गुरुवार, 12 जून 2014

भाजपा को संघ से खतरा!


राजु कुमार

चाल,चेहरा एवं चरित्र की दुहाई देकर दूसरे राजनीतिक दलों से अलग होने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी की स्थिति मध्य प्रदेश में कुछ ऐसी हो गई है कि उसे कांग्रेस से नहीं, अपनों से खतरा बढ़ गया है.मंत्रियों एवं भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की आपसी खींचातानी से परेशान शीर्ष नेतृत्व एवं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी विरोध झेलना पड़ रहा है. आंतरिक विरोध अब सड़क पर दिखाई पडऩे लगे हैं. हाल ही में इंदौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 200 से ज्यादा कार्यकर्ताओं ने भाजपा सरकार एवं संगठन के खिलाफ न केवल नारेबाजी एवं मुख्यमंत्री का पुतला दहन किया, बल्कि भाजपा कार्यालय में तोडफ़ोड़ भी की. देश में संभवत: यह पहला मामला है, जब संघ कार्यकर्ताओं ने भाजपा कार्यालय पर हमला किया है. संघ का यह रवैया भाजपा सरकार एवं संगठन के लिए न उगलते बन रहा है और न निगलते और यही कारण है कि इस पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा ने चुप्पी साध ली है.

संघ-भाजपा की बढ़ती दूरी एवं इन घटनाओं पर प्रदेश की राजनीति को लेकर भाजपा एवं संघ दोनों के शीर्ष नेतृत्व में खलबली मची हुई है.भाजपा को चिंता सता रही है कि संघ के कार्यकर्ताओं की नाराजगी बढ़ती गई तो सत्ता में वापसी खतरे में पड़ जाएगी, दूसरी ओर संघ अपने कार्यकर्ताओं की स्थिति देखकर मंथन कर रहा है कि कहीं मौजूदा सरकार एवं संगठन का शीर्ष नेतृत्व आत्मकेंद्रित तो नहीं हो गया, जिसके कारण संघ के जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की जा रही है. इंदौर की घटना के बाद संघ के एक पदाधिकारी लक्ष्मण राव नवाथे ने तत्कालिक प्रतिक्रिया जताते हुए कहा, 'जब बच्चा उद्दंड हो जाए, तो उसे उसे ठीक करना पड़ता है.'

पिछले दिनों इंदौर में आयोजित एक धार्मिक जुलूस में उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के समर्थक एवं भाजपा के एक प्रकोष्ठ से जुड़े निगरानीशुदा बदमाश मनोज परमार को किसी ने गोली मार दी थी. उसके बयान पर पुलिस ने भाजपा विधायक सुदर्शन गुप्ता एवं संघ से जुड़े विपिन गांधी, गोपाल गोयल एवं छोटू मित्तल के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज कर लिया था. इसे लेकर इंदौर की राजनीति गरमा गई. भाजपा की वरिष्ठ सांसद सुमित्रा महाजन ने खुलकर विरोध किया था. उन्होंने सरकार एवं संगठन से जुड़े लोगों द्वारा इंदौर में आपराधिक तत्वों को शह देने की बात कही थी. मनोज परमार गोली कांड की जांच करने वाले अधिकारी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राकेश सिंह ने सख्ती से काम शुरू किया ही था कि सरकार ने उनका तबादला कर दिया. श्री सिंह के तबादले से नाराज संघ कार्यकर्ताओं का आक्रोश भाजपा संगठन एवं सरकार के खिलाफ बढ़ गया. उन्होंने भाजपा कार्यालय में तोड़-फोड़ की और मुख्यमंत्री का पुतला दहन किया.भाजपा सरकार एवं संगठन ने श्री सिंह का तबादला निरस्त नहीं किया एवं संघ कार्यकर्ताओं की मांग अनसुनी कर दी. इस बात ने संघ के कुछ पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं को बहुत दुख पहुंचाया है, पर वे अभी खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं.
इसके पहले संघ से जुड़े भारतीय किसान संघ ने सरकार को सांसत में डाल दिया था.भारतीय किसान संघ ने दिसंबर 2010 में जिस तरह भोपाल में भाजपा सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया था, वैसा भोपाल के इतिहास में शायद ही कभी हुआ हो.प्रदेश के किसानों की नाराजगी किसान हितैषी कहे जाने वाले मुख्यमंत्री की टीस बन गई थी.भारतीय किसान संघ के मध्य प्रदेश अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा लगातार कह रहे थे कि प्रदेश सरकार किसानों की अनदेखी कर रही है. संघ से जुड़े लाखों किसानों की नाराजगी सरकार पर भारी पड़ रही थी एवं विपक्ष को बैठे-बैठाए लाभ दिला रही थी. कुछ माह पूर्व किसान संघ ने गेहूं खरीदी में धांधली एवं अनियमितता का आरोप लगाते हुए फिर राज्य सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया था, जिसमें एक किसान की मौत हो गई. भाजपा ने किसी तरह संघ नेताओं को विश्वास में लेकर श्री शर्मा के खिलाफ मुकदमा दर्ज करते हुए उन्हें ब्लैकमेलर घोषित कर दिया.श्री शर्मा एवं उनके समर्थकों के जेल मे रहते हुए किसान संघ ने बैठक कर श्री शर्मा पर अनियमितता का आरोप लगाकर किसान संघ से निष्कासित कर दिया और सुरेश गुर्जर को कार्यकारी अध्यक्ष घोषित कर दिया. श्री शर्मा के जमानत पर रिहा होने के बाद सरकार को फिर विरोध झेलना पड़ रहा है. उनके समर्थक प्रदेश में भ्रष्टाचारियों खिलाफ थूको अभियान चला रहे हैं. श्री शर्मा कहते हैं, 'राज्य सरकार किसान विरोधी है. उसके खिलाफ प्रदेश भर में अभियान चलाया जा रहा है.' सुरेश गुर्जर ने पहले तो नर्मी दिखाई मगर अब सरकार को चेतावनी दी है, 'तीन माह के अंदर किसानों को सस्ती बिजली नहीं मिली तो जनवरी में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया जाएगा.'

सरकार को व्यापारी वर्ग का भी विरोध झेलना पड़ रहा है,जो भाजपा के बड़े वोट बैंक हैं एवं लंबे अरसे से संघ और भाजपा से जुड़े हुए हैं.इंदौर की घटना के बाद वहां के व्यापारिक संगठनों के लगभग दो दर्जन प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री एवं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को अपनी व्यथा सुनाई. खुलकर कहा कि इंदौर में मंत्री एवं विधायकों की शह पर गुंडों को बढ़ावा मिल रहा है. अवैध वसूली, जमीन कब्जाने का धंधा चल रहा है.विरोध करने वालों की हत्याएं की जा रही हैं.मुख्यमंत्री एवं पार्टी अध्यक्ष ने उन्हें आश्वासन तो दिया, पर समस्या का समाधान संभव नहीं दिखता.

वरिष्ठ पत्रकार लज्जाशंकर हरदेनिया कहते हैं, 'भाजपा से जुड़े लोग सत्ता का लाभ लेने में लगे हुए हैं. टकराव नैतिकता को लेकर नहीं है. संघ कार्यकर्ताओं को लगता है कि सरकार उनके कारण बनी है, तो उन्हें परेशानी के बजाए लाभ मिलना चाहिए. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को उनसे कोई सरोकार नहीं है. भाजपा को आगामी चुनाव में नुकसान ही होगा.' भाजपा का मत है कि यदि पार्टी दबाव में आ जाएगी,तो अन्य जगहों पर भी ऐसा विरोध हो सकता है.संघ को लगता है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उसे तव्वजो नहीं दे रहा है.कई गुटों में बंटी प्रदेश कांग्रेस खुश है कि भाजपा को उसके ही लोग हराने में लग जाएंगे,तो कांग्रेस के भाग्य का द्वार खुल सकता है.कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया कहते हैं,इंदौर की घटना से पता चलता है कि संघ एवं भाजपा में किस कदर दुश्मनी है. इंदौर के बाद अन्य जगहों पर भी ऐसी घटनाएं होंगी.'

संघ का सहयोग भाजपा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है.मध्य प्रदेश के मालवा एवं महाकौशल में संघ मजबूत स्थिति में है एवं आदिवासियों में उसकी गहरी पैठ है. 2002 में झाबुआ में संघ ने हिंदू संगम का आयोजन किया था, जिसमें दो लाख से ज्यादा आदिवासी जुटे थे. तब भाजपा को 2003 के चुनाव में आदिवासी सीटों पर व्यापक सफलता मिली थी, उसे दो तिहाई सीटें मिली थीं. 2008 के चुनाव में भाजपा को आदिवासी सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा था एवं मालवा एवं महाकौशल के कई आदिवासी सीटों पर कांग्रेस विजयी रही. भाजपा को 2003 में कुल 42.5 फीसदी मत और 173 सीटें मिली थीं, पर 2008 में उसके वोट 37.64 फीसदी एवं सीटें 143 रह गईं. भाजपा 10 से ज्यादा आदिवासी सीटें भी गवां बैठी थी. 2013 में आदिवासी सीटों पर जीत हासिल करने के लिए भाजपा उन क्षेत्रों में संघ के साथ सक्रियता दिखा रही है. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भी मालवा एवं महाकौशल के आदिवासी क्षेत्रों में ज्यादा सक्रिय हैं. संघ की सक्रियता से भाजपा के कार्यक्रम सफल हो रहे हैं.

महाकौशल के मंडला जिले में संघ ने पिछले साल नर्मदा सामाजिक कुंभ मेला का आयोजन किया था, जिसमें भाजपा ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था. 2008 में भाजपा एवं कांग्रेस के कुल मतों में महज 5 फीसदी का अंतर है. भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ, विद्या भारती एवं वनवासी कल्याण परिषद के माध्यम से संघ का विभिन्न वर्गों में गहरी पैठ है, यदि संघ भाजपा का विरोध नहीं भी करे, पर सक्रियता नहीं दिखाए, तो भाजपा की जीत हार में बदल सकती है. दोनों के बीच विश्वास बहाली के उपाय भी किए जा रहे हैं, पर इंदौर की घटना एवं किसान संघ के रवैये ने जो खाई बढ़ाई है, उससे शीर्ष नेतृत्व भले ही निजात पा ले, मगर जमीनी कार्यकर्ताओं पर असर होने की संभावना कम है. खाई नहीं पटी तो भाजपा का नुकसान होना तय है.

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