बुधवार, 8 जनवरी 2014

दर्ज कराता हूं ..

जमाखोरी, मिलावटखोरी व मुनाफाखोरी पर अंक लाएं पिछले तीन दशक से सक्रिय रूप से पत्रकारिता से जुड़ा हूं। करीब एक दशक से आपका लब्ध प्रतिष्ठ ‘हस्तक्षेप’ अंक पढ़ रहा हूं। सम-सामयिक एवं ज्वलंत विषयों पर हस्तक्षेप अच्छी एवं स्तरीय सामग्री पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा है। इसके लिए आपका हस्तक्षेप डेस्क प्रशंसा का पात्र है। पिछले कुछ वर्षो से देश में जिस तरह से महंगाई एवं भ्रष्टाचार बढ़ा है, वह चिंता का विषय है। पिछले दो वर्षो से मैं विभिन्न समाचार पत्रों में यह समाचार ढूंढ रहा हूं कि कहीं को ई मिलावटखोर, मुनाफाखोर तथा जमाखोर के गिरफ्तार होने, जेल भेजे जाने की घटना पढ़ने को क्यों नहीं मिलती? क्या देश में हर कहीं मिलावटखोरी, मुनाफाखोरी तथा जमाखोरी बंद है? अगर नहीं तो ऐसे तत्वों पर शासन- प्रशासन वैिक क्यों नहीं कसता? ऐसे तत्वों के विरुद्ध कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? दरअसल, केंद्र तथा प्रदेश सरकारें किसी के विरुद्ध कार्रवाई करके उसे नाराज नहीं करना चाहतीं। इसीलिए ऐसे राष्ट्र विरोधी तत्वों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। ऐसे तत्वों के हौसले बुलन्द हैं। जब तक इनमें कानून व्यवस्था का खौफ (भय) नहीं होगा तब तक ये अनै तिक कार्य करते रहेंगे। मेरी इच्छा है कि हस्तक्षेप में जमाखोरी, मिलावटखोरी एवं मुनाफाखोरी पर भी सामग्री प्रकाशित हो। रमेश त्रिपाठी, त्रिपाठी सदन, आचार्य नगर, फैजाबाद (उप्र)

राम बहादुर राय को साधुवाद हस्तक्षेप के ‘कांग्रेस नीतियां और नेतृत्व’ अंक (21 दिसम्बर 2013) में विभिन्न राजनीतिक विश्लेषकों, बुद्धिजीवियों व वरिष्ठ पत्रकारों के विचारों के जरिये विषय को जांचने, परखने, सोचने का प्रयास किया गया है। यह प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय है। विषय को समझने में पाठकों को आसानी तो रही ही खुद कांग्रेस पार्टी को इससे अपनी नीतियों एवं नेतृत्त्व को संवारने की दिशा मिलेगी। राहुल गांधी को केंद्र में रखकर कांग्रेस पार्टी नीतियों तथा नेतृत्त्व पर वरिष्ठ पत्रकार-राजनीतिक विश्लेषक रामबहादुर राय का मुख्य आलेख ‘आसान शिखर का तीखा ढलान’ बेबाक एवं ठोस धरातल पर आधारित है। इसमें प्रबुद्ध विश्लेषक ने राजनीतिक शरारत को औषधि का रूप करार दिया है। भले ही वह स्थाई उपचार न हो पर कारगर होती ही है। वरिष्ठ विश्लेषक का राहुल गांधी के लिए यह कथन कि वह ‘अपने पुरखों की राजनीतिक कमाई को खुरच-खुरच कर खा रहे हैं और इस सोच में हैं कि छप्पर फटेगा और राजनीतिक दौलत बरसेगी,’ वाकई सटीक और दुरुस्त है। चुनाव पूर्व एवं चुनाव बाद राहुल के व्यक्तित्व को अलग-अलग प्रस्तुत किया गया है। ‘राष्ट्रीय सहारा’

के सम्पादक एवं प्रबुद्ध राजनीतिक विश्लेषक राम बहादुर राय को साधुवाद। निवेदन है कि प्रत्येक साप्ताहिक विषय, जो हस्तक्षेप में निर्धारित होते हैं, का पूर्व उल्लेख कर दिया जाए ताकि कुछ अन्य प्रबुद्ध लोगों को भी विचार-विमर्श में भागीदारी का सुअवसर प्राप्त हो सके। आईएम पाण्डेय, प्रवक्ता, मेवाड़ संस्थान, वसुंधरा, गाजियाबाद

हस्तक्षेप के विचारशील पाठकों की प्रतिक्रियाएं आमंत्रित हैं। वे पूर्व की तरह हस्तक्षेप में प्रकाशित होने वाली सामग्री की प्रासंगिकता पर अपनी राय देने के साथ-साथ आयोजित मुद्दों व सवालों पर बहस में भी दखल दे सकते हैं। हालांकि सीमित स्पेस और उसमें सभी पाठकों की राय का आदर करने की हमारी भावना को देखते हुए आपसे अनुरोध है कि प्रतिक्रियाएं दस पंक्तियों से ज्यादा न दें। इसके लिए आप हमारे मे ल आईडी का प्रयोग कर सकते हैं।

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