सोशलिस्ट पार्टी ने कहा है कि योजना और शासन का विकेंद्रीकरण हो, न कि निजीकरण
पार्टी प्रवक्ता व राष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रेम सिंह ने कहा कि पार्टी ने कई बार योजना आयोग की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया है, क्योंकि योजना आयोग की स्थापना संविधान लागू हो जाने के सात सप्ताह बाद केबिनेट ने एक प्रस्ताव के जरिए की थी। आजादी के शुरूआती दौर में योजना आयोग की एक प्रस्ताव की मार्फत स्थापना की कुछ सार्थकता बनती थी क्योंकि सरकार के प्रस्ताव में कहा गया था कि योजना निर्माण का काम संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों की रोशनी में किया जाएगा। प्रस्ताव में आगे इस बात पर बल दिया गया था कि योजना आयोग की सफलता सभी स्तरों पर लोगों की सहभागिता के आधार पर काम करने पर निर्भर करेगी।
डॉ. सिंह ने कहा हालांकि, योजना आयोग जल्दी ही संघीय चेतना और वित्त आयोगों की भूमिका को नकारते हुए केंद्रीकरण का प्रतीक बन गया। योजना आयोग के एकाधिकारवादी नजरिए के चलते पंचायत और म्युनिसिपैलिटी जैसे स्थानीय निकायों की योजना निर्माण में कोई भूमिका नहीं रही।
श्री सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर दिए जाने वाले अपने भाषण में योजना आयोग को भंग कर उसकी जगह पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल पर एक नई संस्था बनाने का ऐलान किया। योजना आयोग को भंग करने की मंशा उनके दिमाग में पहले से ही थी, जिसका वे कई बार इजहार कर चुके थेा सोशलिस्ट पार्टी प्रधानमंत्री की इस घोषणा को खतरे की घंटी मानते हुए योजना आयोग की जगह उनके द्वारा प्रस्तावित संस्था के पंस्ताव को पूरी तरह अस्वीकार करती है।
सोशलिस्ट नेता ने कहा कि यूपीए सरकार ने भी कारपोरेट पूंजीवाद के दौर में योजना आयोग की भूमिका और प्रासंगिकता का मूल्यांकन करने के लिए एक कमेटी बनाई थी। सरकार द्वारा नियुक्त ‘इंडिपेंडेंट इवेलुवेशन ऑफिस’ (आईईओ) की रपट में योजना आयोग को भंग कर उसकी जगह सुधारवादियों और तुरता समाधान निकालने वाले विद्वानों का एक समूह यानी थिंक टैंक का गठन करने का सुझाव दिया गया है। आईईओ की रपट में योजना आयोग को ‘नियंत्रण आयोग’ बताते हुए कहा गया है कि योजना आयोग अपने को आधुनिक अर्थव्यवस्था और राज्यों के सशक्तिकरण की जरूरतों के मुताबिक बदलने में नाकामयाब रहा है, लिहाजा उसे खत्म कर दिया जाना चाहिए। हालांकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया के नेतत्व में योजना आयोग विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन, विश्व आर्थिक मंच जैसी वैश्विक संस्थाओं के आदेश पर काम कर रहा था, फिर भी उसमें कुछ न कुछ नेहरू युगीन ‘कमांड इकॉनॉमी’ के अवशेष बच रहे थे। मोदी, जिसने कारपोरेट पूंजीवाद के साथ सात फेरे लिए हैं, ऐसी कोई बाधा बरदाश्त नहीं करते हैं। वे विकास का काम निजी खिलाड़ियों के हाथ में सौंपने को आतुर हैं।
सोशलिस्ट पार्टी ने मोदी की घोषणा को संविधान और गरीबों के खिलाफ गहरी शरारत करार देते हुए मांग की है कि नीति निर्माण में कारपोरेट हस्तक्षेप के खिलाफ कड़े उपाय किए जाएं। पार्टी का यह विश्वास नहीं है कि एक संविधानेतर संस्था की जगह कोई दूसरी संविधानेतर संस्था खडी कर दी जाए। डॉ. प्रेम सिंह ने कहा कि सोशलिस्ट पार्टी का विश्वास आर्थिक समेत सत्ता के विकेंद्रीकरण में है, जिसका दार्शनिक आधार डॉ. राममनोहर लोहिया के मशहूर भाषण, जो उन्होंने संविधान लागू होने के एक महीने बाद 26 फरवरी 1950 को दिया था, ‘चौखंभा राज’ है। डॉ. लोहिया की ‘चौखंभा राज’ – गांव, जिला, प्रांत, केंद्र – की अवधारणा गांधी के ‘ग्रामस्वराज’ की अवधारणा का विस्तार है। सोशलिस्ट पार्टी का विश्वास है कि विकास के लिए जमीन, जंगल, पानी, खनिज, वनस्पति-जीवजंतु जैसे प्राकतिक संसाधनों पर अधिकार, कोष का आबंटन, नीति निर्माण, और योजना का काम सबसे पहले ग्राम पंचायतों ओर म्युनिसिपैलिटियों के स्तर पर होना चाहिए। संविधान के 73वें और 74वें संशोधनों (1993) के अनुसार सभी चुनी हुई सरकारों का यह संवैधानिक कर्तव्य है। सभी स्तरों पर शासकीय व्यवस्था का विकेंद्रीकरण होना चाहिए और वास्तविक सत्ता ‘जिला योजना समितियों’ की मार्फत पंचायतों और म्युनिसिपेलिटियों से निकलनी चाहिए।
डॉ. प्रेम सिंह ने कहा कि सोशलिस्ट पार्टी विकेंद्रीकरण कीसंवैधानिक लड़ाई को विभिन्न जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों तक लेकर जाएगी। विकेंद्रीकरण की लड़ाई वास्तव में लोकतांत्रिक समाजवाद के लिए लडाई है।
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