सोमवार, 1 दिसंबर 2014

मुजफ्फरनगर में आजमायी गयी साम्प्रदायिक राजनीति को अखिल भारतीय स्तर ले जाने की शातिराना कोशिश

मुजफ्फरनगर के बाद अलीगढ़ पर हमला कार्पोरेट फासीवादी राज्य के निर्माण का अगला चरण है।

कॉमरेड राजा महेंद्र प्रताप ने हाथरस से 1957 में लोकसभा- चुनाव में जनसंघ के प्रत्याशी श्री अटल बिहारी वाजपेयी को पराजित किया था। दरअसल श्री वाजपेयी की जमानत जब्त हो गयी थी।क्रांतिकारी राजा महेंद्र प्रताप को 01 दिसम्बर 1915 को काबुल में भारत की पहली प्रवासी प्रांतीय सरकार कायम करने का श्रेय हासिल है। इस सरकार में राष्ट्रपति महेन्द्र प्रताप के प्रधानमंत्री उनके निकट सहयोगी मौलवी बरकतुल्ला साहब थे। दोनों ने अपने साथियों के साथ ब्रिटिश सरकार के खिलाफ ‘जिहाद’ की घोषणा की थी। ( देखिये -विकीपीडिया )

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में महेंद्र प्रताप के योगदान को याद किया जाता है। सर सय्यद भवन में उनकी तस्वीर मौजूद है, जिस पर सर सय्यद से उनकी आत्मीयता की जानकारी भी दर्ज है। वे यहाँ छात्र भी रहे और विश्विद्यालय के निर्माण में सर सय्यद के सहयोगी भी।

उनके जीवन काल में संघ-परिवार उनका प्रमुख राजनीतिक विरोधी बना रहा। क्रांतिकारी होने के नाते आज़ादी के बाद वे कांग्रेस की राजनीति से दूर रहे , इसलिए कांग्रेस ने भी उनके योगदान को उचित सम्मान नहीं दिया।

अब अचानक एएमयू कैम्पस में घुस कर बीजेपी एक हिन्दू जाट राजा के रूप में उन्हें याद करना चाहती है, जो उनकी क्रांतिकारी जनवादी सेक्युलर विरासत की खुली अवमानना है।

यह असल में मुजफ्फरनगर में आजमायी गयी साम्प्रदायिक राजनीति को अखिल भारतीय स्तर ले जाने की शातिराना कोशिश है। अगर मुजफ्फरनगर हिन्दू मुस्लिम एकता का क्षेत्रीय नाड़ीविंदु रहा है तो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय राष्ट्रीय केंद्र है। मुजफ्फरनगर के बाद अलीगढ़ पर हमला कार्पोरेट फासीवादी राज्य के निर्माण का अगला चरण है।

एकजुट हो कर राष्ट्रीय विरासत के साम्प्रदायीकरण की कोशिशों की मुखालिफत कीजिये।

O- आशुतोष कुमार
About The Authorआशुतोष कुमार, लेखक प्रख्यात साहित्यकार व सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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