झारखण्ड अनुसूचित राज्य है। 24 जिले वाला यह राज्य के हर जिले में अनुसूचित जनजाति के शिक्षा के लिए मध्य विद्यालय, उच्च विद्यालय बालिका विद्यालय की स्थापना की गयी है। जिसमें लगभग 24 जिले में यह विद्यालय संचालित है वहाँ आदिवासी बच्चों के अलावा बिरहोर समुदाय के बच्चों भी पड़ते है। जिसमें सबसे सुदूर गांव के बच्चों के लिए यह व्यवस्था है। इस शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के लिए सरकार और गैर सरकारी संस्था ने कभी प्राथमिकता की सूची में नहीं रखा
बदलती शिक्षा व्यवस्था में झारखण्ड में शिक्षा और शिक्षित होने के लिए बिरहोर समुदाय को प्रेरित कर दिया है। जंगल का वह भाग जहाँ कभी सूरज के रौशनी के अलावे और कुछ नहीं पहुंचता था, आज वहाँ बच्चे अपने को शिक्षित करने के लिए गांव से बाहर अनुसूचित जनजाति विद्यालय में जा रहे हैं। जंगल का घनापन खत्म हो रहा है। जंगल के अन्दर और जंगल पर निर्भर लोगों के पास संकट आया है। उनके जीवन स्तर में भी परिवर्तन आ चुका है। इन समुदाय के बीच अब संसाधन का अभाव दिखने लगा है। इनके जीवन में पूंजी का महत्व बढ़ा है। आर्थिक सबलता बनने के लिए लिखना पढ़ना और डिग्री लेने के प्रति रूचि जग गयी है। 60 साल पहले की स्थिति अब बिरहोर के गांव में नहीं रही। उनके मूल स्वरूप में परिवर्तन आने लगा है। उनके हिस्से का वन और वनप्राणी अब जंगल के समाप्त होने से उनके उपर संकट आ गया। संकट से उबरने के लिए उन्होंने शिक्षा को भी एक रास्ता को चुना।
24 जिले वाला झारखण्ड में बिरहोर शिक्षा का स्तर में अक्षर ज्ञान के अलावा नन मैट्रिक और इंटर तक की शिक्षा लिए हुए लोगों की संख्या 2 प्रतिशत तक आ गयी है। छोटी आबादी अपने को बचाने के लिए मुख्यधारा के साथ जुड़ रहे हैं, वे बाहरी समाज के साथ अपने के बीच मेल मिलाप बढ़ा रहे हैं। नौकरी और की ओर बढ़ रहे हैं। जिससे उनके रहन-सहन में परिवर्तन होता जा रहा है अब वह शिक्षित हो कर परिवार और समाज के बीच रहना ज्यादा पंसद करने लगे हैं।
अनुसूचित जन जाति के विद्यालय-सरकार ने अनके लिए अवासीय विद्यालय की व्यवस्था कर दिया है, पर उनके शिक्षा का स्तर दर अब भी कम है दो स्कूल उदाहरण के रूप में हम देखते हैं, एक तो रांची की राजधानी से 150 कि0मी0 दूर गुमला के विशूनपुर के आदिमजनजाति आवासिय विद्यालय दूसरा रांची के राजधानी के मुख्यालय से 23 कि0मी0 के बुण्डू ब्लॉक के स्थित आवासिय विद्यालय की स्थिति जिसमें जिसमें गुमला के विशूनपुर के विद्यालय में बंद पड़े हैं, उस विद्यालय को बिहार की संस्था को संचालित करने के लिए दे दिया गया है जहाँ एक भी स्थानिय यानि कि जहनगुटूआ के एक भी बच्चे नहीं जाते हैं। वहाँ पढ़ाने वाले शिक्षक भी बिहार के हैं। लम्बे समय से विद्यालय बंद रहता है। बाहर से देखने से लगा इसकी स्थिति खंडहर जैसे हैं वहाँ कभी विद्यालय खुलता ही नहीं है। आसपास के लोगों से जानकारी लेने पर बच्चों ने बताया कि यह विद्यालय में स्थानीय लोग पढ़ने नही जाते हैं। गांव के क्षत्रपति ने बताया कि गांव में लोग शिक्षित हैं पर सरकार इनको शिक्षा के काम में नहीं लगाती है। और न गांव में शिक्षा समिति का गठन किया गया है।
विजय बिरहोर ने बताया कि गांव के बच्चे बाहर के स्कूल में जाते हैं। इस लिए कि यहाँ शिक्षा के लिए शिक्षक की कमी है और सही तरीके से पढ़ाई नहीं हो पाती है। हमारे गांव में आंगनबाड़ी केन्द्र है यहाँ की स्थानीय महिला द्वारा संचालित है जिसमें 40 बच्चे जाते हैं। लेकिन आवासीय विद्यालय में हमारे गांव का एक भी बच्चा नहीं जाता है।
वही बुण्डू के अमनबुरू मे 6 स्कूल बिल्डिंग हैं। जिसमें 5 में स्कूल और एक में आवासीय विद्यालय है जिसमें 88 बच्चे है। 7 शिक्षक हैं, जिसमें पहला क्लास से लेकर 6 क्लास तक की पढ़ाई होती है। विद्यालय बनने के बाद कभी मरम्मत नहीं किया गया। आधे से अधिक क्लास रूम टूट चुके हैं। पीने के पानी का संकट हर वक्त बना रहता है। सरकार रहने के लिए उचित व्यवस्था करने में असमर्थ है। स्कूल में तमाम संसाधन हैं, पर वह इन बच्चों को नहीं मिलता है। रमेश शंकर मुण्डा ने बताया कि हमारे यहाँ 6वी तक क्लास होती है इससे 12 तक क्लास करने की मांग 2007 से लगातार किया गया। जब रांची के डीसी के. के. सोन रहे थे, तो उन्होंने कहा था इसे उच्च विद्यालय बना कर रहेंगे लेकिन सोन बदल गये। नये डीसी आये जिसने कभी हमारी सुनी तक नहीं। न हमारे पास कभी आये। सुमन मुण्डा जो स्कूल के प्रधानमंत्री हैं, ने बताया की हम दूसरे स्कूल के बारे नहीं जानते हैं, पर हमें तमाम विषय पर शिक्षा मिलनी चाहिए जिसके लिए शिक्षक नहीं है। शिक्षक के अभाव में हम अच्छी शिक्षा से वंचित रह रहे हैं।
वहीं सुनील बिरहोर ने बताया कि हमारा घर अमनबुरू में है। हम बीच-बीच में घर जाते हैं, रहते हैं चार कलास में पढ़ते हैं। यहां तो सब टूटा हुआ है मास्टर हमें पढ़ाते हैं, पर क्लास रूम का अभाव है। महेश्वर लोहरा ने बताया कि हम 6वी कलास में पढ़ रहे हैं, इसके बाद हम कहां पढ़ने जाएंगे यह हमारे लिए चिंता का विषय है।
बच्चों ने रखा प्रस्ताव – कहा हमारे स्कूल में कम्प्यूटर की शिक्षा शुरू किया जाए। फुटबॉल की व्यवस्था की जाए। खेलने के लिए सरकार की ओर से जूते दिये जाएं। खेल और कला संस्कृति के शिक्षकों की नियुक्ति हो। स्कूल में 12वीं तक की पढ़ाई शुरू किया जाना चाहिए यदि सरकार हमारे यह प्रस्ताव को मान लेगी तो हमारा विद्यालय अन्य विद्यालय से अच्छा हो जाएगा।
बिरहोर शिक्षित बेरोजगार- अमनबुरू में हर घर में शिक्षित व्यक्ति है 8 कलास तक के शिक्षा सब के पास है वे अब अपने को मानते हैं शिक्षित बेरोजगार दुबराज बिरहोर नन मैट्रिक हैं। उन्हें पता है सरकार ने उनके लिए विशेष नौकरी की व्यवस्था की है पर वह नहीं जानते हैं कि वह कहां जाकर नौकरी की मांग करें। उनकी पत्नी हजारीबाग में आंगनबाड़ी सेविका है। वहीं सुरेश बिरहोर सिल्ली में पलायन कर गये हैं। वहाँ बिरहोर समुदाय के बीच काम करते हैं। बीच-बीच में अपने गांव आते हैं। अमनबुरू और ढीपा टोली से 12 लड़के स्कूल जाते हैं, 04 लडकियां कस्तूरबा गांधी स्कूल में रह कर पढ़ाई करती हैं। गांव में शिक्षित बहु लाने की प्रथा, हर घर में बहु मैट्रिक या 8वीं तक की पढ़ाई कर चुकी है।
अमन बूरू आवासीय विद्यालय के शिक्षक प्रमेश्वर लोहरा ने बताया कि बुण्डू के गांव में बिरहोर अब धीरे- धीरे शिक्षत हो रहे हैं, रोजगार से जुड़ रहे हैं, पलायन कर दूसरे स्थानों में रोजगार खोज रहे हैं, बच्चे स्कूल में रहते हैं। स्कूल में शिक्षक की कमी है। सरकार व्यवस्था करेगी तभी संभव हो पाएगा। शिक्षा के प्रति बच्चों को काफी इच्छा है। 6ठी तक की पढ़ाई के बाद बच्चे भटक जाते हैं। इसका विकल्प नहीं खोज पा रहे हैं, अन्य स्कूल काफी दूर हैं जहाँ बच्चों के रहने की व्यवस्था नहीं है, इस लिए उच्च शिक्षा के प्रति थोड़ी उदासीनता है। गांव के ग्राम प्रधान ने बताया कि हम हर रविवार को गांव सभा की बैठक करते हैं, उसमें शिक्षा के सवाल को उठाते हैं। सरकार हमारी नहीं सुनती है। हम चाहते हैं तकनीकी शिक्षा के साथ अन्य शिक्षा के साथ बच्चों को जोड़ा जाए जो हमारे गांव में नहीं है। समय परिवर्तन हो चुका है। शिक्षा में भी परिवर्तन आ रहा है। लेकिन हमारे गांव में पुराने नियम कायदे से शिक्षा चल रही है इसमें परिवर्तन लाने की जरूरत है।
आदिम जनजाति के स्कूल बेहाल- : झारखण्ड में सरकार आदिम जनजाति के लिए उच्च विद्यालय 248 और मध्य विद्यालय 88 विद्यालय की स्थापना कर संचालित तो कर रही है पर इसकी बदहाली और गरीबी से उबारने के लिए कभी प्रयास नहीं किया है। शिक्षा अधिकार कानून के तहत इन स्कूलों में वो तमाम व्यवस्था बच्चों को नहीं मिल पा रही हैं, जिसके वे हकदार हैं। तकनीकी युग में हर स्कूल कम्प्यूटर से जहाँ शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, वहीं आदिम जनजाति बिरहोर के बच्चे आज भी पुरानी पद्धति से शिक्षा लेने के लिए मजबूर हैं। सरकार की शिक्षा की व्यवस्था ने लड़के और लड़कियों के बीच दूरी बना दी है। कस्तूरबा गांधी स्कूल में लड़कियों के लिए शिक्षा की जो व्यवस्था है वह व्यवस्था आदिम जनजाति विद्यालय में लड़कों को नहीं मिल पा रही है। ऐसी स्थिति में समाज में बराबरी की शिक्षा के सवाल पर प्रश्न चिन्ह लगता है।
शिक्षा के अधिकार को लेकर चल रहीं हजार संस्था- इंटरनेट में शिक्षा के लिए काम करने वाली संस्थाओं के लम्बी कतार मौजूद है। कई फंडिग एजेन्सी भी शिक्षा के लिए झारखण्ड में काम करने के लिए फंड दे चुकी हैं। ऐसी हजार संस्थाएं हैं जो बच्चों की शिक्षा के लिए काम तो कर रही हैं, पर आदिम जनजाति के अन्तर्गत अति पिछड़ा वर्ग पीटीजी के लिए किसी संस्था ने काम करना शुरू नहीं किया है। शिक्षा के अधिकार के लिए नये नारे के बीच यह समुदाय कॉलेज की शिक्षा से बेखबर हैं। रांची में कल्याण विभाग छोड़ आदिम जनजाति के बच्चों की कोई सुध लेने वाला नहीं है। राज्य सरकार और गैरसरकारी संस्थान ने आदिम जनजाति के शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण तरीके से काम नहीं किया जिससेआदिम जनजाति के बिरहोर समुदाय को शिक्षा के माध्यम से उच्च स्थान प्राप्त नहीं हो पा रहा है।
अनुसूचित जनजाति सरकार की उपयोजना में शिक्षा पर बजट कम
झारखण्ड में अनुसचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति उपयोजना की स्थितिवर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार झारखण्ड में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 26 प्रतिशत है। वहीं पीटीजी की आबादी सबसे कम होती जा रही है इसी जनगण्ना के अनुसार इस वर्ष 2014- 15 के बजट में राज्य सरकार द्वारा अनुसूचित जाति के विकास के लिए योजना बजट में से 26 प्रतिशत राशि आदिवासी समुदाय के लिए आंबटित की जानी चाहिए
अनुसूचित जनजाति उपयोजना की बजट 2014-15 राशि
स्रोत राज्य प्लान 2014 – 15 झारखण्ड सरकार
वितीय वर्ष 2014-15 का झारखण्ड सरकार द्वारा अनुमानित कुल प्लान बजट रू0 26754.97 करोड़ है। जिसके अंतर्गत अनुसूचित जनजाति उपयोजना के लिए रू0 7965.010 करोड आंबटित किये गए हैं, जो कि जनसंख्या अनुपात के अनुसार से कहीं अधिक हैं। विश्लेषण के अनुसार यह बात सामने आती है कि वैसे तो आबंटन कहीं अधिक किया जाता है परन्तु इस आबंटन का सीधा लाभ जन समुदाय को नहीं मिलता
शिक्षा विभाग में आंबटित बजट
1. झारखण्ड सरकार ने प्राथमिक शिक्षा विभाग में टीएसपी तथा एस सी एस पी के अन्तर्गत सबसे बड़ा आबंटन बच्चों के लिए पोषक आहार योजना में किया है। जिसकी राशि टीएसपी में रू 82.56 करोड़ है तथा एस सी एस पी में रू0 32.64 है। यह योजना एक जरूरी एवं महत्वकांक्षी योजना है। जिसमें यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि इसका सीधा लाभ आदिवासी और आदिम जनजाति के बच्चे तक पहुंचे।
2. इसी प्रकार माध्यमिक शिक्षा विभाग में भी सामान्य श्रेणी की लड़कियों के लिए मुफ्त साईकिल वितरण करने हेतु उपयोजना के रू0 1.6 करोड़ आबंटित किये गए हैं।
3. उच्च शिक्षा विभाग में भी सरकार ने उपयोजना के अंतर्गत रांची विश्वविद्यालय को रू0 आठ करोड़ का अनुदान, दुमका विश्वद्यिालय को आठ करोड़ का अनुदान, कोल्हान को 7 करोड़ का अनुदान दिया गया, जिसका सीधा लाभ आदिम जनजाति समुदाय को नहीं हो पा रहा है।
कल्याण विभाग में झारखण्ड सरकार ने आदिवासी क्षत्रों में शिक्षा हेतु रू0 130 करोड़ का अनुदान और धारा 275 ए एडिसनल टी एस पी के अंतर्गत टीएसपी से रू0 100 करोड़ का अनुदान दिया है, जो सराहनीय है।
टीएसपी से ही रू0 30 करोड की पोस्ट एंटैस छात्रवृति तथा रू0 30 करोड़ की प्राथमिकशाला छात्रवृति रू0 20 करोड़ की माध्यमिकशाला छात्रवृति रू0 15 करोड़ की उच्चशाला छात्रवृति का भी प्रावधान किया है। यह सारी योजनाएं छा़त्र- छात्राओं को सीधा लाभ पहुंचाती हैं और नियमों के अनुसार हैं तथा उनके शिक्षा विकास में भी सहायक हैं, इसलिए इस प्रकार की योजनाओं में राशि बढ़ाई जानी चाहिए। और सरकार चाहती तो यह पैसा का उपयोग आदिमजनजाति के बिरहोर बच्चों के उच्च शिक्षा के साथ तकनीकी शिक्षा के लिए उपयोग कर सकती थी।
इसके बाद भी आदिम जनजाति बिरहोर के बच्चे के शिक्षा का स्तर उठ नहीं पा रहा है कही न कही सरकार और गैरसरकारी संस्था से चुक हो रहीं है।
O- आलोका
(सीएसडीएस/ यूएनडीपी फेलोशिप के तहत)
About The Authorआलोका। लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता व स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। कई फेलोशिप एवं झारखण्ड सरकार द्वारा शोध में प्राप्त एवार्ड साथ ही भारत के महिला आंदोलन से जुड़ी जूडाव, झारखण्ड में विस्थापन आंदोलन के साथ जुड़ाव
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