उन्होंने, ‘देश के नौजवानों को विश्व के हर कोने में मेड इन इंडिया का सपना दिखाया। जीरो डिफेक्ट और जीरो इफेक्ट के साथ मैन्यूफैक्चरिंग करनी है। इसलिए कम मेक इन इंडिया।’

कृषि नहीं, उत्पादन नहीं, औद्योगीकरण नहीं, भारत सेवा मुक्तबाजार का डिजिटल देश है और मुख्य सेवक ने ने 68वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन में लाल किले की प्राचीर से कहा कि सूचना प्रद्यौगिकी में दक्ष युवाओं ने 20 साल में भारत की ‘संपेरों और काला जादू वाले देश’ की छवि को कंप्यूटर पर अपनी उंगलियां नचाकर बदल दिया है।

आलिशा चिनाय अब कहीं दिखती नहीं हैं। उनका वह मेड इन इंडिया गाना भी अब कहीं बजाने का मौका शायद ही मिले।

लालकिले की प्राचीर से बिना बुलेटप्रूफ के पहली बार अलिखित भाषण पढ़ने वाले केसरिया प्रधानमंत्री के भाषण की जो भूरि-भूरि प्रशंसा हो रही है मीडिया में और सोशल मीडिया में लोग जो धन्य धन्य हैं, उससे तो लगता है कि आलिशा चिनाय को कहीं इस गाने के लिए सजा न हो जाये। बचके रहियो आलिशा।

चक दे इंडिया। देश के 68वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने योजना आयोग को समाप्त करने का ऐलान किया और विपक्ष को साथ लेकर चलने के आह्वान के साथ ही जातिगत एवं सांप्रदायिक हिंसा पर रोक की हिमायत की। हिंसा पर रोक के उनकी इस अपील को गुजरात में उनके किये धरे और यूपी को गाजापट्टी बना देने में अमित शाह की कामयाबी के सिलसिले में देखें तो मलतब मतलब दोनों समझ में आ जायेंगे।

मेक इन इंडिया पर हस्तक्षेप और जनपथ में श्रम कानून संशोधन के नजरिये से जो प्रकाश डाला गया है, उसे पढ़ लें। श्रम कानूनों की चर्चा चूंकि हो चुकी है, इसलिए उसे इस प्रसंग में रखकर हम बाकी मुद्दों की चर्चा करेंगे।

योजना आयोग के खात्मे पर भी स्टोरी लग चुकी है। कृपया उसे भी देख लें।

हस्तक्षेप को तुरंत एक बेहतर सर्वर चाहिए। तकनीकी मदद चाहिए। सर्वर के बिना वक्त बेवक्त अपडेट मुश्किल है और अपडेट के बावजूद ब्लैक आउट हो जाना पड़ता है। कल रात से अभी तक हस्तक्षेप खोल नहीं सका। लिंकड इन पर अमलेंदु के पोस्ट से मालूम पड़ रहा है कि क्या पोस्ट हो चुका है।

तमाम दुकानदारों की दुकानें चलाने के लिए लोग अनाप शनाप खर्च करते हैं। इकलौता जो सोशल साइट आपका है,उसे बेहतर तरीके से जारी रखने के लिए हमारे जनपक्षधर समर्थ लोग अगर मदद नहीं कर सकते तो इस एफडीआई राज के मेक इन इंडिया के ही हम लायक हैं।

श्रमकानून तो क्या इस देश की वित्तीय व्यवस्था के निजीकरण के लिए बैंकिंग कानून तक संशोधित है। आरबीआई कानून बदलने की तैयारी है।

मैनुफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए अबाध विदेशी पूंजी है।

प्रतिरक्षा तक में एफडीआई।

नालेज इकोनामी से वंचितों से शिक्षा का अधिकार छिना।

चिकित्सा का निजीकरण है।

डिजिटल देश बनाने का आवाहन है।

केंद्रीयकरण बेहद तेज है और विकास के लिए फिर वहीं गुजराती माडल पीपीपी।

देश के सवा सौ करोड़ लोगों के दिन बदलने के इरादे के साथ मोदी ने जनधन योजना का ऐलान किया, जिसमें प्रत्येक गरीब को बैंक खाते की सुविधा देने के साथ ही जीवन बीमा का संरक्षण प्रदान करने का भी वचन दिया गया। सांसदों को अधिक जिम्मेदार बनाने के इरादे से प्रधानमंत्री ने सांसद आदर्श ग्राम योजना का ऐलान किया, जिसमें प्रत्येक संसद सदस्य हर वर्ष एक गांव का जिम्मा लेकर उसका विकास करेंगे।

अर्थात्

आदर्श ग्राम बनेंगे पीपीपी के जरिये।


शौचालय भी बनेंगे पीपीपी के जरिये।

मोदी ने ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ का ऐलान करते हुए सभी सांसदों से कहा कि वे अगले स्वतंत्रता दिवस तक कम से कम एक गांव को ‘आदर्श गांव’ बनाए और अपने पूरे कार्यकाल में पांच आदर्श गांव बनाएं।

दुनिया में सबसे बड़े हमारी लाइफलाइन रेलवे नेटवर्क भी एफडीआई पीपीपी हवाले।

खुदरा कारोबार में विदेशी कंपनियों की बहार। अंधाधुंध निजीकरण। इसी वजह से अपने 65 मिनट के हिंदी में दिए भावपूर्ण धाराप्रवाह संबोधन में मोदी ने बलात्कार से लेकर नक्सली हिंसा, गरीबी से लेकर भ्रष्टाचार और आर्थिक निर्माण से लेकर निवेश तक के तमाम सामाजिक आर्थिक मुददों को छुआ और इस दौरान खुद को देश के प्रधान सेवक के रूप में पेश किया।

पहली कक्षा से गीतापाठ के एजंडे के साथ मनुस्मृति अनुशासन लागू करने वाले संघ परिवार की जुबानी स्त्री विमर्श के उद्गार से शूद्र दासी स्त्रियों के अवस्थान में फर्क पड़े तो स्वागत है। क्योंकि उन्होंने बलात्कार और भ्रूण हत्या की बढ़ती घटनाओं को शर्मनाक बताया और परिवार से लेकर समाज और अन्तरराष्ट्रीय खेल स्पर्धा में लड़कियों की महत्ती भूमिका को रेखांकित किया।

शर्म है कि इस पर भी तालियां। पूरा देश केसरिया तो हुआ ही है कांवड़िया भी होता जा रहा है। महादेव के मत्थे पर जल चढ़ाने की मारामारी है।

डिजिटल बायोमेट्रिक नागरिकों की इस तमाशबीन भीड़ के मध्य हमारी आवाज लोगों तक पहुंचे, इसका इंतजाम करने की औकात हमारी नहीं है, तो सूचना मनोरंजन तो परोसने के लिए रिलायंस मीडिया है ही।

आलिशा की तरह मेड इन इंडिया के तमाम फैन, समर्थक और दीवाने या तो मार गिराये जायेंगे मुठभेड़ में या फिर उनको देश निकाला। बजरंगी दल और दुर्गा वाहिनी में कौन है, कौन नहीं किसे मालूम।

योजना आयोग के मंटेक जमाने को याद करके उसे खत्म करने पर कोई शोक गाथा लिखने की हालांकि गुंजाइश नहीं है, लेकिन यह कदम, यानि केंद्र और राज्य के इस साझा चूल्हे के खत्म हो जाने से लोककल्याणकारी राज्य की मृत्यु रस्म भी निभा दी गयी है।

मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सीमम गवर्नेंस का मतलब अब भी समझ में नहीं आ रहा है, तो नई चिकित्साविधि की दरकार होगी।

वैश्विक निर्माण का खुलासा रियल्टी बूम बूम है तो हिरोशिमा नागासाकी, भोपाल गैसत्रासदी जैसे विनिवेश, एफडीआई पीपीपी स्मार्टसिटी हीरक चतुर्भुज, सेज महासेज, औद्योगिक गलियारा के तहत प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट, बेदखली के खिलाफ आवाज उठा रही जनता का निरंकुश दमन, पर्यावरण का सत्यानाश और इंफ्रास्ट्रक्चर का पीपीपी जलवा है।

वैश्विक निर्माण का मतलब वैश्विक इशारों पर चलने वाली वेदशी निवेशकों की अटल आस्था की सांढ़ संस्कृति है जो कहीं भी किसीकी को भो, किसी की भी मारने के लिए आजाद है और आजादी भी उन्हींको गिरवी तो राष्ट्रीय संप्रभुता भी उनके हवाले क्योंकि एफडीआई भी वैश्विक हैं और कंपनियां भी वैश्विक।

लोकल तो जनता है जो इस वैश्विक मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था में कीड़े मकोड़े के अलावा कुछ भी नहीं हैं।

जिस तरह से बाकायदा संविधान संशोधन मार्फते भारतीय न्याय प्रणाली की स्वायत्ता खत्म कर दी गयी सर्वदलीय सहमति से, उससे साफ जाहिर है कि हमारे रहमुमा और हमारे नुमाइंदे देश का क्या बना बिगाड़ रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट को बाजू में रखकर भूमिअधिग्रहण, श्रम, बैंकिंग, माइनिंग, पर्यावरण कानून में मनचाहा फेरबदल असंवैधानिक तरीके से संवैधानिक प्रावधानों के प्रतिकूल करने वाली केसरिया कारपोरेट प्रधानमंत्री लालकिले की प्राचीर से श्रम और संसाधनों के अधिकतम दोहन के पक्ष में खुल्लम खुल्ला देश की जनता के खिलाफ एकाधिकारवादी कारपोरेट युद्ध का ऐलान कर दिया है और मुक्त बाजार के नागरिक हम फिदा हैं ऐसे कि किसी की मय्यत में आंसू बहाने की नौबत न आये।

बाबुलंद होशियार कि मोदी ने कहा कि माओवाद और आतंकवाद को काबू करने में सरकार अपना काम करेगी, लेकिन साथ ही मां-बाप का भी यह कर्तव्य है कि वे देखें कि उनके बच्चे किस रास्ते पर जा रहे हैं। ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के मौके पर दिए अपने पहले संबोधन में मोदी ने कहा, ‘कानून कठोरता से काम करेगा, लेकिन मां-बाप के नाते लोगों का भी कुछ कर्तव्य है।’

अब इसका मतलब बूझ लीजिये।

प्रधानमंत्री ने ऐलान किया कि वह देश को संसद में बहुमत के आधार पर नहीं बल्कि सहमति के आधार पर चलाना चाहते हैं। मोदी ने किसी तरह की बुलेट प्रूफ ढाल के बिना पूरे विश्वास के साथ अपनी बात रखते हुए कहा कि वह प्रधानमंत्री के रूप में नहीं बल्कि प्रधान सेवक के रूप में संबोधित कर रहे हैं।

मोदी के खिलाफ जिहाद का नमूना ममता दीदी और नीतीश कुमार की राजनीति और पीपीपीगामी आर्थिक नीतियों के सिलसिले में कई दफा लिख ही चुका हूं।

ताजा स्टेटस यह है कि स्मार्ट सिटी के लिए पूंजी की खोज में सिंगापुर दीदी और सुषमा स्वराज की बेमिसाल युगलबंदी है। बंगाल की नवदुर्गा ने सेजआयुध से वामासुर वध किया और स्मार्ट सिटी वास्ते वे 17 को सिंगापुर जा रही हैं। सिंगापुर जाने से पहले उनने विमाननगरी अंडाल को इंडस्ट्रीयल सिटी डिक्लेअर कर दिया। इससे पहले नई शहरीकरण नीति से सेबी और भारत सरकार के रियल्टी बूम बमाका से पहले बंगाल में रियल्टी धमाका भी दीदी ने कर दिखाया है।

आदरणीय हिमांशु कुमार जी ने फेसबुक पर जो लिखा है, उस पर गौर करें

आपने कहा कि कम मेक इन इंडिया

विदेशी कंपनियों आओ अपना माल भारत में बनाओ

यह काम तो अमीर देशों की कंपनियां दसियों सालों से कर रही हैं

यह मुनाफाखोर कंपनियां उन्ही देशों में अपने कारखाने खोलती हैं जहां उन्हें सस्ते मजदूर मिल सकें, और पर्यावरण बिगाड़ने पर सरकारें उन्हें रोक न सकें

सब इस खेल को जानते हैं

जब यह विदेशी कंपनियां मजदूरों से बारह घंटे काम कराती हैं

तब कोई भी सरकार इन कंपनियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करती

बताइये आज तक भारत में आपने किसी विदेशी कम्पनी पर इसलिए कार्यवाही करी है कि उसने मजदूरों को कम मजदूरी दी है

नहीं आपने आज तक कोई कार्यवाही नहीं करी

आपमें दम ही नहीं है इन विदेशी कंपनियों की बदमाशियों को रोकने का और अपने देश के गरीब नागरिकों और मजदूरों की हिफाज़त का

आप पूछते हैं उदारहण दूं

उदाहरण लाखों हैं

लीजिए एक उदहारण

छत्तीसगढ़ में स्विस सीमेंट कंपनी हालिसिम सीमेंट कम्पनी के द्वारा मजदूरों को कम मजदूरी दी गयी जबकि वहाँ का विदेशी डायरेक्टर दस करोड़ तनख्वाह लेता है

श्रम अदालत ने मजदूरों के हक में फैसला दे दिया

कम्पनी ने अदालत का फैसला मानने से मना कर दिया

मजदूर धरने पर बैठे

छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने छह मजदूर नेताओं पर डकैती का मामला बना दिया

वो भारतीय मजदूर आज भी छतीसगढ़ की जेलों में पड़े हुए हैं

ये आपकी भाजपा सरकार ने किया है प्रधानमंत्री जी

कम मेक इन इण्डिया का नारा देने से पहले अमित जेठवा को याद कर लीजिए

जिसे पर्यावरण को बचाने के लिए आवाज़ उठाने के कारण आपके ही शासन में आपकी ही पार्टी के सांसद के इशारे पर गुजरात में गोली से उड़ा दिया गया

जीरो डिफेक्ट और जीरो इफेक्ट की बातें लाल किले से ही अच्छी लगती हैं

लेकिन जब भी सोनी सोरी उस जंगल की हिफाज़त के लिए आवाज़ उठाती है तो

आपकी ही सरकार उसे थाने में ले जाकर

सोनी सोरी को बिजली के झटके देती है और उसके जिस्म में पत्थर भर देती है

बातें बहुत सुनी हैं हमने

जाइए इस देश की एक भी सोनी सोरी के हक़ में एक कदम उठा कर दिखाइए

आपमें दम ही नहीं है मोदी जी

जिस दिन आप किसी सोनी सोरी के पक्ष में आवाज़ उठाएंगे मोदी जी

उसी दिन आपके मालिक ये पूंजीपति आपको रद्दी की टोकरी में फेंक देंगे

असल में तो आपका मुखौटा लगा कर लाल किले से आप नहीं ये पूंजीपति दहाड़ रहे हैं

आप कहते हैं आप प्लानिंग कमीशन को समाप्त कर देंगे

सही है अब जब सारे भारत को लूटने की सारी प्लानिंग अम्बानी के घर में ही होनी है

तो देश को प्लानिंग कमीशन की ज़रूरत भी क्या है

आप सफाई की बातें करते हैं ?

इस देश में सफाई मजदूरों की हालात क्या हैं कभी जानने की जहमत करी है आपने ?

पूछियेगा कि गंदगी फैलाने वाले ही संघ के नेता क्यों बने और सफाई करने वाला कभी संघ का नेता क्यों नहीं बन सका?

आपके नागपुर के संघ के ब्राह्मण नेताओं से ये भी पूछियेगा

कि भंवर मेघवंशी के घर का खाना वो क्यों नहीं खा सके और उस खाने को उन्होंने सड़क पर क्यों फेंक दिया था ?

आप सोचते हैं कि आपकी कथनी से हम बहल जायेंगे ?


नहीं इस देश की लाखों सोनी सोरियों, आरती मांझी, भंवरी बाई के हक के लिए कदम उठाने के लिए हम लड़ते रहेंगे, जेल जाते रहेंगे, गोली खाते रहेंगे

आप हमें आतंकवादी, नक्सलवादी, देशद्रोही जो मन में आये कहिये
लेकिन इतिहास बताएगा कि असल में देशभक्त कौन था और आतंकवादी कौन ?


About The Author
पलाश विश्वास। लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं । आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के लोकप्रिय ब्लॉगर हैं। “अमेरिका से सावधान “उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना। पलाश जी हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं।

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