यूरोप के विकसित देशों में भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा की बर्बर घटनाएं होती हैं. अब इसे रोकने के लिए एक नए समझौते को लागू किया जा रहा है. यूरोप में रोजाना 12 महिलाएं महिला होने की वजह से हिंसा का शिकार बनती हैं. 2013 में फ्रांस में 121 महिलाएं, इटली में 134 और ब्रिटेन में 143 महिलाएं घरेलू हिंसा की वजह से अपनी जान गंवा बैठीं. यूरोपीयों देशों के बीच साझेदारी बढ़ाने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठन, काउंसिल ऑफ यूरोप के आंकड़े दिखाते हैं कि यूरोप में महिला अधिकारों पर जल्द से जल्द ध्यान देना होगा. अब जाकर काउंसिल ऑफ यूरोप ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा कम करने के लिए एक नया समझौता पारित किया है.
सदस्य देश चाहते हैं कि पीड़ित महिलाओं को मनोवैज्ञानिक मदद मिले और उन्हें शिक्षा व रोजगार के मौके उपलब्ध कराए जाएं. सदस्य देशों को उनके लिए खास आश्रयों का निर्माण करना होगा जहां वह आपात स्थिति में जाकर रह सकें. कई महिलाएं अपने बच्चों की वजह से पति की मारपीट के बावजूद घर पर रह जाती हैं. ऐसी महिलाओं के लिए खास आश्रयों की जरूरत है जहां वे कुछ दिन अपने बच्चों के साथ भी रह सकेंगीं. समझौते के मुताबिक सरकारों को घरेलू हिंसा, जबरन विवाह, पीछा करना और यौन हिंसा जैसी घटनाओं को कम करने में पूरी जुगत लगानी होगी. समझौते में महिला खतना, महिला को गर्भपात के लिए मजबूर करना और "इज्जत" के नाम पर हो रहे अपराधों पर भी लगाम कसने की कोशिश की जाएगी.
काउंसिल ऑफ यूरोप में मानवाधिकार आयुक्त निल्स मुजनियेक्स ने कहा, "महिलाओं के खिलाफ हिंसा मानवाधिकार हनन का एक ऐसा रूप है जो हर रोज यूरोप में होता है." अब 14 यूरोपीय देश महिलाओं के खिलाफ अत्याचार की लड़ाई में अपना योगदान देना चाहते हैं. एक अगस्त को यह समझौता लागू किया जा रहा है. तुर्की, अल्बानिया, इटली, मोंटेनेग्रो, बोस्निया, सर्बिया, ऑस्ट्रिया, अंडोरा, स्पेन और डेनमार्क ने समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं. इस साल के अंत तक स्वीडन, माल्टा और डेनमार्क भी महिलाओं पर हिंसा के खिलाफ इस मुहिम में शामिल होंगे. इसे इस्तांबुल समझौते का नाम दिया गया है.
एमजी/ओएसजे (एपी)
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