29 सितम्बर, 2010 को महाराष्ट्र के नन्दूरबार जिले के तमभली गांव में सोनिया गांधी द्वारा एक महिला को भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण द्वारा जारी 12 अंकों का पहचान पत्र आधार कार्ड देकर इस योजना का आरंभ किया गया। आधार कॉर्ड योजना को लागू करते समय नीलकेणी ने जोर देते हुए कहा था कि यह स्वैच्छिक योजना होगी, लेकिन जिस तरह से इसका प्रचार-प्रसार किया गया, उससे यही लग रहा है कि यह अनिवार्य हो गयी है। यह योजना शुरूआती दिनों से ही विवादों में रही है। यह योजना सीधे-सीधे लोगों की निजता (व्यक्तिगत जानकारी) से जुड़ा हुआ है। इस विशिष्ट पहचान को लेकर ब्रिटेन जैसे देश में चुनावी मुद्दा बना है और सरकार का हार की एक मुख्य कारण रहा है। चुनाव जीतने के बाद सरकार ने न केवल योजना को रद्द कर दिया बल्कि जो डाटा इकट्ठा हुआ था, उसे भी सुरक्षित तरीके से नष्ट किया। कहा गया कि स्टेट यानी राज्य को हर नागरिक के निजता के अधिकार का सम्मान करना चाहिए।
इसी तरह भारत में भी इसका विरोध हुआ और इसे लोगों की निजता पर कुठाराघात माना गया। उस समय की विपक्षी पार्टी (भाजपा, जो अब सत्ता में है) ने भी विरोध जताया था। इस पर मीडिया में बहस चली और अनेकों लेखों में लिखा गया कि यह योजना गैरकानूनी है, लोगों की निजता पर प्रहार है, मेहनतकश जनता के साथ धोखा है। संसद की स्थायी समिति ने भी सवाल उठाये। स्थायी समिति की रिपोर्ट (सिफारिशों वाले खंड में) में कहा गया है कि ‘बायोमेट्रिक सूचना संग्रहण के काम कोनागरिकता कानून 1955 तथा नागरिकता नियम 2003 में संशोधन के बगैर कोई अन्य विधेयक बनाकर सही ठहराने की गुंजाइश नहीं बनती, और इसकी संसद को विस्तार से पड़ताल करनी होगी।’ समिति की रिपोर्ट को भी उस समय की कांग्रेस सरकार ने अनदेखा कर आधार कार्ड बनाने का काम जारी रखी।
इस योजना को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने 21 सितम्बर, 2013 को आदेश दिया कि आधार कार्ड की अनिवार्यता खत्म की जाए। ‘‘किसी भी सरकारी सुविधा हासिल करने के लिए आधार कार्ड जरूरी नहीं है। किसी भी व्यक्ति का आधार डिटेल पुलिस या सीबीआई को कार्ड होल्डर की अनुमति के बिना नहीं दिया जाएगा। साथ में यह भी ध्यान रखा जाए कि किसी भी अवैध नागरिक का आधार कार्ड न बने।’’ इस पर भाजपा के अनंत कुमार ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि बीजेपी पहले ही कह चुकी है कि आधार कार्ड निराधार है। कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस सरकार के व्यवहार में नरमी आई और लोगों के अन्दर आधार कार्ड बनाने का खौफ खत्म होने लगा था।
एनडीए सरकार बनने के बाद आधार कार्ड के विरोध कर रहे सिविल सोसाईटी और आम जन निश्चिंत थे कि आधार कार्ड की अब जरूरत नहीं है, क्योंकि विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने इस योजना का विरोध किया था। लेकिन सत्ता में आते ही उसने यू टर्न लिया और हर कल्याणकारी योजना को आधार कार्ड से जोड़ने का ऐलान कर दिया। इस योजना के लिए 1200 करोड़ रुपये भी आवंटित कर दिया गया। इसके बाद फिर से यह बहस का विषय बना हुआ है। लोग सवाल कर रहे है सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्या होगा; लोगों की निजता कैसे बचेगी….? इन सब चिंताओं के बीच में आधार कार्ड बनाने वाली कम्पनियों में खुशी है, क्योंकि वे आम नागरिकों से इसके लिए 20 से 100 रुपये तक की वसूली कर रही हैं। निःशुल्क फार्मों को बेचा जा रहा है। लोगों से पैसा वसूलने के लिए जानबूझ कर आधार केन्द्रों पर एक से अधिक बार बुलाया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ-साफ कहा है कि कार्ड होल्डर की अनुमति के बिना उनकी जानकारी किसी भी एजेंसी को नहीं दी जा सकती, जबकि पंजीयन के दौरान ही घोषणापत्र भरवाया जाता है कि आवेदक द्वारा दी गई सूचना को प्राधिकरण उपयोग में ला सकता है। इस तरह कार्ड होल्डर की जानकारी हर विभाग के साथ साझा किया जायेगा। कार्ड होल्डर की पूरी जानकारी इलेक्ट्रॉनिक रूप में उपलब्ध रहेगी।
आधार कार्ड बनाने में धांधली को लेकर कानपुर के सिकंदरा तहसील में लोगों ने पैसा देने से मना किया तो उनको आधार कार्ड बनाने से मना कर दिया गया। इसी तरह बलिया जिले के बासडीह तहसील के बकवा गांव में एक 72 साल के बुर्जुग द्वारा पैसा देने से मना करने पर उनका आधार कार्ड नहीं बनाया गया और धक्का दे कर उन्हें भगा दिया गया। इस घटना की लिखित शिकायत बांसडीह तहसीलदार और थाने को दी गई। ईमेल के द्वारा आधार कार्ड निदेशक, बलिया के जिलाधिकारी, गृह सचिव, उ.प्र. सरकार व भारत सरकार के गृह सचिव को देने के बावजूद उस कम्पनी पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। यहां तक कि ये सभी यह भी नहीं बता पाये कि उस क्षेत्र में कौन सी कम्पनी आधार कॉर्ड बना रही है। थाने में पुलिस अधिकारी यह समझा रहे हैं कि हमने भी पैसा देकर बनवाया है, आप भी दे दीजिये। इसी तरह की शिकायत पर फिरोजाबाद में नियम बनाये गये हैं कि आधार कार्ड बनाने वाली कम्पनियां एक सप्ताह पहले अपना ब्यौरा देगी कि किस क्षेत्र में वह आधार कार्ड बना रही है। आधार कार्ड नामांकन शिविर सार्वजनिक स्थलों (स्कूल, पंचायत भवन एवं अन्य सरकारी भवनों) में ही लगने चाहिए, जबकि वे गांव, कस्बों के दबंग व्यक्यिों के घरों पर लगाये जा रहे हैं।
दिल्ली जैसे इलाके में फॉर्म नहीं दिये जा रहे हैं, फॉर्म फोटो स्टेट की दुकान से 5 रु. में खरीद कर लानी पड़ रही है। दिल्ली जैसे शहरों में लाखों लोग किराये के मकान में रहते हैं जिसका पता बदलता रहता है और पता बदलवाने के लिए 100 रुपये चुकाने पड़ रहे हैं।
इस तरह से इस योजना के कार्यान्वयन में हजारों करोड़, का भ्रष्टाचार छुपा हुआ है। आपके डाटा को किस तरह से सुरक्षित रखा गया है और उस डाटा के चोरी होने पर क्या इस्तेमाल होगा, कहा नहीं जा सकता। सरकार डाटा सुरक्षा का आश्वासन देती है, लेकिन उसकी कार्यप्रणाली से ऐसा नहीं लगता, जब सरकार यह नहीं पता कर पा रही है कि किस इलाके में कौन सी कम्पनी आधार कार्ड बना रही है तो वह कैसे पता लगा पायेगी कि किस का डाटा किस रूप में प्रयोग हो रहा है। आधार कार्ड जब पैसे लेकर बनाये जा रहे हैं तो इसे कोई भी अवैध व्यक्ति पैसा देकर बनवा सकता है। इस योजना से आम आदमी को कितना लाभ होगा यह अनिश्चित है, लेकिन कम्पनियों को कितना लाभ होगा यह निश्चित है। आधार कार्ड को कल्याणकारी योजनाओं से क्यों जोड़ा जा रहा है, क्या गरीब लोगों का डाटा सरकार को चाहिए? इस योजना को स्वैच्छिक कह कर स्वीस बैंक में पैसा रखने वालों को छूट दी जा रही है। क्या भविष्य में आधार कार्ड के पहचान पर एक धर्म विशेष व पूंजीवादी विचारधारा के खिलाफ काम कर रहे लोगों को निशाना बनाया जायेगा?
O- सुनील कुमार About The Author
सुनील कुमार, लेखक राजनैतिक सामाजिक कार्यकर्ता व स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।
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