दूसरा भाग है, जो रोजर्मरा के शासन में जन भागीदारी के अहम कारक, जैसे अति-सक्रिय खुलासा, नागरिक सुगमता और शिकायतों का निपटारा तय करने में नागरिकों की मदद कर सकता है। यह लोकसभा में यह बहस और बाद पारित कराए जाने के लिए सूचीबद्ध है। इसे तमाम दलों का समर्थन भी प्राप्त है। इसका अभी तक पारित नहीं किया जाना विडम्बना ही है। व्हिसलब्लोअर विधेयक भी राज्य सभा में पेश किए जाने के लिए सूचीबद्ध है। भारतीय सूचना के अधिकार कानून ने हर भारतीय नागरिक को भ्रष्टाचार के खिलाफ सचेत करने वाला संभावित बना दिया है। आरटीआई कार्यकर्ताओं को निहित स्वार्थो से कितना खतरा है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2007 से अब तक 40 से अधिक आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है। यदि लोग लोकपाल से शिकायत करेंगे तो हत्याओं की संख्या में भारी इजाफा होगा। इसलिए यह साफ है कि यदि नागरिकों को बड़े भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायतें करने के लिए प्रोत्साहित व समर्थित किया गया तो उनकी रक्षा भी करनी होगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन कानूनों के जरिए चीजों को बदल कर कैसे बेहतर कर सकते हैं। आरटीआई आंदोलन की सफलता से इसके कुछ सवालों के जवाब मिलने चाहिएं। आंदोलन और उनके नेताओं को आरटीआई आंदोलन से सबक लेने की जरूरत है। एक संस्कृति को बदलने और शक्तिशाली निहित स्वार्थो को काबू करने के लिए आम नागरिक का शाश्वत दबाव व सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। यह केवल एक कानून के जरिए हो सकता है जब लोग इसे बनाएंगे और इस्तेमाल करेंगे। वर्ष 2014 में भारत को बेहद चौकस रहना होगा, विरोध का काबू करना होगा और बकाया पड़े विधेयकों को लागू करना होगा। लोगों के आंदोलनों को समझे जाने की जरूरत है। यह वादा करना मूर्खता होगी कि एक कानून सभी समस्याओं को हल कर देगा और लोगों को बिना कुछ करे धरे सुशासन मिल जाएगा। सभी राजनीतिक दलों को यह समझने की जरूरत है कि अब वे इस संकट का सामना कर रहे हैं कि क्या लोगों को अब उनकी जरूरत है। वे देख रहे हैं कि अब उन्हें आम आदमी की बुद्धिमता और सक्रियता का सामना करना होगा
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