जीवो जीवितुमिच्छति। (योग-शास्त्र)=== प्राणी मात्र जीने की इच्छा करते है।सर्वो जीवितुमिच्छति। (योग-वशिष्ठ)=== सभी जीना चाहते है।अहिंस्रः सर्वभूतानां यथा माता यथा पिता। (अनुशासन पर्व, महाभारत)=== सभी प्राणियों की इस प्रकार रक्षा करें जैसे माता पिता की करते हैं।जीवितं जीवरक्षात्। (बृहस्पति स्मृति)=== जीवरक्षा से जीवन बढ़ता है।धर्मस्य दया मूलम्। (प्रशम रति)=== दया ही धर्म की जड़ है।न दया सदृशं ज्ञानम्। (प्रशम रति)=== दया सदृश कोई ज्ञान नहीं।दया दानाद्विशिष्यते। (वशिष्ठ-स्मृति)=== दान की अपेक्षा दया महिमावान है।सर्वभूतदया तीर्थम्। (महाभारत)=== प्राणी मात्र पर दया ही सर्वोत्तम तीर्थ है।न च प्राणिवधः स्वर्ग्यस्तस्मान्मांसं विवर्जयेत्। (मनु स्मृति)=== प्राणिवध किसी भी दशा में स्वर्ग नहीं दिला सकता अतः उसकी वर्जना करनी चाहिए।घ्नन्ति जन्तून् गतघृणा घोराम् ते यान्ति दुर्गतिम्। (योग शास्त्र, द्वितीय प्रकाश)=== जो घृणा व खिन्नता रहित होकर जीव घात करते है वे निश्चय ही दुर्गति में जाते है।दया च भूतेषु दिवं नयन्ति। (पद्म-पुराण)=== जीवों पर की जाने वाली दया स्वर्ग ले जाती है।वधको नैव शुद्धयति। (देवी भागवत)=== प्राणी-वध करने वाले कभी पवित्र नहीं हो सकते।शोधकौ तु दयादमौ। (शुभचन्द्राचार्य)=== जीवदया व इन्द्रिय दमन से आत्म शुद्ध-पवित्र बनता है।क्षीणा नरा निष्करूणा भवन्ति। (काव्य –रवि मंड़ल)=== शक्तिहीन पुरूष दया-हीन होते है।यस्य जीवदया नास्ति सर्वमेतन्निरर्थकम्। (शान्तिपर्व,महाभारत)=== जिनके कार्य में जीवदया नहीं है उनकी सारी क्रियाएँ ही निर्थक है।दया मांसाशिनः कुतः? (काव्य –रवि मंड़ल)=== मांसभक्षी को दया कैसे उत्पन्न हो सकती है?को धर्मः कृपया विना? (धर्म-बिन्दु)=== जीवदया बिना कैसा धर्म?अधर्मश्च प्राणिनाम् वधः (शन्ति-पर्व महाभारत)=== जीवों की हत्या करना ही अधर्म है।हिंसा नाम भवेद् धर्मो न भूतो न भविष्यति। (पूर्व मीमांसा)=== “हिंसा को धर्म कहें?” ऐसा न कभी भूतकाल मेँ था न कभी भविष्य मेँ होगा।
सोमवार, 18 अगस्त 2014
जीवों की हत्या करना ही अधर्म है।
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