- गुजरात में 98 में भाजपा सरकार बनने के साथ ही हो गया था सिलसिला शुरू
नई दिल्ली। बिना किसी अपराध के, विभिन्न प्रतिबंधात्मक कानूनों में, दलित, आदिवासी और मुस्लिम समुदाय को जेल में नजरबंद रखने के मामले में आज भी ब्रिटिश सरकार वाला रवैया जारी है। जहाँ इस मामले में तमिलनाडु हमेशा से आगे रहा है, वहीं गुजरात में 1998 में भाजपा सरकार कायम होने के साथ इसमें बड़ी तेजी आई।
समाजवादी जन परिषद के राष्ट्रीय सचिव अनुराग मोदी ने कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरोद्वारा जारी के आंकड़े यह बताते हैं कि, 2013 में देश की जेलों में नजरबंद कैदियों में मुस्लिम, दलित और आदिवासियों का प्रतिशत 67 है – 20% मुस्लिम; 31% दलित; 16% आदिवासी; वहीं देश की कुल आबादी में इनका प्रतिश्त मात्र 38.73 है। इन कैदियों में से 81% गुजरात और तमिलनाडु की जेलों में नजरबन्द है। जबकि गुजरात में इस वर्ग की हिस्सेदारी राष्ट्रीय अनुपात में 14% है तो तमिलनाडु की 11%। गुजरात में बंद कुल नज़रबंद में से 66% नजरबंद इस वर्ग से है, तो तमिलनाड में 72। जबकि राज्य की जनसँख्या के अनुपात में गुजरात में इस वर्ग की कुल जनसँख्या 31 प्रतिशत है, तो तमिलनाड में 27। कमाल की बात यह है कि, नक्सल प्रभावित छतीसगढ़ में कुल मिलाकर सिर्फ एक और झारखंड में कुल 10 नजरबंद थे, तो आतंकवाद प्रभावित जम्मू और काश्मीर में 72। यही नहीं, देश भर की जेल से रिहा 5826 कुल नज़रबन्दों में से 76% गुजरात (2209) और तमिलनाड (2211) जेलों में नजरबंद थे – प्रत्येक राज्य में 38%। यह आंकड़े जाति और धर्मवार नहीं है , लेकिन उपर दिए आंकड़े यह दर्शाते है कि इन रिहा कैदियों में भी मुस्लिम, दलित और आदिवासियों का प्रतिशत अमूमन वहीं होगा।
श्री मोदी ने कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की वेब साईट पर जेल में बंद विभिन्न श्रेणियों के कैदियों के आंकड़ें 1995 से उपलब्ध हैं| गुजरात दंगों में मुस्लिम, दलित और आदिवासी समुदायों का एक दूसरे के खिलाफ जमकर उपयोग हुआ था, इसलिए इन आंकड़ों का विश्लेषण यह बता सकता है कि किस तरह गुजरात में 2002 में हुए दंगों के पहले से ही- 1998 में भाजपा सरकार आने के साथ ही - प्रतिबंधात्मक धाराओं में में मुस्लिम, दलित और आदिवासियों को नजरबंद करने का सिलसिला जोर पकड़ गया था; जो आज तक जारी है। इसमें जहाँ गुजरात में 1995 एवं 1996 में कोई नजरबंद नहीं बताए गए हैं, वहीं 1997 में पहली बार 267 नजरबंद थे जो 1998 में दुगने होकर लगातर बढ़ते रहे और गुजरात में 1998 में 30% कैदी इस वर्ग के थे, जो 2002 में 68 पर पहुंचकर 2013 में भी 66 पर कायम है। तमिलनाड हमेशा से मुस्लिम, दलित और आदिवासीयों को नजरबंद करने के मामले में आगे रहा है: 1998 में प्रतिश्त 86 था; जो 2006 में बढकर 98 तक गया और 2013 में थोडा गिरकर 72 जरुर हो गया है। उन्होंने कहा तमिलनाडु में इन समुदायों के प्रति अति भेदभावपूर्ण है, इस बात में कोई शक नहीं है, लेकिन इस रवैये में किसी सरकार विशेष के बदलने से कोई फर्क नहीं पड़ा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें