गुरुवार, 12 जून 2014

शादी एक पवित्र रिश्ता

शादाब ज़फ़र‘‘शादाब"

बात सन् 1999 की है मण्डी हाऊस के नजदीक नई देहली स्थित रूसी ऑडीटोरियम के सभागार में बालकन जी बारी इन्टरनेशल नई दिल्ली द्वारा आयोजित देश भर से आये कवि शायरो के सम्मान समारोह का कार्यक्रम चल रहा था। मुझे भी इसी वर्ष इस संस्था ने मेरी काव्य रचना पर राष्ट्रीय कविता अवार्ड से सम्मानित किया था। उस वक्त तक मेरी शादी नही हुई थी। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारत सरकार में उस समय कैबिनेट श्रम मंत्री माननीय शांता कुमार जी थे। ज्यादातर हम सम्मानित कवि शायरो में अविवाहित ही थे। शायद शांता कुमार जी ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगो का गहनता से अध्यन किया था। अपने संबोधन में सब से पहले कार्यक्रम में शामिल उन्होने अपनी पत्नी का सब लोगो से परिचय कराया और बोले की मेरे प्यारे बच्चो आज मेरा सौभाग्य है कि मुझे आप लोगो के बीच आने और बोलने का मौका मिला बूढे लोग हमेशा बच्चो को कुछ न कुछ सीख जरूर देते है मेरा मन भी कर रहा है कि आज आप को कोई ऐसी सीख दूँ जो आप लोगो के जीवन में आप के काम आये। बच्चो जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में ये दो काम नही किये उस का जीवन अधूरा रहने के साथ ही उसने जिन्दगी के वो हसीन पल महसूस ही नही किया जो जीवन में सब से अनमोल होते है। जो व्यक्ति अपने जीवन में बच्चो के संग बच्चा बन के न बोला हो। और दूसरा जिसने अपनी पत्नी के साथ कीचन में मिलकर खाना न बनाया हो। पूरे सभागार में ठहाका गूंज उठा। वो कुछ देर रूक कर बोले में अक्सर अपनी पत्नी के साथ जब कभी भी मुझे देष और राजनीति से वक्त मिलता है कीचन में जाकर खाना बनाता हॅू। इस से आपस में हम पति पत्नी के बीच प्यार बढता है। बेहतर और खुशनुमा शादी शुदा जिन्दगी के लिये ये बेहद जरूरी है। 

शांता कुमार जी की एक बात पर मैने तुरन्त घर आकर अमल कर लिया सच बच्चो के साथ बच्चो वाली तोतली जबान में बोलकर बडा ही आन्नद आया मगर दूसरी बात में अभी वक्त था। मैने दिल को समझाया इसे पूरा होने में अभी वक्त लगेगा कितना लगेगा में खुद नही जानता था। पर जब 25 अप्रैल 2002 को मेरी शादी हुई तो मुझे शांता कुमार जी की बात याद थी। पर संयुक्त परिवार में रहकर ये सब करना माना लोहे के चने चबाने जैसा था। धीरे धीरे वक्त बीता घर में बिटिया का जन्म हुआ इसी दौरान वो वक्त आ गया जब मुझे अपनी पत्नी के साथ कीचन में खाना बनाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जैसा शांता कुमार जी ने कहा था बिल्कुल वैसा ही हुआ। एक अलग प्रकार के प्यार की अनुभूति प्राप्त हुई और हम दोनो में मुहब्बत भी बढी। अक्सर देखने और सुनने में ये आता है कि षादी वो लड्डू है जो खाये वो पछताए जो न खाये वो भी पछताए। दरअसल प्यार उमंग की वजह से शादी शुदा जिन्दगी में कदम रखने वाले जोडे शादी के बाद की जिम्मेदारिया अच्छी तरह से न निभा पाने की वजह से कुछ ही दिनो में परेशान हो उठते है जिस का असर नये शादी शुदा रिश्ते पर पडता है क्यो कि शादी का दूसरा नाम है जिम्मेदारी। शादी से पहले जिस जीवन को लडका लडकी जी कर आते है दोनो में जमीन आसमान का फर्क होता है। शादी के पहले की दुनिया आसमान से चॉद तारे तोड कर लाने की होती है वही शादी के बाद दोनो का जमीनी हकीकत से सामना होता तो छोटी बातो और छोटी मोटी फरमाईशो पर दोनो के बीच झगडा शुरू हो जाता है आपसी बहस और तकरारो का सिल सिला चल पढता है। तमाम चीजो के बीच रिश्तो में तालमेल के साथ खुशहाली बनाए रखने के लिये आर्थिक मजबूती के लिये पैसा ही जरूरी नही होता प्यार और स्नेह भी काम आता है। मैने यह आजमा कर देख लिया कि शादी शुदा जिन्दगी में अचानक आई सुनामी में शांता कुमार जी का फार्मुला रामबाण का काम करता है। 

बेहतर और खुशनुमा शादी शुदा जिन्दगी के लिये ये भी बेहद जरूरी है कि पति पत्नी एक दूसरे की भावनाओ और इच्छाओ को खुले दिल से समझने के साथ ही उनका आदर सम्मान करे और एक दूसरे को महत्व दें। ज्यादातर देखने में आता है कि हम रोजमर्रा के जीवन में गुजरते वक्त के साथ ही अपने लाइफ पाटर्नर के साथ सामान्य शिष्टाचार भी भूल जाते है। जबकि आप के द्वारा आफिस या घर से बाहर जाते वक्त पत्नी को आई लव यू या आफिस से आने के बाद प्यार से चूमने के बाद आई मिस यू कहना आप की शादी शुदा जिन्दगी मे कितनी खुशहाली और मजबूती ला सकता है इस का आप प्रयोग कर के देख सकते है। अपनी शादी के शूरू के दिनो की बाते सोचता हॅू और फिर अपने आज को देखता हॅू तो संतुष्टि का अहसास होता है। ऐसा नही कि हमारी शादी शुदा जिन्दगी में परेशानिया नही आई। आम लोगो कि तरह हमारे सामने भी आर्थिक परेशानिया थी। जिस की वजह से कई बार हम दोनो में आपस में छोटे मोटे हल्के फुल्के विवाद भी हुए। कई बार मुझे उलझन का अहसास भी हुआ मगर धीरज और आपसी समझदारी से हम दोनो ने वो सब कुछ पा लिया जो हम पाना चाहते थे। आज मान सम्मान पैसा एक बेटा व एक बेटी और सुन्दर सुशील समझदार मेरी लाईफ पार्टनर मेरी बीवी,खुदा का दिया मेरे पास सब कुछ है। शादी के शुरूआती दिनो में हम दोनो पति पत्नी के बीच पैसे और खर्च को लेकर बहस हो जाती थी। एक दिन बैठकर हम दोनो ने इस बात पर चर्चा की के हमारी और बच्चो की क्या क्या जरूरते है। उन्हे किस तरह से पूरा किया जा सकता है। हम दोनो ने एक तरफ घर गृहस्ती की चीजो की खरीदारी की के लिये ऐसी जगहो की तलाष की जहॅा उचित कीमत पर अच्छा सामान मिलता था। दूसरी तरफ आमदनी बढाने के जरिये भी तलाश किये। मैं समाचार पत्र-पत्रिकाओ एंव फीचर एजेंसियो के लिये फीचर कहानिया स्मरण आदि लिखने लगा। वही शायरी के ताल्लुक से देश भर में आल इन्डिया मुशायरो में शिरकत होने लगी। आकाशवाणी नजीबाबाद, दूरदर्शन दिल्ली, लखनऊ, जी टीवी, ईटीवी उर्दू आदि टीवी चैनलो से बुलावे आने लगे। और थोडे ही दिनो में सब कुछ सामान्य हो गया। 

जब आप को लगे कि पैसा आप के प्यार पर हावी हो रहा है और आप की शादी शुदा जिन्दगी में हल्के हल्के दाखिल होने लगा है। आप के प्यार के बीच पैसा ही आपकी लडाईयो की वजह बनता चला जा रहा है। तब आप अपने भविष्य के लक्ष्यो पर फोकस करते हुए अपने जीवन साथी के साथ मनी मैटर्स पर खुलकर चर्चा करे। सारे खर्चे मिल बॉटकर करने में ही समझदारी है। ऐसा करने से अपने शादी शुदा रिश्तो पर इस का रिर्टन आप को तुरंत मिलता नजर आयेगा। लेकिन ये सब किसी एक की जिम्मेदारी नही है जरूरी है कि पति पत्नी दोनो अपनी शादी शुदा जिन्दगी की बेहतरी के लिये बराबरी का प्रयास करे। एक दूसरे से जुडे रिश्तो और रिश्तेदारो का मान सम्मान करे। छुटटी वाले दिन पत्नी और बच्चो को घर के माहौल से बाहर सैर कराने, चाट, बर्गर, आईस्क्रीम या डीनर कराने ले जायें। शादी शुदा जिन्दगी से जुडी उम्मीदो के बारे में गहराई से आपस में बाते करे। बच्चो के कैरियर, संयुक्त परिवार, इन्वेस्टमेंट, बूढे मॉ बाप आदि जरूरी मुद्दो पर कोई गंम्भीर असहमति तो नही। जरूरी है ऐसे तमाम मसलो पर घर में बैठकर ही आपस में बात साफ कर ले। यदि किसी मुद्दे पर अहसहमति है तो उसे दोनो आपस में ही सुलझा ले तीसरे व्यक्ति के पास बात जाने से घर के भेद खुलने और बदनामी का डर रहता है। ऐसे में हमे ‘‘हम’’ कि भावना से बाहर आकर एक दूसरे को अपने अनुसार जीवन जीने के लिये भी प्रोत्साहित करना चाहिये। सोच समझ कर फैसला करने से शादी शुदा जिन्दगी की नीव सदैव मजबूत रहने के साथ ही आपस का प्यार भी बूढापे तक जवां और तरो ताजा रहता है।

लेखक- शादाब जफर ‘‘शादाब’’ सह-संपादक
राष्ट्रीय हिंदी समाचार पत्रिका नजीब टाईम्स
नजीबाबाद(बिजनौर) उत्तर प्रदेश। संपर्क-09319388015

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