मौलाना सलमान नदवी के कारनामों से देश की खुफिया एजेंसी में खलबली मच गई. मौलाना नदवी ने इराक में नरसंहार करने वाले आतंकी अल-बगदादी को इस्लामिक दुनिया का ख़लीफ़ा मान लिया और पांच लाख सैनिकों को इराक भेजने की पैरवी करके धार्मिक उन्माद बढ़ाने की कोशिश की. यह बात और है कि अधिकांश लोगों ने मौलाना नदवी की बातों को गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन कुछ लोग गफलत में आ गए. कुछ सुन्नी युवा भावना में बहकर इराक जाने के लिए तैयार हो गए और उसके जवाब में कुछ शिया युवा भी इराक जाकर अल-बगदादी से लड़ने के लिए तैयार हो गए. मौलाना नदवी ने यह विवादास्पद बयान 7 जुलाई को दिया था, लेकिन अब वह अपने बयान से मुकर गए हैं और मीडिया पर दोष मढ़ रहे हैं. सवाल यह है कि मौलाना नदवी ने यह खंडन पहले क्यों नहीं किया? उन्होंने लोगों की भावना भड़कने क्यों दी? मौलाना सलमान नदवी के विवादास्पद बयान से उठे बवाल और खुफिया एजेंसी में फैली सनसनी पर पेश है चौथी दुनिया की यह एक्सक्लूसिव रिपोर्ट…
ख़ूखार आतंकवादी संगठन के रूप में एकबारगी उभरे इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) के सरगना अबू बक्र अल बगदादी का एक मिनट का ऑडियो टेप और लखनऊ के प्रमुख इस्लामी शोध संस्थान दारुल उलूम नदवातुल उलेमा के डीन मौलाना सलमान नदवी का विचित्र-विवादास्पद बयान केंद्र एवं राज्य की खुफिया एजेंसियों के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है. बगदादी के टेप और नदवी के बयान का कुप्रभाव जांचने-परखने में खुफिया एजेंसियां एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं. खुफिया एजेंसियों की चिंता है कि बगदादी के बुलावे और नदवी के उकसावे पर इराक के युद्ध में उतरने के लिए भारतीय युवकों की आईएसआईएस में भर्ती का कहीं लखनऊ ही केंद्र तो नहीं बन रहा!
शियाओं के ख़िलाफ़ क्रूर युद्ध की शुरुआत करने वाले आईएसआईएस की तरफ़ से कुछ भारतीयों के भाड़े पर लड़ने की ख़बरें अभी पड़ताल का विषय ही थीं कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित प्रमुख इस्लामी शोध केंद्र दारुल उलूम नदवातुल उलेमा के शरिया फैकल्टी के डीन मौलाना सलमान नदवी के बयान से सनसनी मच गई. देश ही क्या, दुनिया भर की निगाहें लखनऊ पर टिक गईं कि यह कौन-सा बयान आ गया और इसके पीछे आख़िर इरादा क्या है? मौलाना सलमान नदवी ने पांच लाख भारतीय सुन्नी युवकों की फौज बनाकर उसे इराक में शियाओं के ख़िलाफ़ उतारने की हिमायत की. इतना ही नहीं, उन्होंने भारतीय सुन्नी युवकों की फौज बनाने का आह्वान सऊदी अरब से किया और सऊदी अरब सरकार को इस बारे में पत्र भी लिख डाला.
नदवी का बयान ख़तरनाक: आईबी, केंद्र सरकार चुप
अराजकता की हदें लांघने वाली इतनी आज़ादी भारतवर्ष में ही मिल सकती है. ऐसे सनसनीखेज बयान के बावजूद भारत सरकार की तरफ़ से न कोई आधिकारिक बयान आया और न किसी क़ानूनी कार्रवाई की सुगबुगाहट ही दिखाई दी. यह वही नदवी हैं, जिन्होंने खूंखार आतंकवादी संगठन आईएसआईएस के सरगना अबू बक्र अल बगदादी के प्रति खुला समर्थन जताया था और स्वयंभू ख़लीफा होने की उसकी घोषणा को मान्यता दी थी. इसके बावजूद देश में इसके बरक्स किसी किस्म की समुचित कार्रवाई होती नहीं देखी. ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर भारत सरकार की तरफ़ से चुप्पी तो साध ली गई, लेकिन यह मुद्दा इतना गंभीर है कि इस पर देश की खुफिया एजेंसियां सतर्क और सक्रिय हो गई हैं. गृह मंत्रालय ने इस मसले पर कोई मुखर प्रतिक्रिया नहीं जताई है, लेकिन संदेहास्पद गतिविधियों की निगरानी और प्रतिक्रियात्मक बयानों की समीक्षा बड़ी सूक्ष्मता से की जा रही है.
इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के आतंकवाद मामलों के वरिष्ठ समीक्षक भी यह मानते हैं कि अगर समय रहते स्थिति न संभाली गई, तो आतंकी अराजकता का अगला पड़ाव भारतवर्ष ही बन सकता है. एक तरफ़ आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठनों के समर्थन में खुलेआम बयानबाजियां हो रही हैं, तो दूसरी तरफ़ उस संगठन का सरगना भी भारतवर्ष के युवकों को युद्ध के लिए आमंत्रण दे रहा है. उधर, अलकायदा भी भारतवर्ष में जेहाद शुरू करने का जैसे अल्टीमेटम ही दे रहा है. आईएसआईएस सरगना अबू बक्र अल बगदादी के ऑडियो टेप केवल इराक ही नहीं, बल्कि लखनऊ के उन इलाकों में भी बज रहे हैं, जो सुन्नी बहुल सघनता के लिए जाने जाते हैं. इस टेप में भारतीय सुन्नी युवकों को आईएसआईएस में शामिल होने का खुला आमंत्रण देते हुए बगदादी को साफ़-साफ़ सुना जा सकता है. क़रीब एक मिनट का यह ऑडियो टेप खास तौर पर रमजान के संदेश के नाम से जारी किया गया है.
ऑडियो टेप में बगदादी के बयान का उर्दू तरजुमा भी शामिल है. इस संदेश में भारतीयों को आमंत्रण देते हुए आईएसआईएस की कतार में चीनी, अमेरिकी, फ्रांसीसी, जर्मन और आस्ट्रेलियन युवकों के भी शामिल रहने की बात कही गई है. 28 जुलाई को दिल्ली के सराय काले खां इलाके में गिरफ्तार किए गए लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी अब्दुल सुभान कुरैशी ने भी कहा है कि वह युवकों को लश्कर में भर्ती कराने का काम कर रहा था. खुफिया एजेंसियां इस अहम सुराग पर काम कर रही हैं कि कुरैशी उन युवकों को आईएसआईएस के हवाले करने में केंद्रीय भूमिका तो नहीं अदा कर रहा था. अब तो कुरैशी के भाई के बारे में भी पता चल गया, जो कोलकाता के अलीपुर जेल में बंद है और वहीं से देश-दुनिया में आतंकवादी गतिविधियों को मॉनीटर कर रहा था. खुफिया एजेंसियों ने उसके और पाकिस्तान में बैठे उसके सूत्रधारों के बीच जेल से हो रही बातचीत भी पकड़ी है.
बहरहाल, खुफिया सूत्र बताते हैं कि भारत के मुस्लिम युवकों को न केवल आईएसआईएस, बल्कि चेचेन्या, अफगानिस्तान और सीरिया में भी लड़ाया जा रहा है. तमिलनाडु के कई युवकों के सीरिया में लड़ने की आधिकारिक पुष्टि हुई है. आईएसआईएस की तो इतनी धूम मची कि भारत के तक़रीबन हज़ार से अधिक युवक इराक में शियाओं के ख़िलाफ़ युद्ध में उतरे हुए हैं. जबकि उनके इराक में फंसे होने की बात कहकर भारतवर्ष में नियोजित भ्रम फैलाया जा रहा है. अफगानिस्तान में इंडियन मुजाहिदीन के सदस्यों के तालिबानों के साथ लड़ने की भी आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है. खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट बताती है कि अलकायदा भारतवर्ष में जेहाद के नाम पर आतंकी अराजकता फैलाने की तैयारी में है. अलकायदा ने इसे गजवा-ए-हिंद का नाम दिया है, जिसका मतलब है, निर्णायक जंग. शुरुआत में तो इसके लिए अरब युवकों को भर्ती किया गया. अब इसमें कश्मीरी युवकों को शरीक किया जा रहा है.
तहरीक-ए-तालिबान ने तो कश्मीर में अपना दफ्तर खोलने तक का बाकायदा ऐलान कर दिया है. हरी पर्वत की दीवारों पर लिखे हुए वेलकम तालिबान के नारे इस ऐलान की पुष्टि करते हैं. आईबी के एक आला अधिकारी ने बताया कि अलकायदा का भी एक ऑडियो टेप मिला है, जो अल सहाब की तरफ़ से जारी है और उसमें साफ़ तौर पर दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात और दक्षिण भारत के राज्यों के मुस्लिम युवकों को ग्लोबल जेहाद में शरीक होने की अपील की गई है. ये वही प्रदेश हैं, जहां इंडियन मुजाहिदीन आतंकी गतिविधियों में शामिल है और अपने संगठन में युवकों की भर्ती कर रहा है. अलकायदा के कंधे पर सवार होकर इंडियन मुजाहिदीन भी अंतरराष्ट्रीय स्तर का होने की जद्दोजहद कर रहा है. नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) के दस्तावेज स्पष्ट बताते हैं कि अलकायदा और तालिबान, दोनों ही इंडियन मुजाहिदीन को मजबूत करने में लगे हैं. यासीन भटकल और रियाज भटकल जैसे आतंकियों का इस्तेमाल इसी में हो रहा है.
आईएम के कई सदस्य अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर तालिबानों के साथ लड़ रहे हैं. पाकिस्तान भी चाहता है कि तालिबानों और अलकायदियों के युद्ध का केंद्र पाकिस्तान की बजाय भारत बन जाए. इसके लिए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी सारे हथकंडे अपना रही है. पाकिस्तान सीमा से आतंकियों को भारत में ढ़केलने का एक सूत्रीय कार्यक्रम इसी इरादे का नतीजा है. लश्कर-ए-तैयबा में केरल के युवकों को भर्ती कराने का मामला एनआईए पकड़ चुकी है और कुख्यात टी नजीर एवं सरफराज नवाज समेत 13 आतंकियों को एनआईए की स्पेशल कोर्ट से सजा भी मिल चुकी है. इन्हीं लोगों द्वारा भर्ती किए गए चार युवक जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में हुई मुठभेड़ में मारे गए थे. इनमें से अब्दुल जब्बार नामक युवक भाग निकलने में कामयाब हुआ था, लेकिन बाद में केरल पुलिस के हाथों पकड़ लिया गया था. बाद में इस मामले को एनआईए को दे दिया गया, जिसमें 24 लोगों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल की गई.
इधर, महाराष्ट्र के चार युवकों आरिफ फैयाज माजिद, फहद तनवीर शेख, अमन नईम टंडेल और शाहीन फारुकी तनकी के आईएसआईएस के साथ इराक में लड़ने की आधिकारिक पुष्टि औपचारिक तौर पर हो चुकी है. इन युवकों के परिवारवालों से भी पूछताछ की गई है और उसके बाद आईबी की विस्तृत रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय को सौंपी गई. इसके अलावा केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक के भी कुछ सुन्नी युवक मोसुल और टिकरित में आईएसआईएस के साथ शियाओं के ख़िलाफ़ चल रहे युद्ध में शामिल हैं, जबकि इनके इराक में फंसे होने की बातें कही गई थीं. महाराष्ट्र के कल्याण निवासी आरिफ फैयाज माजिद अपने तीन अन्य साथियों के साथ 23 मई को निकला था और 24 मई को उसने अपने घर वालों को फोन करके बताया कि वह और उसके साथी बगदाद में हैं.
इराक की खुफिया एजेंसी ने भारतीय खुफिया एजेंसी की छानबीन को आगे बढ़ाते हुए बताया कि उनके मोबाइल से हुई आख़िरी कॉल उनके मोसुल में होने की पुष्टि करती है, जो आईएसआईएस के कब्जे में चला गया था. आरिफ फैयाज माजिद, फहद तनवीर शेख और अमन नईम टंडेल इंजीनियरिंग के छात्र थे, जबकि शाहीन फारुकी तनकी एक कॉल सेंटर में काम करता था. आरिफ फैयाज माजिद द्वारा अपने घर के लोगों को लिखा गया पत्र भी खुफिया एजेंसी ने बरामद किया है. इन युवकों के अलावा 18 अन्य भारतीय सुन्नी युवकों के वहां होने की पुष्टि हुई, लेकिन उनका ब्यौरा यहां नहीं मिल पाया. सीरिया के भारत स्थित राजदूत रियाद कमाल अब्बास ने भी कहा था कि सीरिया के अलावा चेचेन्या, अफगानिस्तान और कुछ अन्य देशों में जेहाद के नाम पर चल रही हिंसा में भारत के आतंकी भी शरीक हैं.
साफ़ नहीं मौलाना नदवी की सफाई
लखनऊ के प्रमुख इस्लामी शोध संस्थान दारुल उलूम नदवातुल उलेमा के डीन मौलाना सलमान नदवी से इस सिलसिले में इस संवाददाता ने बातचीत की. मौलाना नदवी ने पांच लाख सुन्नियों की फौज बनाने की वकालत किए जाने के अपने बयान के बारे में बताने से पहले इराक में नूरी अल मालिकी द्वारा सुन्नियों का कत्लेआम कराए जाने की तीखी निंदा की. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अमेरिका और इजरायल मिलकर शिया और सुन्नियों के बीच दुश्मनी पैदा कर रहे हैं और पूरे संसार में उनके एजेंट इसे फैला रहे हैं. मौलाना नदवी ने अपने बयान पर आते हुए इतना ही कहा कि मुस्लिम धर्मगुरु होने के नाते उनका यह फर्ज है कि देश-दुनिया में होने वाली घटनाओं पर वह दीन, कुरान और हदीस के मुताबिक ही बयान दें. मौलाना नदवी ने यह भी कहा कि आईएसआईएस के प्रमुख अबू बक्र अल-बगदादी को भी उन्होंने अमनो अमान कायम करने की सलाह दी है. अपने विवादास्पद बयान के बारे में नदवी ने इतना ही कहा कि मेरे बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया. फिर आपने उस अंग्रेजी अख़बार को अपना खंडन क्यों नहीं भेजा? इस सवाल पर मौलाना नदवी ने कहा, अख़बार को खंडन भेजा गया है. लेकिन, उस अख़बार के स्थानीय संपादक ने साफ़-साफ़ कहा कि मौलाना नदवी की तरफ़ से कोई खंडन नहीं आया है.
…और जब बात बिगड़ गई
मौलाना सलमान नदवी ने विवादास्पद बयान देकर सनसनी फैला दी. मौलाना नदवी के मुताबिक उन्होंने इराक में नरसंहार कर रहे आईएसआईएस के सरगना अल-बगदादी को 7 जुलाई को पत्र लिखा था. जबकि उन्होंने 17 जुलाई को यह पत्र अपने फेसबुक पर प्रकाशित किया. मतलब यह कि उन्होंने 7 जुलाई को पत्र लिखकर मीडिया को ख़बर नहीं दी. इस ख़बर को सबसे पहले एक उर्दू अख़बार ने पहले पेज पर लीड स्टोरी बनाकर प्रकाशित किया था, लेकिन खलबली तब मची, जब इस ख़बर को एक अंग्रेजी अख़बार ने 26 जुलाई को अपने पहले पन्ने पर छापा. अगर यह भी मान लिया जाए कि मीडिया ने 7 जुलाई को दिए गए इस बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया, तो भी यह बात समझ में नहीं आती है कि मौलाना नदवी ने आधिकारिक खंडन भेजने में इतनी देर क्यों कर दी. उन्होंने अपना आधिकारिक खंडन फेसबुक के जरिये 31 जुलाई को जारी किया. बयान सही था या उसे तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया, इसका ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि मौलाना नदवी के बयान से भावनाएं भड़क रही थीं. सुन्नी युवा इराक जाकर अल-बगदादी के आतंकी संगठन में शामिल होने के लिए तैयार हो गए थे. इसके जवाब में शिया युवाओं ने भी इराक जाने के लिए कमर कस ली थी. लोगों की धार्मिक भावनाएं भड़कती रहीं. जो नुक़सान होना था, वह होता रहा. माहौल बद से बदतर होता चला गया, लेकिन मौलाना नदवी ने मीडिया को दोष देने के अलावा जख्मों पर मरहम रखने वाला एक भी बयान नहीं दिया. हैरानी तो इस बात की है कि आज भी वह अल-बगदादी को एक आतंकवादी बताकर कर उसकी निंदा नहीं कर रहे हैं. जबकि यह पूरी दुनिया देख रही है कि अल-बगदादी और उसके लड़ाकू इराक में नरसंहार का ऐसा तांडव कर रहे हैं, जो न स़िर्फ ग़ैर इस्लामी है, बल्कि अत्यंत वहशियाना और अमानवीय है.
न पुरजोर निंदा, न कोई फ़तवा
शियाओं के ख़िलाफ़ इराक में पांच लाख भारतीय सुन्नी युवकों की फौज बनाकर भेजने के बारे में सऊदी अरब सरकार को लिखे गए पत्र ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की इस्लामी सियासत को गड्डमड्ड करके रख दिया है. लखनऊ के दारुल उलूम नदवातुल उलमा के शरिया विभाग के डीन मौलाना सलमान नदवी द्वारा भेजे गए इस पत्र पर सुन्नी मौलानाओं को सांप सूंघ गया है, लेकिन वे इसकी निंदा के लिए भी आगे नहीं आ रहे हैं. मौलाना नदवी के बयान के ख़िलाफ़ कोई फतवा भी जारी नहीं हुआ. इससे इनकी अंदरूनी स्थिति आसानी से समझी जा सकती है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की कार्यकारिणी के सदस्य मौलाना अतहर अली ने इतना ही कहा कि सऊदी अरब की सरकार को पत्र लिखने से अच्छा था कि मौलाना नदवी भारत सरकार से अपील करते कि इराक के शिया-सुन्नी विवाद का कूटनीतिक हल निकालने की कोई सार्थक पहल हो. वह खुद ही सवाल उठाते हैं कि सऊदी अरब सरकार ही क्या कर लेगी? सुन्नी युवकों की फौज बनाए जाने के बारे में नदवी के बयान पर मौलाना अतहर अली ने कहा कि इसका कोई औचित्य नहीं है, इससे आपसी भेदभाव ही बढ़ता है.
उलेमा काउंसिल के सदस्य मौलाना महमूद दरियाबादी ने कहा कि मौलाना नदवी द्वारा इस तरह का पत्र लिखे जाने को वह अविश्वसनीय मानते हैं. अगर यह सच है, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है. इराक और सीरिया के विवाद को शिया- सुन्नी के एंगल से देखना और समझना गलत है. ऐसे पत्र दो समुदायों के बीच भेदभाव की खाई ही बढ़ाते हैं. लखनऊ की ईदगाह के इमाम खालिद रशीद फरंगी महली ने इस मसले पर अपनी प्रतिक्रिया देने से ही मना कर दिया, तो ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यकारिणी के सदस्य एवं उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त महाधिवक्ता जफरयाब जिलानी ने मौलाना नदवी की निंदा की और कहा कि यह पत्र देश के हितों के ख़िलाफ़ है और इससे शिया और सुन्नी समुदाय के बीच अनावश्यक तनाव बढ़ेगा.
आज़म खान से शिया नाराज़ क्यों?
उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारे में इस बात को लेकर माथापच्ची हो रही है कि शिया समुदाय के लोग प्रदेश के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री आजम खान से नाराज़ क्यों हैं? शिया और सुन्नी समुदाय के बीच फैले तनाव को आजम खान कहीं अंदर ही अंदर हवा देने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं! लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत से खास तौर पर आजम खान ज़्यादा ही बौखलाए हैं और उनके अनाप-शनाप बयान भी सामने आए हैं. आजम खान को लगता है कि शिया समुदाय के लोगों ने भाजपा को वोट दिया और दूसरा यह कि आजम खान खुद भी सुन्नी हैं. यह तनाव इस कदर फैल गया कि अलविदा की नमाज के बाद शियाओं ने अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री आजम खान के आधिकारिक आवास को घेरने की कोशिश की, जिस पर पुलिस की लाठियां चलीं और शिया धर्मगुरु समेत कई लोग जख्मी हुए. इसके बाद तो आजम खां के ख़िलाफ़ शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने मोर्चा ही खोल दिया. शिया समुदाय के लोग कैबिनेट मंत्री आजम खां को सपा से हटाने, सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन को गिरफ्तार करने और लाठीचार्ज का आदेश देने वाले डीएम-एसएसपी को बर्खास्त करने की मांग कर रहे हैं. सियासत ने वह रूप ले लिया है कि शिया समुदाय एक तरफ़ कांग्रेस नेता अहमद पटेल, तो दूसरी तरफ़ आजम खान को अपने निशाने पर ले रहा है. कल्बे जव्वाद का कहना है कि अहमद पटेल और आजम खां के इशारे पर निहत्थे शिया उलेमा पर लाठीचार्ज कराया गया, ताकि दिल्ली और लखनऊ में बेची गई करोड़ों की वक्फ संपत्तियों से ध्यान हटाया जा सके. लाठीचार्ज के ख़िलाफ़ कल्बे जव्वाद और प्रतिनिधिमंडल ने नवनियुक्त राज्यपाल राम नाइक से भी मुलाकात की और अपनी मांग रखी. जव्वाद का कहना है कि अंग्रेजों के बाद सपाइयों ने ही धर्मगुरुओं पर लाठियां चलवाई हैं.
शिया भी इराक जाने को तैयार
बड़ी संख्या में शिया समुदाय के युवक भी इराक जाने के लिए तैयार हैं. उनकी भी इच्छा है कि वे इराक के शिया धर्मस्थलों पर आईएसआईएस के विध्वंसक हमलों के ख़िलाफ़ युद्ध में उतरें और अपने धर्मस्थलों की रक्षा करें. तक़रीबन 30 हज़ार शिया युवकों ने विभिन्न ट्रैवल एजेंसियों को अपने पासपोर्ट दिए हैं और इराक जाने की व्यवस्था करने को कहा है. एक लाख से अधिक शिया युवकों ने इराक के शियाओं के प्रति अपना समर्थन जताया है. भारत में सुन्नियों की आबादी अधिक है, लेकिन शिया समुदाय के भी क़रीब चार-पांच करोड़ लोग यहां रहते हैं. इराक में लड़ने के लिए शियाओं की भर्ती का काम अंजुमन-ए- हैदरी नामक संस्था कर रही है. इस संस्था से जुड़े सैयद बिलाल हुसैन आबिदी इराक जाने की चाहत रखने वाले शिया युवकोंे का वीज़ा एप्लिकेशन दिल्ली स्थित इराकी दूतावास में जमा करने जा रहे हैं. दिल्ली के कर्बला रोड पर अंजुमने हैदरी का दफ्तर है. शियाओं की संस्था ऑल इंडिया शिया हुसैनी फंड यह कह चुका कि चार हज़ार शिया युवकों ने इराक जाने का आवेदन कर रखा है.
स्त्रोत - चौथी दुनिया
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