गुरुवार, 12 जून 2014

गांधीजी की वसीयत...

वर्तमान में भारत सहित पूरे विश्व में जारी राजनीतिक, आर्थिक, वैचारिक उथल-पुथल के इस दौर में इस बात को दोहराने की आवश्यकता नहीं कि गांधीजी के विचारों की प्रासंगिकता कितनी शिद्दत से उभरती है.  गांधीजी के विचार जिनकी प्राथमिक झलक उनकी पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ से मिलती है से न सिर्फ भारत बल्कि समस्त विश्व को सर्वांगीण स्वराज की दिशा मिलती है. मगर गांधीजी के विचारों की एक मुख्य खासियत यह है कि वो मात्र सैद्धांतिक ही न होते हुए व्यावहारिक रूप से अमल करने का मार्ग भी दर्शाता है. शायद तभी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जिससे वो राजनीतिक रूप से जुड़े थे की उन्होंने ‘लोक सेवक संघ’ के रूप में परिकल्पना की थी; जो हरिजन’ में ‘हिज लास्ट विल एंड टेस्टामेंट’ के शीर्षक से प्रकाशित हुआ था.....

राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त कर चुकने के बाद वो एक संसदीय तंत्र के रूप में कॉंग्रेस की कोई भूमिका नहीं देखते थे. उनका अगला लक्ष्य अपने गांवों को सामाजिक, नैतिक और आर्थिक स्वाधीनता हासिल कराना था. स्वदेशी समर्थक, छुआछूत - सांप्रदायिक वैमनस्य से रहित कार्यकर्ताओं द्वारा पंचायत को इकाई मानते हुए गाँवों के सर्वांगीण विकास द्वारा प्राथमिक स्तर से उच्चतम स्तर तक विकास के क्रम को सुनिश्चित करवाना उनका लक्ष्य था.

निःसंदेह गांधीजी की हत्या के बाद सुनियोजित ढंग से उनके विचारों की हत्या के भी निरंतर प्रयास होते रहे, फिर भी विभिन्न कारणों से विभिन्न राजनीतिक संस्थाओं द्वारा अपने कई विचारों के साथ ‘गाँधीवादी’ सदृश्य उपमा भी जोड़नी ही पड़ी...
आज देश में कोई और संगठन तो गांधीजी की इस अंतिम इच्छा को एक बड़े पैमाने पर उतारने को इच्छुक और समर्थ तो दिखता नहीं. फिर भी मन में कहीं एक विचार है जिसके मूर्त रूप में उतर पाने की संभावना नगण्य देखता हुआ भी कहना तो चाहूँगा ही. कहते हैं गांधीजी ने 1934 में वर्धा प्रवास के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा का अवलोकन किया था, जहाँ वे उसके स्वयंसेवकों की अनुशासन और गैरजातिवादी भावनाओं से काफी प्रभावित भी हुए थे. मगर उनके जैसे दूरदर्शी व्यक्ति ने कुछ सोचकर ही इसी तर्ज पर एक पृथक ‘लोक सेवक संघ’ की स्थापना की परिकल्पना पर विचार किया होगा. अगर राष्ट्रसेवा को समर्पित, गांधीजी के विचारों पर आधारित एक अति शक्तिशाली संगठन अस्तित्व में होता तो आज इस देश का वर्तमान कुछ और ही होता..........
खैर इतने बड़े स्तर पर न सही मगर गाँधीवादी विचारों को व्यवहार में लाने के यथासंभव प्रयास पूरे देश में किसी - न - किसी स्तर पर तो चल ही रहे हैं, जो अक्सर हमारी आँखों के सामने से गुजरते रहते हैं. हम चाहे इस दिशा में इतनी बड़ी भूमिका न निभा सकें मगर व्यक्तिगत रूप से ही गाँधीवादी सिद्धांतों को यथासंभव अपने अंदर ही उतारने की सच्ची कोशिश करें तो गांधीजी के बलिदान के प्रति यह हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी.....

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