कांग्रेसमय भाजपा
कर्मठ नेता दल बदलने में लगे, जनता हैरान-परेशान
हरियाणा विधानसभा चुनाव में किसी सांसद सदस्य के रिश्तेदार अथवा परिवार के किसी सदस्य को टिकट नहीं दिया जाएगा, अमित शाह के इस फरमान ने इन सांसदों को बेचैन कर दिया है। क्योकि नरेंन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही पहला फैसला कर दिया था कि कोई भी मंत्री अपने स्टाफ में अपने परिवार के सदस्य के को नहीं रखेगा। लगभग सभी नेताओं ने फेसबुक पर जबरदस्त अभियान भी चलाया हुआ है। सासंद धर्मवीर, कृष्णपाल गुज्जर, रमेश कौशिक, सुखबीर जौनपुरिया, तथा रतन लाल कटारिया को अब इन्द्रजीत तथा सुषमा स्वराज से उम्मीद है। ये सांसद अपने-अपने रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों को विधानसभा में टिकट दिलवाना चाहते हैं जिसका पार्टी के कार्यकर्ता विरोध कर रहे हैं। अब इन सांसदों की सारी उम्मीद राव इन्द्रजीत तथा सुषमा स्वराज पर टिक गई हैं। गुडग़ांव से राव इन्द्रजीत, महेन्द्रगढ़ भिवानी से धर्मवीर, सोनीपत से रमेश कौशिक तथा फरीदाबाद से कृष्ण पाल गुज्जर, सभी अपने परिवार के सदस्यों को टिकट दिलाने की उम्मीद लगाए बैठे थे। रमेश कौशिक तो गन्नौर सीट से अपने भाई को टिकट दिलवाना चाहते हैं। उन्हें भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रामबिलास शर्मा का आशीर्वाद प्राप्त है। यही नहीं राजस्थान से चुनाव जीते सुखबीर जौनपुरिया भी सोहना हलके से अपने बेटे को टिकट दिलवाना चाहते हैं। राजनीतिक हल्कों में कहा जा रहा है कि हरियाणा की बेटी के नाम से मशहूर सुषमा स्वराज भी यदि अपनी बहन के लिए टिकट नहीं ले पायीं तो उनकी काफी फज़ीहत होगी। इसी बीच कैप्टन अभिमन्यु तथा रामबिलास शर्मा भी अपने लिए सुरक्षित हल्का देख रहे हैं।
अब हालात यह है कि शाह के इन आदेशों से ये सभी सांसद काफी परेशान नजर आ रहे हैं। उन्हें उम्मीद थी कि अन्दरूनी दबाव बनाकर अपने-अपने परिवार के सदस्यों को टिकट दिलवाने में कामयाब हो जाएंगे। कांग्रेस में तो इस तरह का दबाव चलता है लेकिन भाजपा में शायद ही उनकी दाल गल पाए। अमित शाह के फरमान से पार्टी के कार्यकर्ता बड़े खुश है कि अब उनमें से किसी को चुनाव लड़ऩे का मौका मिल सकेगा। इसी बीच पार्टी के प्रभारी जगदीश मुखी को बदलने की चर्चा है। मुखी दिल्ली की राजनीति में व्यस्त हैं। दिल्ली में भी चुनाव होने की सम्भावना के चलते वे हरियाणा के लिये समय नहीं निकाल पाएंगे। भारतीय राजस्व सेवा से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हुई सुनीता दुग्गल अब पटौदी विधानसभा हलके से टिकट के लिये दावा ठोंक रही हैं। पहले उन्हें झज्जर हलके से शिक्षा मन्त्रीगीता भुक्कल के खिलाफ चुनाव लड़वाने की चर्चा थी। लेकिन वह मुख्यमन्त्री हुड्डा के प्रभाव के चलते उन्होंने हलका बदलना ठीक समझा। इस बीच पार्टी अभी तक हुड्डा सरकार और कांग्रेस पार्टी के खिलाफ आक्रामक प्रचार नहीं कर पाई। हुड्डा खुल्लमखुला नरेन्द्र मोदी के गुजरात मॉडल को चुनौती दे रहे हैं।
भाजपा के ज्यादातर नेता मुख्यमन्त्री बनने के जुगाड़ में व्यस्त हैं। अनिल विज के नेतृत्व में हुड्डा सरकार के खिलाफ आरोप पत्र तैयार करने वाली कमेटी भी अब तक कोई ठोस काम नहीं कर पाई। अनिल विजका कहना है कि हमें लोगों से सरकार के खिलाफ शिकायतें मिल रही हैं। हैरानी की बात है कि भाजपा नेताओं को अभी तक यह नहीं पता कि हुड्डा के साढ़े 9 साल के कार्यकाल में क्या घोटाले हुए। यदि भाजपा नेता इस खबर को ध्यान से पढ़ लें तो उन्हें हुड्डा सरकार के खिलाफ कितने ही मुद्दे मिल जाएंगे। नरेन्द्र मोदी के नाम पर लोकसभा में भाजपा को 7 सीटें तो मिल गईं, लेकिन विधानसभा चुनाव में वही जीतेगा जिसका अपने हलके में भी असर होगा। इधर जिस तरह से धड़ाधड़ कांग्रेसी नेता भाजपा में आ रहे हैं उससे पार्टी के पुराने तथा निष्ठावान कार्यकर्ता आशंकित हैं।
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