गुरुवार, 12 जून 2014

क्या भारत एक हो पाया है अभी तक?

भारत एक देश या देशों के बिच में एक मजाक 

बहुत सुना की भारत गांवों का देश है. भारत प्रदेशों का देश है. भारत में विभिन्नता है पर इस विभिन्नता में भी पूरी एकता है. भारत एक है. हम सभी भारतीय एक हैं. हमें ये एकता बना कर रखनी चाहिए. 

लेकिन क्या सच में हम एक हैं? क्या भारत एक हो पाया है अभी तक?

भारत में कई प्रदेश ऐसे हैं जो सरहद वाले प्रदेश हैं. फिर चाहे वो गुजरात हो या अरुणांचल प्रदेश, चाहे वो जम्मू कश्मीर हो या मिजोरम. पर क्या सारे सरहद वाले प्रदेशों को भारत में सामान अधिकार प्राप्त हैं. अब इतना तो हम जानते ही हैं की भारत का कुल १५,१०७ किलोमीटर का हिस्सा अपने पडोसी देशों के साथ सरहद के रूप में जुड़ा हुआ है. पाकिस्तान के साथ भारत का करीब ३३२३ किलोमीटर का हिस्सा सरहद के रूप में जुड़ा हुआ है वहीँ बंगलादेश के साथ भारत का करीब ४०९६ किलोमीटर का हिस्सा सरहद के रूप में जुड़ा है. चाइना के साथ ४०५७ किलोमीटर, म्यांमार (बर्मा) के साथ १६४३ किलोमीटर, भूटान के साथ ६९९ किलोमीटर तथा नेपाल के साथ १७५१ किलोमीटर का हिस्सा भारत में सरहद के रूप में है.

अब कुछ भी कहने से पहले आइये हम देखते हैं की किस देश से भारत के किस प्रदेश का कितना बड़ा सरहद जुड़ा हुआ है. 

१. अब सबसे पहले हम हमारे धुर विरोधी पाकिस्तान से लगने वाले सरहदी प्रदेशों का आंकलन करते हैं.

पंजाब - ५४७ किलोमीटर जिसमे से १५२ किलोमीटर नदी का हिस्सा है,
राजस्थान - १०३५ किलोमीटर
गुजरात - ५१२ किलोमीटर
जम्मू-कश्मीर - १२१६ किलोमीटर जिसमे से ८ किलोमीटर नदी का हिस्सा है लेकिन वास्तविक और मौजूदा स्थिति के आधार पर मात्र ७९० किलोमीटर ही सरहद का हिस्सा है जम्मू-कश्मीर का

२. अब देखते हैं की तिब्बत के साथ भारत का कितना हिस्सा सरहद के रूप में जुड़ा हुआ है

जम्मू-कश्मीर - १५७० किलोमीटर 
हिमांचल प्रदेश - २०० किलोमीटर
उत्तर प्रदेश - ३४५ किलोमीटर
सिक्किम - २०० किलोमीटर
अरुणांचल प्रदेश - ११२५ किलोमीटर

३. तीसरा नंबर आता है हमारे पडोसी देश म्यांमार (बर्मा) का और इसके साथ सरहदी हिस्सा

अरुणांचल प्रदेश - ५२० किलोमीटर
मणिपुर - ३९८ किलोमीटर
मिजोरम - ५१० किलोमीटर
नागालैंड - २१५ किलोमीटर

४. हमारे देश की सरहद हमारे एक और पडोसी भूटान से भी मिलती है लेकिन कितनी और किससे-किससे

सिक्किम - ३३ किलोमीटर
वेस्ट बंगाल - १७५ किलोमीटर
आसाम - २६५ किलोमीटर
अरुणांचल प्रदेश - १७० किलोमीटर 

५. विश्व का एक मात्र बचा हुआ हिन्दू राष्ट्र और हमारी सेना में महती भूमिका निभाने वाला नेपाल भी हमारा पडोसी देश है

उत्तर प्रदेश - ८४५ किलोमीटर
बिहार - ७२५ किलोमीटर
वेस्ट बंगाल - ९२ किलोमीटर
सिक्किम - ८५ किलोमीटर

६. अब एक और पडोसी देश जो हमारे लिए एक बड़ा सरदर्द भी बनता जा रहा है और हम उसे लगातार पीछे छोड़ते जा रहे हैं

वेस्ट बंगाल - २२१७ किलोमीटर जिसमे से ११८२ किलोमीटर जमीनी सरहद और ३३५ किलोमीटर नदी का हिस्सा 
आसाम - २६३ किलोमीटर जिसमे से १६० किलोमीटर जमीनी और १०३ किलोमीटर नदी का हिस्सा है
मेघालय - ४४३ किलोमीटर
त्रिपुरा - कुल ८६५ किलोमीटर जिसमे से ७७३ किलोमीटर जमीनी तथा ८३ किलोमीटर नदी का हिस्सा
मिजोरम - कुल ३१८ किलोमीटर जिसमे से ५८ किलोमीटर जमीनी और २६० किलोमीटर नदी का हिस्सा

अब इतना देखने के बाद हम कह सकते हैं की भारत के १६ राज्य सरहद रखते हैं अपने पडोसी राज्यों से. लेकिन क्या सारे राज्य एक सा मान और स्थान पाते हैं भारत में. क्यूँ केवल जम्मू-कश्मीर को ही विशेष राज्य का दर्जा दिया जाता रहा है और आज भी बदस्तूर जारी है. जबकि इतना कुछ करने के बाद भी जम्मू-कश्मीर की जनता आज तक भारत को स्वीकार नहीं कर पाई है और आये दिन वहां पाकिस्तान का झंडा फहराया जाता रहता है. जम्मू-कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा फहराना तो दूर कोई भारत माता का नाम तक नहीं लेता है. साथ ही उस समय भी कुछ नहीं बोला गया जब पुरे कश्मीर को हिन्दुओं से खाली कराया गया था. इतना के बाद भी कश्मीरियों को लगातार विशेष राज्य का दर्जा दिया जाना बदस्तूर जारी है और सभी नेता साथ ही बड़ी से बड़ी पार्टी आज भी उस पार्टी को ऊपर उठाने में लगी है जिसने हिन्दुओं को कश्मीर से भगाने में पारिवारिक परंपरा के अनुसार कार्य को बड़ी ही निष्ठां से अंजाम तक पहुँचाया. भारत के दुसरे हिस्से के लोग कश्मीर में अपना घर नहीं खरीद सकते हैं लेकिन कहने को कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है.

अब जरा हम और प्रदेशों को देखें जिनमे अरुणांचल प्रदेश जिस पर चाइना लगातार अपना दावा ठोके जा रहा है. साथ ही सारे उत्तर-पूर्वी राज्यों में क्या हो रहा है ये कोई नहीं जानता है. पुरे उत्तर-पूर्वी राज्यों में लगातार परेसनियाँ आती रहती हैं और हम अपने घरों में बैठे किसी फिल्म स्टार या किसी दिल्ली के बलात्कार की ख़बरें देखते रहते हैं. कभी आसाम के जरिये बंगलादेशी भारत में घुस आते हैं तो कभी म्यांमार के दंगे का दंश भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य झेलते हैं. कभी इन प्रदेशो के सरहद पर बाड़ा लगाने पर भी ध्यान नहीं दिया जाता है और न ही वहां के गरीबों का ध्यान रखा जाता है. अगर लोग उत्तर-पूर्वी राज्यों में जंगलों में भटक रहे हैं तो भटकते रहें लेकिन ध्यान तो एक ही जगह केन्द्रित रहेगा केवल. यहाँ तक तो ठीक है पर जरा ये भी देखें की उत्तर-पूर्व के अलावा पुरे भारत में उत्तर-पूर्वी नागरिकों को एक विदेशी की दृष्टि से देखा जाता है तथा खुद सरकारी महकमे के लोग उन्हें उनके अपने अलग और स्वक्क्षंद पहनावे के चलते वासना की दृष्टि से देखते हैं. इसके पीछे क्या कारण हो सकता है की अपने ही देश में कोई देशवासी विदेशियों की तरह देखा जाये.

यही हालत हमारे राजस्थान और गुजरात में भी है जहाँ मरू-रेतीली भूमि होने के बाद भी सीमा सुरक्षा बलों के साथ-साथ हमारे देश के आम आदमी सरहदों की रक्षा में रात-दिन एक किये रहते हैं. लेकिन बदले में उन्हें मिलता क्या है तो जो राज्य सरकार दे दे. यहाँ तक की इस रेतीली भूमि पर पानी लाने के लिए गाँव वासियों को पता नहीं कितने ही दूर का सफ़र तय करना पड़ता है उस तपती रेत पर नंगे पैरों से.

उत्तर प्रदेश, बिहार, सिक्किम और वेस्ट बंगाल ये चारों ही राज्य एक साथ एक बहुत बड़ा हिस्सा रखते हैं सरहद के रूप में पर क्या मिलता है इन चारों राज्यों को ये हम सभी देखते हैं. लेकिन क्या जम्मू-कश्मीर के अलावा हम और कहीं पर देश-विरोधी कार्य देखते हैं. इस सवाल का जवाब एक ही होगा की हाल ही में हुए आसाम दंगे से पहले तक तो बिलकुल भी नहीं. बल्कि अगर असल में देखें तो ये दंगा भी क्यूँ हुआ ये हम सभी जानते हैं. क्यूंकि सरहदी प्रदेश होने के बाद भी इन प्रदेशों को कोई तरजीह नहीं दी जाती है.

अब जरा एक और वाकिया देखते हैं जो बहुत ही मजेदार है. जिस काम को कश्मीर के मुसलमानों ने किया मतलब पुरे कश्मीर को हिन्दुओं से खाली कराया चाहे जान से मार कर या औरतों का बलात्कार करके वो भटके हुए कहे गए लेकिन वहीँ जहाँ सदियों से बसे उत्तर-पूर्वी के बासिंदों के जमीनों पर बांग्लादेशियों को बलात बसाया गया वहां अपने जमीनों के लिए संघर्ष करने वालों को पुरे देश के सामने आतंकी बता दिया गया और उन्हें इस प्रकार प्रचारित किया गया की वो देश में ही अपने वजूद को खो बैठे और ये संघर्ष जमीन से हट कर अपने वजूद के लिए लड़ने लगे और अपने देश में ही विदेशी या विदेशी समर्थित आतंकी हो गए. 

आखिर ऐसा दोहरा वर्ताव क्यूँ हो रहा है देश में देश के ही लोगों के साथ. क्या जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा सिर्फ इस वजह से दिया गया है की वहां मुसलमान हैं और देश के बाकि सरहदी राज्य इससे वंचित हैं क्यूंकि वहां हिन्दू बाहुलता है. विशेष राज्य के पीछे मुस्लिम तुस्टीकरण कहाँ तक सही है जबकि भारत वासियों को धर्मनिरपेक्षता का पाठ बड़ी ही धूर्तता से पढाया जाता है और धर्मनिरपेक्षता के आड़ में घोर सम्प्रदायकता को एक जहर की तरह फैलाया जा रहा है. आखिर ये जहर क्यूँ? मकसद क्या है इस दोहरे जहर घोलू बर्ताव का.

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