हमारे देश को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का दर्जा यूं ही नहीं मिला हुआ है। उसके लिए हमारे देश के जागरूक और दूरदर्शी राजनीतिज्ञों ने अथक प्रयास किए हैं। उनके इन भगीरथी प्रयासों के परिणामस्वरूप ही हमारे देश की राजनीति का स्वरूप इतना बहुआयामी बन पाया है। इसके अनेक रंग हैं। जैसे, समाज में भले ही गड़े मुदरें को अच्छा नहीं समझा जाता हैं, उनसे बराबर परहेज रखने की बात की जाती है पर हमारी राजनीति में उन्हें अवसर के अनुकूल गले लगाया जाता है। उन्हें ऊंचा स्थान प्रदान किया जाता है। उन्हें बहुत आदर के साथ देखा जाता है। उन्हें हिफाजत से सुरक्षित जगह पर रखा जाता है, सहेजा जाता है। वे राजनीतिज्ञों की आंख का तारा होते हैं। ज्ञानीजन बताते हैं कि गड़े मुदरे में अपार शक्ति होती है। बस किसी को भी उसका सही इस्तेमाल करना आना चाहिए। जिस प्रकार कापालिक, तांत्रिक, अघोरी श्मशान जगाते हैं, ठीक वैसे ही राजनीति में राजनीतिज्ञों को गडे मुदरें को जाग्रत करने के लिए बयान, आरोप आदि की साधना करना पड़ती है। राजनीति के गड़े मुर्दे नाना प्रकार के पाए जाते हैं। इनमें कुछ व्यक्तिगत जीवन के गड़े मुर्दे होते हैं तो कुछ सार्वजनिक जीवन के। कुछ पार्टी पर आधारित गड़े मुर्दे हो सकते हैं तो कुछ पार्टी की मातृ संस्था या सहयोगी संगठन के भी गड़े मुर्दे हो सकते हैं। गड़े मुर्दे अनेक विशेषताओं से सम्पन्न होते हैं। इनसे जमीन मजबूत की जाती है। कारण, ये जमीनी पकड़ बढ़ाने में भी बहुत सहायक सिद्ध होते हैं। गडे मुदरे की बुनियाद पर सत्ता की भव्य इमारत का मजबूती से निर्माण किया जा सकता है। इनकी उंगली पकड़कर बड़ी सरलता से कुर्सी तक पहुंचने की पतली गली खोजी जा सकती है। गड़े मुर्दे का चेहरा दिखाकर मतदाताओं को रिझाया जा सकता है। इनकी याद दिलाकर मतदाताओं से वोट झटके जा सकते हैं। इनके कंधे पर हाथ डालकर, इनका सहारा लेकर लालबत्ती में प्रवेश किया जा सकता है। गड़े मुदरें के स्मरण मात्र से ही सत्ता सुंदरी के सपने देखे जा सकते हैं। गड़े मुर्दे खेवनहार होते हैं। वह चुनावी भंवर में फंसी पार्टी की नैया को किनारे लगाने तक की क्षमता रखते हैं। गड़े मुर्दे के पारखी नेताओं की पार्टी में खूब पूछ परख होती है। उन्हें स्टार का दर्जा प्राप्त हो जाता है। कौन सा मुर्दा कहां गड़ा है और उसे कब कहां से निकालना है और किस प्रकार किस कोण से उसे जनता के सामने प्रस्तुत करना है, इस प्रकार की गूढ़ जानकारी रखने वाले नेतागण पार्टी के थिंक टैंक का दर्जा पा जाते हैं। ऐसे नेता पार्टी की नीतियां तय करते हैं। जिस प्रकार महाभारत में भीष्म पितामह को पराजित करने के लिए शिखंडी को गुप्त रूप से रथ पर ले जाया गया था, उसी प्रकार चुनावी महाभारत में गड़े मुर्दे को सभाओं, रैलियो में ले जाया जाता है। जिसे देखकर प्रतिद्वंद्वी के होश फाख्ता हो जाते हैं। उनके पैरों के तले जमीन खिसक जाती है। उनसे जवाबी हमला करते नहीं बनता। इस प्रकार के संग्राम में यह भी देखा गया है कि कई बार विरोधी पक्ष भी अपने रथ पर किसी गड़े मुर्दे को धर लाते हैं। ऐसी स्थिति में दोनों ओर के गड़े मुदरे का रोचक युद्ध देखने को मिलता है। कई बार प्रतिद्वंद्वी का गड़ा मुर्दा आप पर भारी हो सकता है। कई बार गड़े मुर्दे बेकाबू भी हो जाते हैं और उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है। इसलिए विशेषज्ञों का मत है कि गड़े मुदरे का प्रयोग किसी कुशल गुरु की देखरेख में ही संपादित करना चाहिए । गड़े मुदरे के पक्के खिलाड़ी उनका भली भांति उपयोग कर वापस ले आते हैं और उसे ऐसी जगह पर फिर से दफन कर देते हैं जहां से वक्त जरूरत पड़ने पर इन्हें आसानी से निकाल सकें। दूरदर्शी नेताओं की यही तो पहचान होती है।
-मृदुल कश्यप
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