गुरुवार, 12 जून 2014

विकास कि गंगा में समाहित हो रहा एक गांव

अब्दुल रशीद

"विकास का मतलब आज क्या यह हो चला के मानवीय संवेदना को ही भूला दिया जाए? यदि ऐसा है तो आखिर ऐसा विकास किस के लिए?कहीं ऐसा तो नहीं के आदिवासियों और गरीब लोगों की गिनती महज़ वोट के लिए होता है लेकिन मानव के रुप में नहीं। क्योंकि आजाद भारत में हर व्यक्ति को मूलभूत सुविधा पाने का हक़ होता है बशर्ते उसकी गिनती मानव में हो। तो क्या मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले का मुडवानी बस्ती के अनुसूचित जनजाति के लोग आजाद भारत की सीमा से बाहर है या खानाबदोश के रुप में जिंदगी बसर करना ही इनका मुकद्दर है।" 

सिंगरोली जिला मुख्यालय वैढन से महज 10 किलोमीटर दूर एवं मोरवा रास्ते पर पहाडी तलहटी मे एक ऐसी बस्ती है जिसका अस्तीत्व मिटने वाला है। अनुसूचित जन जाति मे सुमार बैगा जाति के लोगों से आबाद लगभग 60परिवारों वाली इस वस्ती के भाग्य मे बार बार उजडना ही लिखा है।2012 की वर्तमान इस वरसात के बाद जाडा शुरू होते होते इनका उजडना एक बार फिर तय हो चुका है।आबाद इस बस्ती की सभी झुग्गी झोपडीयां एनसीएल की निगाही परियोजना से निकल रहे ओवी की जद मे आ चुके हैं।अपनी प्लानिग के अनुसार यह परियोजना ओवी डम्प करती है तो दो चार घर छोड समुची बस्ती ओवी के अन्दर दब जायेगी।

ज्ञातव्य हो कि वर्तमान स्थिति से अभी लगभग हजार मीटर का मूडवानी पूर्वी इलाका औवी मे समाहित होने वाला है।ऐसे मे यदि इन्हें पुनर्वासित न किया गया तो ये लोग कहॉं जायेंगे।कहना मुश्किल है कि अत्यंत निर्धन होने कारण अपना रैन बसेरा कैसे बना पायेगें।जंगली उपज व महुवा या महुवा की शराब ही इनकी जिविका के साधन है।पत्ता से पत्तल व दातून बेच कर जहॉं एक जून की रोटी नहीं जुटा पा रहे हैं वहीं वनकर्मीयों के उत्पीडन के कारण सुखी लकडी भी बेच पाना मुश्किल हो गया है। 
प्रशासन के कागजातों में उन्हें पुरी सुविधा उपल्ब्ध है परन्तु वर्तमान की हकीकत कुछ और ही बयॉं कर रहा है।लगभग 325 की जनसंख्या वाले नामजद 62परिवार के लिये प्रशासन की तरफ से लगभग 60 सौर्यऊर्जा लैम्प लगाये गये हैं परन्तु सभी के सभी नकारा हो चुके हैं। एन सी एल द्वारा 5 हैन्डपम्प भी लगे हैं परन्तु इस मे से कोई काम नही कर रहा। अनुसूचितजाति जनजाति के राष्टी्रय अध्यक्ष का दौरा हुए भी लगभग एक पखवारा बीत चुका है और उनके आश्वासन भी हवा हवाई साबित हो रहे हैं।
मुखिया के रूप मे जानेजाते इस वस्ती के छोटे लाल बैगा की जुबानी मुडवानी वस्ती सरकारी उपेक्षा का शिकार शुरू से ही रही है।सन 1969में सिचाई विभाग द्वारा इनसे 350रूपये एकड जमीन अधिग्रहित की गयी और 1975 मे इनकी शेष जमीन 800 रूपये प्रति एकड दे कर एनसीएल द्वारा ले ली गई।इनकी विपत्ति का अन्त यहीं नही हुआ।इनके द्वारा कथित अनाधिकृत भूअतिक्रमण पर तहसील द्वारा 5 जुलाई 1977 में 25 रूपये का चलान भी वसुला जा चुका है।न तो सिचाई विभाग ने और न ही एन सी एल ने कुछ भी आजिविका के संसाधन दिये। न नौकरी .न प्लाट केवल आर्थिक मुवावजा। 11 मई 2012 को जिला कलेक्टर और ठीक चार महीने बाद 12 सितंबर 2012 को राष्टी्रय अध्यक्ष अनुसूचित जाति जन जाति का आगमन इस वस्ती मे हो चुका है।
 
कहते है कि दुनियां उम्मीद पर कायम है शायद यही वज़ह की एक बार फिर उजड जाने की राह पर खडे इस बस्ती के मानव सा दिखने वाले ये लोग सरकार की तरफ उम्मीद लगाये बैठे हैं।
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Posted: 03 Oct 2012 06:41 PM PDT


राजेन्द्र अग्रहरी 
हालात की मारी चंबल घाटी की कुख्यात दस्यु सुंदरी फूलन देवी की तरह दूसरी और कई दस्यु सुंदरियां भी राजनीति मे आने के लिए लालायित नजर आ रही हैं। इसी कड़ी में ताजा नाम रेनू यादव का जुडऩे जा रहा है। रेनू यादव चंबल घाटी में अपने आतंक और खूबसूरती के कारण खासी चर्चा में रही हैं लेकिन अब समाजवादी पार्टी के जरिए राजनीति में आने का सपना देख रही हैं।

अपने इसी सपने को साकार केरने के लिए उत्तर प्रदेश के कैबनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव से मिलने के लिए बीते शुक्रवार को सैफई पहुंची पूर्व दस्यु सुन्दरी रेनू यादव को देखने के लिए लोगों का तॉता लग गया। हर कोई उसकी एक झलक पाने को बेताब रहा। जींस पेन्ट और शर्ट पहने सैफई पहुंची पूर्व दस्यु सुन्दरी रेनू यादव ने बातचीत में कहा कि उसे दस्यु सुन्दरी बनाने वाली पुलिस है। उन्होंने कहा कि पुलिस मुझे बदमाशों के चंगुल से आजाद तो करा नहीं सकी बल्कि उसे दस्यु सुन्दरी बना दिया जबकि न्याय पालिका ने मुझे पूरी राहत दी और मेरे साथ न्याय किया। 29 नबम्बर 2003 को स्कूल जाते समय रेनू यादव को दस्यु चन्दन यादव ने अपहरण कर लिया था।

उसके पिता ने पुलिस से उसे छुड़ाने के लिए गुहार लगाई लेकिन पुलिस ने कोई मदद नहीं की। रेनू यादव का मानना है कि आज समाजवादी पार्टी की सरकार आने के बाद हर किसी को न्याय की आस बंधी है ऐसे में उन्हें भी उम्मीद है कि जरूर न्याय मिलेगी। मालूम हो कि 29 नबम्बर 2003 को स्कूल जाते समय रेनू यादव को दस्यु चन्दन यादव ने अपहरण कर लिया था। उसके पिता ने पुलिस से उसे छुड़ाने के लिए गुहार लगाई लेकिन पुलिस ने कोई मदद नहीं की। दूसरी तरफ अपहरण के बाद फिरौती के लिए रेनू को डकैतों के प्रताडऩ और उत्पीडऩ की शिकार होना पड़ा, इतना ही नहीं पुलिस की सूची में उसका नाम भी गिरोह में शामिल कर दिया गया।

रेनू का कहना है कि पुलिस ने भी अपनी नाकामी छिपाने के लिए मुझे भी गैंग का सदस्य मानकर मुझे दस्यु सुन्दरी का खिताब दे डाला। रेनू यादव ने घटना को याद करते हुए कहा कि 4 जून 2005 को दस्यु चन्दन यादव और दस्यु रामवीर गुर्जर की मुठभेड़ में चन्दन यादव के मारे जाने के बाद दस्यु रामवीर गुर्जर ने मुझे और गैंग को बन्धक बना लिया और मुझे अपनी बदनियती का शिकार बनाने की कोशिश की तो मैंने अपनी इज्जत बचाने के लिए मौत की घाट उतार दी और मौका पाकर वहं से भाग निकली। वहीं इस घटना के बाद रामवीर गुर्जर ने हमारे गैंग के तीन सदस्यों को लाइन में खड़ा कर हत्या कर दी थी।

सात दिन तक मैं बीहड़ में भटकने के बाद अपने गांव जमालीपुर आ गयी और गांव में रहने लगी तो तत्कालीन एसएसपी दलजीत सिंह चौधरी इटावा ने कोतवाली प्रभारी और एसओजी प्रभारी ने मुझे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। 29 मई 2012 को सात वर्ष तीन माह 15 दिन की अदालती कार्यवाही झेलने के बाद मैं नारी बन्दी निकेतन लखनऊ से रिहा की गयी। मालूम हो कि इटावा और औरैया पुलिस के रिकार्ड के अनुसार रेनू यादव का नाम डाकू सूची में आज भी दर्ज हैं। रेनू यादव के खिलाफ दोनों जिलों मे करीब 15 आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमे पुलिस मुठभेड के साथ आगजनी, हत्या के प्रयास के अलावा लूट जैसे वारदातों को अंजाम देने जैसे मामले हैं।

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