जावेद अनीस November 9, 2014 जन-जागरण में प्रकाशित
Writer - जावेद अनीस
पिछले दिनों कश्मीर में भी आईएसआईएस के झंडे लहराने कि घटनायें सामने आई है । दूसरी तरफ आतंकी संगठन अंसार-उल-तौहीद द्वारा अपने ट्विटर अकाउंट में एक विडियो जारी किया गया है। एक अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार विडियो में दिखाई दे रहा नकाबपोश 39 वर्ष का सुलतान अब्दुल कादिर आरमार है जो कर्नाटक के भटकल गाँव के एक छोटे व्यापारी का बेटा है। अगर यह खबर सही है तो यह पहली बार है जब एक भारतीय द्वारा सार्वजनिक रूप देश के मुसलमानों को वैश्विक जिहाद के लिए आह्वान किया गया है। इधर बिन लादेन की मौत के बाद सुर्खियों से दूर रहे अलकायदा का जिन्न भी बोतल के बाहर आ गया है। अलकायदा की तरफ से जारी एक विडियो में अल जवाहिरी ने एलान किया है कि अब उसका इरादा भारतीय उपमहाद्वीप में अलकायदा का झंडा लहराने का है। जवाहिरी के मुताबिक उसका संगठन अब “बर्मा, बांग्लादेश, असम,गुजरात और कश्मीर में” मुसलमानों को जुल्म से बचने के लिए लड़ाई लड़ेंगा। उसने भारत में तथाकथित “इस्लामिक राज” के वापसी की भी बात की है।
उपरोक्त घटनायें इस ओर इशारा करती हैं कि ग्लोबल जिहादियों के निशाने पर अब भारत और यहाँ के मुसलमान हैं, भारत के मुसलमानों ने अलकायदा के सरगना के आह्वाहन का सख़्त अल्फाज़ो में मुजम्मत की है, लेकिन इस मुल्क के वहाबी इस्लाम के पैरोकार भी हैं जिनका सब से पहला टकराव उदार और सूफी इस्लाम के भारतीय सवरूप से ही है।
इस्लामिक स्टेट भी उसी पोलिटिकल इस्लाम की पैदाइश है जिसकी जडें वहाबियत में है, इनका दर्शन चौदहवी सदी के ऐसे सामाजिक-राजनीतिक प्रारुप को फिर से लागू करने की वकालत करता है, जहाँ असहमतियों की कोई जगह नहीं है, उनकी सोच है कि या तो आप उनकी तरह बन जाओ नहीं तो आप का सफाया कर दिया जायेगा।
पाकिस्तान के मशहूर कार्टूनिस्ट साबिर नज़र ने तथाकथित “अरब स्प्रिंग” को लेकर एक कार्टून बनाया है जिसमें दिखाया गया है कि विभिन्न अरब मुल्कों में बसंत के पौधे थोड़े बड़े होने के बाद जिहादियों के रूप में फलते–फूलते दिखाई पड़ने लगते हैं, शायद अरब स्प्रिंग की यही सचाई है। अपने आप को दुनिया भर में लोकतंत्र के सबसे बड़े रखवाले के तौर पर पेश करने वाले पश्चिमी मुल्कों ने अपने हितों के खातिर एक के बाद एक सिलसिलेवार तरीके से इराक में सद्दाम हुसैन, इजिप्ट में हुस्नी मुबारक और लीबिया में कर्नल गद्दाफी आदि को उनकी सत्ता से बेदखल किया है, इन हुक्मरानों का आचरण परम्परागत तौर पर सेक्यूलर रहा है। आज ये सभी मुमालिक भयानक खून-खराबे और अस्थिरता के दौर से गुजर रहे हैं, अब वहां धार्मिक चरमपंथियों का बोल बाला है। “इस्लामिक स्टेट” कुछ और नहीं बल्कि तथाकथित अरब स्प्रिंग की देन है। इस्लामिक स्टेट द्वारा आज बहुत कम समय में इराक़ और सीरिया के एक बड़े हिस्से पर अपना कब्ज़ा जमा लिया गया है।
एकांगी इस्लाम में विश्वास करने वाले इस्लामिक स्टेट के सबसे पहले शिकार तो चरमपंथी,सूफी और ग़ैर-सुन्नी मुसलमान ही हैं,वे सूफी और ग़ैर-सुन्नी मुसलामनों के एतिहासिक धार्मिक स्थलों को तबाह कर रहे है क्योंकि उनका शुद्धतावादी वहाबी इस्लाम बताता है कि कब्रों और मक़बरों पर जाना इस्लाम के खिलाफ है। उनकी सोच कितनी संकुचित है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों उन्होंने एक आदेश जारी किया है कि दुकानों पर लगे हुए सभी बुतों के चेहरे ढके हुए होने चाहिए। आईएस के वहशियों द्वारा की जा रही बर्बरता की दास्तानें रोंगटे खड़ी कर देने वाली हैं, पूरी दुनिया यजीदी समुदाय का बड़े पैमाने पर किये जा रहे जनसंहार को लगातार देख और सुन रही है, यजीदी समुदाय की महिलाओं और बच्चों को जिंदा दफन और महिलाओं को गुलाम बनाया जा रहा है। अगवा किया गये अमेरिकी- बिर्टिश पत्रकारों की गर्दन काटते हुई विडियो जारी किये जा रहे हैं ! इस्लामिक स्टेट के लोग गुलामीप्रथा के वापसी की वकालत कर रहे हैं जिसमें औरतों कि गुलामी भी शामिल है , पिछले दिनों इस्लामिक स्टेट की अधिकृत पत्रिका‘”दबिक” में “गुलामी प्रथा की पुनस्र्थापना” नाम से एक लेख छपा था जिसके अनुसार इस्लामिक स्टेट अपनी कार्यवाहियों के दौरान ऐसी प्रथा की पुनस्र्थापना कर रहा है जिसे ‘शरिया में मान्यता प्राप्त है। पत्रिका में बताया गया है कि शरिया के अनुसार ही वे पकड़ी गई महिलाओं और बच्चों का बंटवारा कर रहे हैं । उनका मानना है है कि यह उनका अधिकार है कि वे इन महिलाओं के साथ जैसा चाहे सुलूक करें,वे उन्हें गुलामों की तरह भी रख सकते हैं। यह सब कुछ मजहब के नाम पर हो रहा है।
इस्लामिक स्टेट का मंसूबा है कि 15वीं सदी में दुनिया के जितने हिस्से पर मुसलमानों का राज था, वहां दोबारा इस्लामी हुकूमत कायम की जाये, शायद इसी वजह से इस्लामिक स्टेट ने खिलाफत का ऐलान करते हुए अपने नेता अबु अल बगदादी को पूरी दुनिया के मुसलमानों का खलीफा घोषित कर दिया है, यह स्वयम्भू खलीफा दुनिया भर के मुसलमानों से एकजुट हो कर इस्लामी खिलाफत के लिए जिहाद छेड़ने की अपील जारी कर रहा है।
तो इन सब का असर भारत पर क्या हो रहा है ? पिछले दिनों नदवा जैसी विश्वविख्यत इस्लामी शिक्षा केंद्र के एक अध्यापक सलमान नदवी द्वारा आई एस आई एस के सरग़ना अबूबकर बग़दादी को एक ख़त लिख कर उसकी हुकूमत को बधाई दी गयी है, ख़त का मजमून कुछ यूँ है– “आप जो भूमिका निभा रहे हैं उसको सभी ने स्वीकार किया है और आप को अमीर उल मोमेनीन (खलीफा) मान लिया है”। इसी तरह से महाराष्ट्र के चार युवा जो की पढ़े लिखे प्रोफेशनल है जिहादियीं का साथ देने इराक चले गये है। तमिलनाडु में मुस्लिम युवाओं द्वारा इस्लामिक स्टेट के चिन्हो वाली टीशर्ट बांटे जाने की खबर भी सामने आई है, सोशल मीडिया पर भी पर इस्लामिक स्टेट के तारीफ में पोस्ट और फोटो शेयर किये जा रहे हैं, इन्हें इस्लामिक स्टेट, अल क़ायदा और तालिबान के खूंखार हत्यारों में अपना मसीहा और इराक के क़त्लेआम में एक इस्लामी देश की स्थापना के लिए लड़ा जाने वाला धर्मयुद्ध नज़र आता है।
बेशक यह सब घटनायें चिंता का सबब है। लेकिन इसके बरअक्स आज भी भारत ज्यादातर मुसलमान सूफी और उदार इस्लाम में यकीन करते हैं और ख्वाजा मुईन-उद-द्दीन चिश्ती, कुतबुद्दीन बख्तियार खुरमा, निजाम-उद-द्दीन औलिया, अमीर खुसरो, वारिस शाह, बुल्लेशाह, बाबा फरीद जैसे सूफियों के तालीम को मानते है, इस्लाम का भारतीय संस्करण उदार है, इसमें भारत के स्थानियता (लोकेलिटी) समाहित है। भारत में सूफी-संतों की वजह से इस्लाम की एक रहस्यमयी और सहनशील धारा सामने आई जो एकांकी नहीं है। सूफियों-संतों ने दोनों धर्मों की कट्टरता को नकारा और सभी मतों, पंथों से परम्पराओं और विचारों को ग्रहण किया। उन्होंने हिन्दू और मुसलमानों को सहनशीलता, एक दूसरे के धर्म का आदर करना और साथ रहना, तमाम कोशिशों के बावजूद एक दुसरे के भावनाओं को इज्ज़त करने और साथ मिल कर रहने की तालीम दी जिसका असर अभी भी बाकी है। भारत में ऑल इंडिया उलमा एंड मशाइख़ बोर्ड जैसे संगठन वहाबी (सलफ़ी) विचारधारा का जमकर विरोध कर रहे हैं, करीब चार साल पहले ही इस संगठन द्वारा भारत में वहाबियत के प्रसार के खिलाफ एक रैली कि गयी थी जिसमें लाखों लोग शरीक हुए और नारा दिया गया ‘वहाबी की ना इमामत कुबूल है, ना कयादत कुबूल’।
इधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू कहा है कि,“यह अल क़ायदा की ग़लतफ़हमी है कि भारतीय मुसलमान उसके इशारों पर नाचेंगे….भारतीय मुसलमान देश के लिए ही जिएंगे और भारत के लिए ही जान देंगे,” मोदी ने ये बात अलकायदा द्वारा कुछ दिनों पहले जारी की गयी उस विडियो को लेकर पूछे गये प्रश्न के उत्तर में कही हैं जिसमें अलकायदा ने भारत में अपनी शाखा खोलने और भारतीय मुसलमानों की मदद करने कि बात की है।
लगभग इसी दौरान में देश के प्रख्यात न्यायविद फली एस. नरीमन ने मोदी सरकार को बहुसंख्यकवादी बताते हुए चिंता जाहिर की है कि बीजेपी-संघ परिवार के संगठनों के नेता खुलेआम अल्पसंख्यकों के खिलाफ बयान दे रहे हैं लेकिन सीनियर लीडर इस पर कुछ नहीं कहते। जिस प्रकार से नयी सरकार बनने के बाद से संघ परिवार आक्रमक तरीके से लगातार यह सुरसुरी छोड़ रहा है कि भारत हिन्दू राष्ट्र है,यहाँ के रहने वाले सभी लोग हिन्दू है, उससे फली एस. नरीमन जी कि चिंता सही जान पड़ती है, और प्रधानमंत्री कि कथनी और करनी में फर्क साफ़ दिखाई दे रहा है ।
प्रधानमंत्री को मुसलमानों को देशभक्ति का प्रमाणपत्र देने कि जगह संघ परिवार और अपने पार्टी के उन नेताओं पर लगाम लगाना चाहिए जो भारत के बहुलतावादी सवरूप को नष्ट करके इसे हिन्दू राष्ट्र बनाने का मंसूबा पाले हुए हैं, दरअसल इनकी ये हरकतें परोक्ष रूप से जिहादी संगठनों और मुल्क मैं मौजूद उनके तलबगारों को मदद ही पहुचायेगी , मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बना देने कि इनकी जिद वहाबियत का रास्ता आसान करेगी, क्यूंकि इसी बहाने वे नवजवानों को जुल्म और भेद-भाव का हवाला देकर उन्हें अपने साथ खड़ा करने कि कोशिश कर सकते हैं ।
अगर भारत को इस्लामिक स्टेट या अलकायदा जैसे संगठनों से कोई खतरा है तो इसका सबसे ज्यादा असर यहाँ के मुसलमानों पर पड़ेगा, इस मुल्क के एक- आध फीसीदी मुसलमान भी अगर इस्लामिक स्टेट और अलकायदा जैसे जिहादी संगठनों कि इमामत स्वीकार कर लेते हैं तो भारत के मुसलमान भी भी उसी आग का शिकार हो सकते हैं जिसमें पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान जल रहे हैं ।
लेकिन ऐसा होना उतना आसान नहीं है, दक्षिण एशिया में इस्लाम का इतिहास करीब हजार साल पुराना है ,इस दौरान यहाँ सूफियों का ही वर्चस्व रहा हैं, भारत में इंडोनेशिया के बाद दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी रहती है, पूरी दुनिया में कट्टरवाद के उभार के बावजूद भारतीय मुसलमान अपने आप को रेडिकल होने से बचाये हुए है, लेकिन अब वे आईएसआईएस और अलकायदा जैसे जिहादी संगठनों के निशाने पर है, भारत में इस खतरे का सबसे ज्यादा मुकाबला यहाँ के मुसलमानों को ही करना पड़ेगा. ठीक उसी तह से जैसे उन्होंने 26/11 के मुंबई हमले में मारे गये नौ आतंकियों के लाशो को यह कहते हुए लेने से इनकार कर दिया था कि, “वे भले ही खुद को इस्लाम का शहीद कहते हुए मरे हों लेकिन हमारे लिए वे इंसानियत के हत्यारे हैं” यही नहीं इनको लाशों को मुंबई के “बड़े कब्रिस्तान” में दफनाने के लिए जगह देने लायक भी नहीं समझा था . उम्मीद है कि इस बार भी भारतीय मुसलमान आईएसआईएस और अलकायदा जैसे मानवता विरोधी संगठनों को उनकी ठीक जगह दिखाने में कामयाब होंगें ।
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