गुरुवार, 1 जनवरी 2015

किसके अच्छे दिन! जिसके अच्छे दिन, वह मनायें जश्न!

नीला आसमान से बहता लावा कि पकी हुई जमीन दहकने लगी, प्लीज हमसे ना कहें नया साल मुबारक!

भारत में अब अबाध विदेशी पूंजी के लिए, अबाध बिल्डर प्रोमोटर राज के लिए अब फिर वही 1884 के भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधान लागू करने का इंतजाम हो गया है।

नया साल शुरु होने से दो दिन पहले भारत में फिर ईस्ट इंडिया कंपनी का राजकाज शुरु हो गया है, एक मुश्त हजारों ईस्ट इंडिया कंपनियों की अरबों डालर के वर्चस्व मध्ये हवाओं, पानियों में भोपाल गैस त्रासदी दुहराया जाने लगा है।

और अब इसे अध्यादेश राज कहा जायेगा। कि नरसंहार जारी रहेगा।

कि मनुस्मृति का गीता महोत्सव और शत प्रतिशत हिंदुत्व का दुस्समय है यह अपना समय कि नया साल मुबारक कहने का मतलब हुआ, आपके चौतरफा सर्वनाश के लिए शुभकामनाएं।

कृपया किसी से न कहें नया साल मुबारक।

खत्म हो रही इंसानियत की कयामत है

खत्म होने को कायनात की कयामत है

फिजां में मौत की खुशबुओं

की बहार है कि कयामत है

लहूलुहान है जिस्म न सही

लहूलुहान है रुह हमारी

हमसे जिस्मानी मोहब्बत

की उम्मीद मत रख

कि हमारी मर्दानगी

मर्दों के राजकाज में

कत्लगाहों की मौज है

और खूबसूरतियां तमाम

बर्बर कातिलों के कब्जे में

दम तोड़ रही है

हम जी नहीं रहे हैं हरगिज

हमारी मुकम्मल खामोशी

हमारे जनाजे के इंतजार में है

बेहया वक्त के ताबूत में कैद हैं हम

नये कंपनी बंदोबस्त के अध्यादेश में खासोआम को खबर हो कि मुलाहिजा फरमाये हुक्म है शाही हिंदू साम्राज्यवादी केसरिया कहर का, जमीन डकैती के लिए किसी की न सुनवाई होगी न नियमागिरि के आदिवासियों को तरह किसी को राय बताने की छूट होगी।

कि जो है धर्मराज्य के हक में, उसका भी काम तमाम है

कि जो इस महाभारत में गीतोपदेश के मुताबिक निमित्तमात्र भारतीय धर्मोन्मादी जनगण है, उसका भी काम तमाम है

हर गैरनस्ली हिंदू कि गैर हिंदू, सवर्ण कि अछूत, बूझै हैं कि न बूझै,

सगरे मुलुक के लिए प्रजाजनों, मौत का पैगाम है

अश्वमेध के घोड़े हुए बेलगाम, सांढ़ों का राज है

त्वाडे नाल राज के वास्ते जिंदा जला देने का पैगाम है कि धर्म और धर्मस्थलकि मजहब और जात पांत नस्ल कातिल के बहाने हैं

त्वाड्डा साड्डा काम तमाम है

मुआवजा जरूर सरकारी हिसाब के मुताबिक दे दिया जायेगा। मुआवजा हर वक्त बांटा जाता है। हर विस्थापन का वायदा फिर मुआवजा है। कि हर बलात्कार का जश्न अब मुआवजा है और हर कत्ल का मुआवजा अब माफीनामा है।

कि अपने अपने घर खाली कर दो, दोस्तों

कि कातिलों को बसेरा चाहिए।

सीमेंट के जंगल में

अपना ठिकाना तलाशों दोस्तों

कि खेतों खलिहानों

रोजी रोटी की मौत का

चाकचौबंद बंदोबस्त है

कि मनुस्मृति राज बहाल है।

लूट के माल का हिस्सा उम्मीद है तो

बेशक खामोशी अख्तियार करो, दोस्तों

वरना चीख सको तो चीखो गला फाड़कर

कि फिर चीखने का मौका मिल न मिले

कयामत मुंह बाँए खड़ी है कि

अबकी तो मुलाकाते हैं

जश्न है, जलवा भी है

रोजी भी है, रोटी भी है

फिर अपना गांव रहे न रहे


फिर मुलाकात हो न हो

हो सके तो मिल लो गले

शायद आखिरी बार

कि किन हादसों के मंजर से

गुजरना पड़े, न जिंदगी का ठौर ठिकाना है

न हम अस्मत किसी की बचाने काबिल

न हमारा कोई फसाना है

उम्मीद फिर वही हरजाना है

खालिस हरजाना है

जीने का फिर वही बहाना है

मजहबी अंधे जो करें, न करें कम है

कब किस इमारत पर टोंके दावा

किसे फिर तबाह कर दे

कब किसे बांटे रेवड़ियां

और कब किस शहर में आग लगा दें

यह देश अब मजहबी आग के हवाले हैं

और हम सारे लोग जनाजे में शामिल है

मोहर्रम पर ईद मुबारक न कहें

भारत में भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन से मुख्यमंत्री बनीं एकमात्र राजनेता ममता बनर्जी ने इसके खिलाफ मोर्चा जरूर जमाया है और सुधारों की महागंगा कांग्रेस भी अब सुधार विरोधी उल्टी दिशा में बहने का दिखावा कर रही है। लेकिन जब तक धर्मोन्माद का यह तिलिस्म खत्म नहीं होता, लगता नहीं कि यह कायमत रुकने वाली है।

कारपोरेट वकील वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अधिनियम में बदलाव लाने के सरकार के फैसले को जायज ठहराते हुए कहा, इस तरह की परियोजनाएं रक्षा के लिए तैयारी एवं रक्षा निर्माण सहित भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। सहमति संबंधी उपधारा के बारे में पूछे जाने पर जेटली ने कहा, अगर भूमि अधिग्रहण पांच उद्देश्यों के लिए किया जाता है तो सहमति की उपधारा से छूट मिल जाएगी। संप्रग के कार्यकाल में अमल में आए कानून के मुताबिक पीपीपी परियोजनाओं के लिए जिन लोगों की भूमि अधिग्रहित की जा रही है, उनमें 70 फीसदी लोगों की सहमति जरूरी है।

इस फैसले के साथ पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन तथा उचित मुआवजे का अधिकार और पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन अधिनियम-2013 में पारदर्शिता 13 मौजूदा केंद्रीय कानूनों के लिए भी लागू होगी। सरकार ने कहा कि जिन मुश्किलों की बात आ रही थी, उनको देखते हुए कैबिनेट ने कुछ संशोधनों को मंजूरी दी है।

जब मौत सर पर मंडरा रही हो तो कातिलों के लिए जश्न का मौका होता है, मारे जाने वालों की चीखें तक निषिद्ध हो जाती हैं।

अब इस केसरिया हिंदू साम्राज्य में चीखने, रोने और पुकारने की भी आजादी नहीं है।

नया साल इसके बावजूद मुबारक हो तो मनाइये जश्न बाशौक।

कृपया हमें न कहें, या हमरी दीवाल पर हरगिज न टांगें नया साल मुबारक।

किसके अच्छे दिन!

जिसके अच्छे दिन, वह मनायें जश्न!

बाकी देश के लिए तो मंजर कयामत है।

फिजां कयामत है।

जिंदगी का दूसरा नाम कयामत है।

नया साल फिर फिर कयामत का इंतहा है।

नीला आसमान से बहता लावा कि पकी हुई जमीन दहकने लगी, हमसे कोई न कहें नया साल मुबारक!

नये साल से ठीक दो दिन पहले आर्डिनेंस राज बहाल हो गया है। यह कोई मुझ जैसे नाचीज का मंतव्य नहीं है।

तमाम विशेषज्ञ जिस इकोनामिक टाइम्स के पन्नों पर भारतीय अर्थव्यवश्ता में दौड़ते सांढ़ों की नब्ज टटोलते रहते हैं, उस अखबार की चीखती हुई सुर्खियां बता रही हैं कि दरअसल नया साल किस तबके के लिए बेहद बेहद मुबारक होने वाला है।

Ordinance Raj Begins, 2 Days Ahead of 2015

केंद्र सरकार ने आज भूमि अधिग्रहण संशोधन अध्यादेश को मंजूरी दे दी। इस अध्यादेश के तहत सरकार ने ज़मीन अधिग्रहण की मौजूदा शर्तों में ढील देते हुए काफी आसान बना दिया है।

हमारे पाठकों को याद होगा कि भूमि अधिग्हण की इन तैयारियों के बारे में हमने पूरा ब्यौरा हस्तक्षेप पर कई दिनों पहले लगाया है, ईटी ने हमारी आशंकाओं पर मुहर ठोंक दिया है। हमने वह आलेख अंग्रेजी में लिखा था।

बहराहाल, वित्त मंत्री अरूण जेटली ने बता दिया है कि सरकार ने बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को सरल बनाने के उद्देश्य से भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन का अध्यादेश लाने का फैसला किया है।

वित्मंत्री गरीब गुरबों और बेगर लोगों को सब्जबाग यह दिखा रहें है कि जैसे लाकों करोड़ों के प्लैटों की खैरात बंटने वाली है। उनके कहे मुताबिक इस निर्णय से दिल्ली में रहने वाले 60 लाख से अधिक लोगों को फायदा होगा। सरकार ने संसद के शीतकालीन सत्र में अनधिकृत कालोनियों में सीलिंग पर तीन साल के लिए रोक लगाने से जुडे विधेयक को भी पारित कराया था। उन्होंने कहा कि किसानों को मुआवजे से जुडे प्रावधानों में कोई संशोधन नहीं किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक में केंद्रीय कैबिनेट ने अधिनियम के दायरे में 13 केंद्रीय कानूनों को लाने के लिए संशोधन का फैसला किया है। जिन कानूनों में बदलाव की बात की गई, उनमें रक्षा एवं राष्ट्रीय सुरक्षा, किसानों को अधिक मुआवजा प्रदान करना और पुनर्वास एवं पुनस्र्थापन से संबंधित कानून शामिल हैं।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि सरकार ने समाज की विकास संबंधी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अधिनियम के कुछ प्रावधानों में रियायत देने और कानून में धारा 10ए को शामिल करने का फैसला किया है।

बहरहाल, इन उद्देश्यों के लिए भूमि अधिग्रहण करने की स्थिति में नए भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत मुआवजा और पुनर्वास एवं पुनस्र्थापन पैकेज लागू होगा। अध्यादेश में जो बदलाव शामिल किए जाने हैं, उनके मुताबिक बहुफसली सिंचाई की भूमि भी इन उद्देश्यों के लिए अधिग्रहित की जा सकती है।

आज भूमि अधिग्रहण आर्डिनेंस से जो मेरे दिलोदिमाग में रक्तपात हो रहा है, उसमें मतुआ आंदोलन के जख्मी लहूलुहान हो जाने का अहसास जितना है, उससे ज्यादा तकलीफ हमारे आदिवासी परिजनों और पुरखों की हजारों साल की लड़ाइयां बेकार हो जाने की वजह से है। तमाम किसान आंदोलनों को गैरप्रासंगिक बना दिये जाने की वजह से है। 1956 और 1958 की तराई की लड़ाइयां, ढठे और सातवें दशक के सारे जनांदोलनों के बेमतलब हो जाने का मातम मना रहा हूं मैं।

अब भूमि अधिग्रहण अबाध है।

अब विदेशी पूंजी और कालाधन अबाध है। यही है गीता महोत्सव।

यही है नये साल के जश्न का मतलब।

किसी की सुनवाई, किसी की सम्मति की कोई जरूरत नहीं है।

नियमागिरि की आदिवासी पंचायतों की राय अब बेमतलब है।

बेमतलब है, संविधान की पांचवीं और छठीं अनुसूचियां, वनाधिकार कानून, पंचायती राज कानून , पर्यावरण कानून, समुद्र तट सुरक्षा कानून वगेैरह वगैरह।

1956 के बाद पुनर्वास के बावजूद बेदखल जमीन का दखल हासिल करने की मेरे गांव के लोगों, मेरे पिता, बसंतीपुर में मेरे दोस्त कृष्णो के पिता गांव के शाश्वत प्रेसीडेंट मांदार बाबू, शाश्वत सेक्रेटरी अतुल शील और शाश्वत कैशियर शिशुवर मंडल की लड़ाई के बेमतलब हो जाने का दर्द है।

- पलाश विश्वास

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