राजीव कुमार डायरेक्टर सीपीआर एवं फिक्की के पूर्व महासचिव |
2014 के मद्देनजर सोचें तो लगता है कि अप्रैल-मई, 2014 में होने वाले आम चुनाव के बाद राजनीतिक माहौल दीर्घकालिक कारगर नीति बनाने के लिए माकूल होगा। ऐसा माहौल नए औ र बड़े फैसले लेने की दृष्टि से जरूरी होता है। राजनेता यथास्थिति बनाए हुए सत्ता पाने का मोह पाले रहते हैं। इससे उन्हें ज्यादा से ज्यादा समय तक सत्ता-सुख लेने के लिए जोड़-तोड़ की राजनीति करने में सहूलियत रहती है। ज्यादा से ज्यादा धन कबाड़ने की लालसा से वे ग्रस्त रहते हैं। सो, उम्मीद करते हैं कि भारतीय मतदाता, जैसा कि उन्होंने पूर्व में भी किया है, 2014 में स्पष्ट और साफ नतीजे देकर चौंका देंगे। स्थिर और निर्णायक फैसले करने वाली सरकार आने के लिए यह जरूरी है। ऐसी सरकार जिसका नेतृत्व सत्ता में बने रहने के पार देखता हो। ऐसे एजेंडा पर काम करता हो जिससे राष्ट्र का विकास हो । ऐसा नेतृत्व जो फैसले तो लेता ही हो, उनके क्रियान्वयन की क्षमता भी रखता हो। उम्मीद है तो बड़ी, लेकिन आज इसी की दरकार है। भारत के लिए सतत और उच्च समावेशी विकास की राह प्रशस्त करने के मद्देनजर ग्यारह बड़े विचार इस प्रकार से हो सकते हैं :
(1) नकद हस्तांतरण : मौजूदा सभी घरेलू और व्यक्तिगत लक्षित सब्सिडी खत्म की जानी चाहिए। इनमें खाद्य सब्सिडी भी शामिल है। इनके स्थान पर सशर्त नकद हस्तांतरण योजना शुरू की जानी चाहिए। नकद राशि लाभार्थी परिवार की महिला मुखिया के खाते में जमा कराई जाए। लाभार्थी परिवार की पात्रता यह हो कि उसके 16 वर्ष से छोटी आयु के बच्चे, खासकर लड़कियां, स्कूल में शिक्षा ले रहे हों। यह सशर्त नकदी हस्तांतरण योजना कार्यान्वित होने के पश्चात मनरेगा को खत्म कर दिया जाए।
(2) श्रम कल्याण कोष : श्रम बाजार अधिकतम लोच वाला या कहें कि गतिशील हो। इसके लिए श्रम कल्याण कोष (जिसमें नियोक्ता और सरकार बराबर का योगदान करें) बनाया जाए। यह कोष थोड़े समय की बेरोजगारी की स्थिति में और श्रमिकों के पुन: प्रशिक्षण के लिए धन जुटाएगा। गरीबी के खात्मे के लिए यह उपाय जरूरी है क्योंकि केवल अनुदान से ही समस्या हल नहीं होगी। हमें आगामी दस वर्षो में दो करोड़ नए रोजगार अवसर पैदा करने हैं। ये अवसर हल्के इंजीनियरिंग उत्पादों और परिधानों का बड़े पैमाने पर निर्माण, हस्तशिल्प, पर्यटन जैसे श्रमोन्मुख क्षेत्रों का विकास करके पैदा किए जाने चाहिए। श्रम क्षेत्र में गतिशीलता होगी तभी हम इन क्षेत्रों में उद्यमों का विकास कर सकेंगे।
(3) रेलवे का कायाकल्प : समय आ गया है कि भारतीय रेलवे में जान फूंकी जाए। इसके एकाधिकार को तोड़ा जाए। इसे छोटी, कुशल और स्वतंत्र क्षेत्रीय इकाइयों में विभक्त करके ऐसा किया जा सकता है। अस्पताल, स्कूल और कैटरिंग जैसे इसके सहायक कायरे का कॉरपोरेटीकरण किया जाना चाहिए। और रेलवे बोर्ड को पूर्णत: नीति-निर्धारक निकाय के रूप में बदल दिया जाए। काफी समय पहले ही ऐसा कर दिया जाना चाहिए था। ऐसा किया जाता है, तो माल-वहन और यात्री-वहन में रेलवे के योगदान में गिरते रुझान को थामा जा सकता है।
(4) इंस्पेक्टर राज का उन्मूलन : विनिर्माण क्षेत्र खासकर लघु एवं मध्यम उद्यमों पर ध्यान केंद्रित करने के मद्देनजर जरूरी है कि 200 से कम कामगार वाली यूनिटों का फैक्टरीज एक्ट के तहत निरीक्षण करने वाले निरीक्षकों के दौरों को खत्म नहीं तो कम तो किया ही जाना चाहिए। इन यूनिटों को इंस्पेक्टर राज से छुटकारा दिला कर ही बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण और रोजगार सृजन को बढ़ावा दिया जा सकता है।
(5) उत्तर प्रदेश का विभाजन : उ प्र का चार हिस्सों में विभाजन अब तक कर दिया जाना चाहिए था। राज्य की आबादी दो करोड़ से ज्यादा है। इसमें साठ बड़े जिले हैं। इनका प्रशासन कुशलता से नहीं चल पाता। प्रदेश के चार अंचलों में इस कदर अंतर है कि उनके लिए नीति-निर्माण असंभव नहीं तो बेहद कठिन जरूर है। प्रदेश को चार हिस्सों-पश्चिमी उत्तर प्रदेश, अवध, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड-में बांटा जाना चाहिए। ऐसा किया जाना प्रशासनिक कुशलता की दिशा में उठाया गया महत्त्वपूर्ण कदम होगा। अन्य छोटे राज्यों के उदाहरणों से देखें तो उम्मीद कर सकते हैं कि राज्य-विभाजन से बेहतर आर्थिक नतीजे हासिल होंगे।
(6) बड़ी परियोजनाएं : भारत को नए स्मारकों की दरकार है। ऐसे गुजरात सरकार द्वारा प्रस्तावित कल्पासागर प्रोजेक्ट सरीखे हो सकते हैं। इस प्रोजेक्ट के तहत खंबात की खाड़ी के चारों तरफ 64 किमी. का बांध बनाया जा रहा है। इसके तहत दो नदियों-घोघा और हसनोट-को जोड़ा जाएगा। इस प्रकार, 2,000 वर्ग मील क्षेत्र में फैली ताजे पानी की झील बनाई जा सकेगी। इससे 5880 मेगावॉट ज्वारीय ऊर्जा का उत्पादन हो सकेगा। साथ ही, दक्षिणी सौराष्ट्र के 1.05 मिलियन हेक्टेयर भूक्षेत्र में सिंचाई की सहूलियत मिलेगी। इस प्रकार का मेगा प्रोजेक्ट राष्ट्र की कल्पना में रवानी ला देगा।
(7) एयर इंडिया तथा सार्वजनिक क्षेत्र के सभी होटलों की बिक्री : एयर इंडिया तथा केंद्र सरकार या राज्य सरकारों या किन्हीं एजेंसियों के स्वामित्व और प्रबंधन वाले सभी होटलों का निजीकरण किया जाए। इन्हें पेश आ रहीं वित्तीय दिक्कतों को देखते हुए हमारे लिए मुश्किल है, इन्हें संकट से निजात दिला पाना। इनके बेचे जाने से सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य उपक्रमों को कड़ा संदेश जाएगा कि उन्हें अपने पर लगाई गई पूंजी का कम से कम दस प्रतिशत तो कमाना ही है। इससे राजस्व घाटे को शून्य पर लाने में मदद मिलेगी। इस उद्देश्य को पूरा किया जाना अपने आप में देश की अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने जैसा होगा जिसकी अभी बेहद जरूरत है।
(8) स्वास्थ्य क्षेत्र में पीपीपी मॉडल : स्वास्थ्य क्षेत्र में पीपीपी मॉडल शुरू किया जाए। इसके लिए कुछ नियमन भर करना होगा। तमाम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में हर दिन सरकारी नियमों के अनुसार कुछ निश्चित संख्या में रोगियों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई जाएं। तत्पश्चात इन केंद्रों के परिसरों को डॉक्टरों को कुछ तय घंटों के लिए हर दिन उन रोगियों का उपचार करने में इस्तेमाल करने की छूट मिले जो उनकी फीस देने की क्षमता रखते हों। यह मॉडल जिला अस्पतालों और सरकारी दवाखानों पर भी लागू किया जा सकता है। इससे एक तरफ निजी अस्पतालों के विशुद्ध व्यावसायीकरण से निजात मिल सकेगी तो दूसरी तरफ सरकारी अस्पतालों में गरीब रोगियों को भी समूचित इलाज मुहैया हो सकेगा।
(9) एकल खिड़की मंजूरी : निवेशकों को तमाम मंजूरियों और स्वीकृतियों के पहाड़ से छुटकारा दिलाया जाना चाहिए। अभी जो करीब 70 मंजूरियां लेनी होती हैं, उन्हें समग्र रूप दिया जा सकता है। और इस औपचारिकता को एक बार में ही पूरा किया जा सकता है। यह अकेला उपाय ही ‘सिंगल विंडो क्लीरियेंस’ को मूर्ताकार कर सकता है और यह मात्र नारा भर नहीं रहने पाएगा। ध्यान रखना होगा कि विनिर्माण क्षेत्र में 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से विकास नहीं किया गया तो गरीबी को खत्म नहीं किया जा सकता। विनिर्माण क्षेत्र में विकास की अनिवार्य शर्त है कि निवेश के लिए माहौल उत्साहनजक हो। इसके लिए आवश्यक है कि 70 के करीब मंजूरियों को समग्र रूप में तब्दील कर दिया जाए।
(10) गंगा न रहे मैली : गंगा नदी को कोलकाता से कानपुर तक नौकायन के जरिए सफर लायक बनाया जाए जैसी कि वह कभी थी। काशी से इलाहाबाद और कानपुर तक बड़ी संख्या में स्टीमर और बड़ी नौकाएं चलेंगी तो दशकों से होती आई गंगा व अन्य नदियों और आमतौर पर होने वाले पर्यावरण की उपेक्षा और अनदेखी पीछे छूट जाएगी। क्रियान्वयन की दृष्टि से यह कठिन एजेंडा है। लेकिन पक्की बात है कि इसे हासिल किया जा सकता है। इसका कार्यान्वयन हो सका तो यह न केवल भारत को फिर से विकास के पथ पर ले आएगा बल्कि देश में एक ऐसा प्रतिस्पर्धी माहौल बना देगा जिससे भारत अपनी वास्तविक क्षमताओं का फायदा उठा सकेगा।
(11) न्यूनतम समर्थन मूल्य की समीक्षा : खाद्य जिंसों और अन्य चुनिंदा फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पण्राली की समीक्षा कीजिए और जरूरी दिखे तो इसे तिलांजलि देने को तैयार रहिए। इस पण्राली ने अरसे से उपज लेने के पैटर्न में ही विकृति ला दी है। पंजाब में खेती के लिए पानी की कमी के बावजूद किसान धान की फसल लेने पर आमादा हैं। यह पण्राली ऊंचे दाम वाली फसलों को प्रोत्साहन देने में नाकाम रही है। कृषि को इसने ऊंची लागत वाला क्षेत्र बना छोड़ा है। और तकनीक उन्नयन व उत्पादकता बढ़ाने के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी। समय आ गया है कि भारतीय किसान को उद्यमशीलता के फायदे लेने दें। कृषि क्षेत्र को खासा फायदा होगा बशत्रे उर्वरकों व कीटनाशकों पर से तमाम सब्सिडी हटा ली जाएं जिनके चलते भूमि का बड़े स्तर पर क्षरण हुआ है। और खाद्य उत्पादों में विषैले तत्वों का स्तर बढ़ गया है।
(राजीव कुमार, कंवल सिब्बल और यशवंत देशमुख के आलेख मेल टुडे के सौजन्य से )
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