इस समय अंतरराष्ट्रीय माहौल कम खतरनाक है। चक्रीय सुधार के लिए स्थितियां परिपक्व हैं। अच्छे मॉनसून और ग्रामीण मजदूरी की वृद्धि दर में कमी यह दर्शाती है कि खाद्य मुद्रास्फीति उदारवादी हो सकती है। पर इसमें कुछ सुधारों की काफी हद तक जरूरत है; जैसे कृषि विपणन और आपूत्तर्ि श्रृंखला की दक्षता में सुधार। कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है। ये बाधाएं दाम में बढ़ोतरी से रोक रही हैं । कृषि के क्षेत्र में अगर आपूत्तर्ि पक्ष की प्रतिक्रिया सामने लाई जाए तो उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति भी नीचे आ सकती है, और इसके साथ ब्याज दरें भी
प्रो. अशिमा गोयल इंदिरा गांधी विकास शोध संस्थान, मुंबई |
भारत की तरक्की में मंदी अथवा मंथर गति में मामूली उत्क्रमण या सुधार के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। मांग पक्ष में निर्यात की वृद्धि दर नियंतण्र व्यापार के साथ एक तरह का पुनरुद्धार है। आपूत्तर्ि पक्ष में कृषि का विकास अच्छे मॉनसून के साथ बढ़ा है। एक विशेष मंत्रिमंडलीय समिति ने काफी दिनों से लटकी हुई लगभग 3 लाख करोड़ रु पए की परियोजनाओं को मंजूरी दे दी है। अल्पकालिक उपायों ने चालू खाता घाटा (सीएडी) को कम करने के साथ-साथ रु पए को स्थिर कर के कम्पनियों के लिए अनिश्चितता को कम किया है। उच्च सीएडी ने नियंतण्र जोखिम के समय के दौरान पूंजी प्रवाह को देश के प्रति अधिक असुरक्षित बना दिया था। सीएडी का वित्त-पोषण अब एक समस्या के रूप में नहीं देखा जाता है, क्योंकि भारत एक शुद्ध तेल आयातक देश है। इसलिए यह सामान्य माल या जिंसों के दामों को कम करने में सहायक है। हाल ही के चुनावी बदलाव के बाद, सक्रिय राजनीतिक प्रतिवादों की वजह से सरकार ने चुनावों के अगले दौर के लिए कुछ ही महीने शेष होने के बावजूद विचाराधीन विधानों (लम्बित कानूनों) को निपटाने में तेजी दिखाई है। बुनियादी बातों में सुधार के साथ देश अब अमेरिकी शंकु का सामना करने के लिए और अधिक बेहतर हो गया है। लेकिन घरेलू मांग अभी कमजोर बनी हुई है। इसका कारण यह है कि ज्यादातर कम्पनियां निवेश करने से पहले भावी चुनाव परिणामों के लिए इंतजार कर रही हैं। हालांकि अब की बार एक अनुकूल सरकार के सत्ता में आने की पूरी उम्मीद है। सरकार ने घाटे को नियंत्रित करने के लिए मजबूत कदम उठाने के संकेत दिए हैं, जिसकी वजह से सेवा क्षेत्र भी कमजोर रहेगा। सरकारी खर्च काफी हद तक गैर-तिजारती माल पर पड़ता है। निरंतर रूप से उच्च उपभोक्ता मुद्रास्फीति ने उपभोक्ता के खर्च करने की शक्ति को बिगाड़ कर रख दिया है। यह उत्पादन में वृद्धि के बावजूद मौद्रिक नीति को नरम होने से रोकता है, क्योंकि यह अपनी क्षमता से काफी कम है। इसके साथ ही फर्मो के पास ज्यादा मूल्य निर्धारण की शक्ति नहीं है। लिहाजा, औद्योगिक मुद्रास्फीति कम है। परिणामस्वरूप वास्तविक ऋण दर जिसका वे सामना करती हैं; वह अधिक होती है जबकि बचतकर्ताओं (सेवर्स) को कम या नकारात्मक दर प्राप्त होती है, जिसका कारण खाद्य और सेवा मूल्य दर में वृद्धि है। यहां दोनों (मौद्रिक और राजकोषीय) नीतियां विवश हैं। मौलिक चालकों को समझें 2014 में एक उचित नीतिगत जवाबदारी या प्रतिक्रिया को बनाने के लिए, कम विकास और उच्च खाद्य मुद्रास्फीति के मौलिक चालकों को समझना होगा। ये बाहरी झटकों और अनेक वगरे (सेक्टोरल) में बंटी घरेलू बाधाओं का संयोजन है। विनिर्माण वृद्धि का पतन यह दर्शाता है कि उच्च राजकोषीय और चालू खाता घाटा होने के बावजूद कोई अतिरिक्त मांग नहीं है। उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति उच्च हो सकती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि अर्थव्यवस्था अपने उबाल पर है। मांग केवल कुछ चुनी हुई चीजों के लिए ज्यादा है, जहां कुछ कठिनाइयों की वजह से आपूत्तर्ि बाधित होती है, जबकि नियंतण्र जोखिम पर पूंजी बहिर्वाह रु पए का ह्रास कर कम लागत के विकल्प उपलब्ध कराने से आयात को रोकता है। स्थानीय दाम के अभाव में तेल की स्थिर मांग सीधे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों तक ले जाती है। अलबत्ता, सोने के लिए अन्य मुद्रास्फीति बाधाओं के अभाव ने सीएडी में योगदान किया- यह आमतौर पर पैदा होने वाली (जनरलाइज्ड) अतिरिक्त मांग के कारण नहीं था। कीमतों में बढ़ोतरी का कारण खाद्य मुद्रास्फीति से मजदूरी में वृद्धि हो सकती है, जो कीमतों में दोबारा बढ़ोतरी का कारण बनेगी। ग्रामीण वास्तविक मजदूरी, जो अब समान रूप से चल रही है, में 2007 की उच्च खाद्य मुद्रास्फीति के बाद भारी वृद्धि देखी गई थी। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बड़े सरकारी स्थानांतरण ने भी मजदूरी बढ़ाने में सहयोग किया। नकदी वेतन वृद्धि अब मुद्रास्फीति के भी पार हो गई है। उत्पादकता में कुछ वृद्धि हुई थी और मजदूरी में वृद्धि ने कीमतों को बढ़ने नहीं दिया-विविध आपूत्तर्ि के झटके ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। इसकी शुरु आत अंतरराष्ट्रीय खाद्य मूल्य में बढ़ोतरी के साथ हुई; बाह्य और रु पया मूल्य ह्रास का नियंतण्र वित्तीय संकट से सम्बन्ध और उसके बाद यूरो ऋण संकट, शुद्ध मांग के बावजूद नियंतण्र तरलता की वजह से तेल की कीमतों में बढ़त और 2009 में मॉनसून की विफलता-यही समय था, जब नियंतण्र झटके थमे थे। फिर भी अर्थव्यवस्था नीचे चली गई, और इसकी लम्बी अवधि की विकास सम्भावनाएं अपने में ही डटी रहीं। इस समय अंतरराष्ट्रीय माहौल कम खतरनाक है। चक्रीय सुधार के लिए स्थितियां परिपक्व हैं। अच्छे मॉनसून और ग्रामीण मजदूरी की वृद्धि दर में कमी यह दर्शाती है कि खाद्य मुद्रास्फीति उदारवादी हो सकती है। पर इसमें कुछ सुधारों की काफी हद तक जरूरत है ;जैसे कृषि विपणन और आपूत्तर्ि श्रृंखला की दक्षता में सुधार। कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है पर ये बाधाएं इसके दाम में बढ़ोतरी करने से रोक रही हैं। कृषि के क्षेत्र में अगर आपूत्तर्ि पक्ष की प्रतिक्रिया सामने लाई जाए तो उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति भी नीचे आ सकती है, और इसके साथ ब्याज दरें भी। सुधार के दीर्घकालिक उपाय मेरे विचार से नये साल में अन्य आवश्यक दीर्घकालिक उपाय भी हैं, जो सरकारी प्रक्रियाओं और व्यापार करने की सुविधा देने में सुधार करते हैं। इन्हें सतर्कता-निगरानी के साथ किया जाना चाहिए। बेहतर शासन- कार्यपण्राली से लेन-देन की लागत कम हो जाएगी, जो विस्तृत श्रृंखला में विकास की व्यापारिक गतिविधियों को मदद करेगी, जिसमें निर्यात में वृद्धि शामिल है। अधिक साक्षरता और जागरूकता से एक बड़ा मध्यम वर्ग लोकतांत्रिक संस्थाओं के खराब प्रशासन और भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत बन कर निकलेगा। बेहतर सार्वजनिक सेवाओं की भी मांग है। हालांकि इससे अल्पावधि में निर्णय लेने की दिक्कत से विकास में देर हो सकती है, पर निरंतर रूप से लम्बी अवधि के लिए यह विकास अच्छा है। लोकतंत्र में राजनेताओं को नियंतण्र राय को सम्मान के साथ सार्वभौमिक मताधिकार में शामिल किए जाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए क्योंकि यह उपयोगी है। असमानता को काफी हद तक रोकता है। हाल में सम्पन्न चुनावों में देखने को मिला कि मतदाताओं को पुरानी शैली के हस्तांतरण आधारित उपायों की तुलना में ‘सक्रिय समावेश’ चाहिए जो नौकरियों और उत्पादकता में सुधार ला सके। शिक्षा में बेहतर रिटर्न का मतलब है कि सभी भारतीय बच्चे अब स्कूल जा रहे हैं और अच्छी नौकरी के लिए आकांक्षाएं बढ़ रही हैं।
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