दुनिया भर में लाखों लड़कियां और महिलाएं बाल विवाह और खतने के नाम पर जननांगों को विकृत करने की शिकार हैं. संयुक्त राष्ट्र ने नए मामलों को रोकने के लिए प्रयास बढ़ाने की मांग की है. ब्रिटेन ने नया कानून बनाने की बात कही है.
संयुक्त राष्ट्र की बाल सहायता संस्था यूनीसेफ के अनुसार दुनिया भर में इस समय 70 करोड़ ऐसी महिलाएं हैं जिनकी शादी नाबालिग उम्र में कर दी गई थी. लंदन में जारी रिपोर्ट के अनुसार पिछले तीन दशक में उनकी तादाद में कोई कमी नहीं आई है. लंदन में यूनीसेफ और ब्रिटिश सरकार ने बाल विवाह और जननांगों को विकृत करने की समस्याओं पर दुनिया का ध्यान खींचने के लिए सम्मेलन का आयोजन किया है. नए आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में 13 करोड़ लड़कियां और महिलाएं ऐसी हैं जिनके जननांगों को ऑपरेशन करके आंशिक या पूरी तौर पर बिगाड़ दिया गया है. महिलाओं को सेक्स से दूर रखने के लिए अफ्रीका और पश्चिम एशिया के कुछ देशों में यह परंपरा चली आ रही है.
बाल विवाह के खतरे
यूनीसेफ के महानिदेशक एंथनी लेक का कहना है कि इस प्रथा और बाल विवाह से लड़कियों को गहरी और स्थायी तकलीफ पहुंचती है. उन्हें अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल करने से रोका जाता है, "लड़कियां किसी की जागीर नहीं होती हैं. उन्हें जिंदगी का फैसला खुद करने का हक है." यूनीसेफ के अनुसार यदि लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी जाए तो वे दूसरों की तुलना में जल्दी स्कूल छोड़ देती हैं और अक्सर घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं. 25 करोड़ लड़कियों की शादी 15 साल की उम्र से पहले कर दी जाती है.
खतने के औजार
किशोरावस्था में गर्भवती होने वाली लड़कियों में मृत्यु दर वयस्क महिलाओं की तुलना में ज्यादा है. यूनीसेफ की रिपोर्ट के अनुसार बाल विवाह के मामले दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा हैं, लगभग 50 फीसदी. बाल विवाह की शिकार दुनिया भर की एक तिहाई लड़कियां भारत में रहती हैं. ज्यादा खतरा गरीब लड़कियों को होता है. यूनीसेफ के अनुसार भारत में समृद्ध परिवारों की लड़कियां औसत 20 साल की उम्र में शादी करती हैं जबकि गरीब लड़कियों की शादी 15 साल की उम्र में ही कर दी जाती है. हालांकि संख्या के आधार पर नाइजीरिया इस मामले में सबसे आगे है. वहां कुल विवाह का 77 फीसदी बाल विवाह है.
बढ़ेगी तादाद
यूनीसेफ का कहना है कि महिला जननांग को विकृत करने की प्रथा अफ्रीका और मध्यपूर्व के 29 देशों में प्रचलित है. इसके लिए ज्यादातर ऑपरेशन बिना बेहोश किए और साफ सफाई का ध्यान रखे बगैर किए जाते हैं. नतीजा इंफेक्शन, भारी रक्तस्राव, बांझपन और मां तथा बच्चे के लिए जन्म के समय खतरे के रूप में सामने आता है. बहुत सी लड़कियों के लिए यह भावनात्मक तकलीफ का कारण बन जाता है, जिसका बोझ वे जीवन भर ढोती हैं.
विरोध की आवाज
यूनीसेफ की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 30 साल में इस प्रथा का शिकार होने की आशंका लगभग 33 फीसदी कम हो गई है लेकिन जिबूती, मिस्र, गिनी और सोमालिया जैसे अफ्रीका देशों में अभी भी इन लड़कियों का खतना छुरी, ब्लेड या तेज धार हथियार से किया जा रहा है. चूंकि यह प्रथा उन देशों में ज्यादा है जहां की आबादी तेजी से बढ़ रही है, आने वाले सालों में इन लड़कियों की तादाद बढ़ सकती है.
संयुक्त राष्ट्र संस्था यूएन वीमेन की निदेशक फुमजिले एमलाम्बो-एनगचुका कहती हैं, "हम सदस्य देशों को इन घटनाओं के प्रति डर पैदा करने और सजा देने के लिए बढ़ावा दे रहे हैं." ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने कहा है कि वे डॉक्टरों, शिक्षकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को संदेह होने पर इस तरह के मामलों की जानकारी देने की जिम्मेदारी तय करेंगे. ब्रिटिश सरकार ऐसा कानून बनाने पर विचार कर रही है जिसमें बेटियों की सुरक्षा नहीं करने पर मां बाप को सजा मिल सकेगी.
एमजे/एजेए (डीपीए, एपी)
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