अब्दुल रशीद
जवानों के ज़ज्बात और किसानों के हालात पर देश के सात्तासीन और सत्ता की चाहत रखनेवाले नेता जब संजीदा नहीं तो भला उनसे कार्पोरेट मीडिया की चकाचौंध दरकिनार कर हस्तलिखित अखबार के संपादक से सरोकार की उम्मीद करना व्यर्थ ही है क्योंकि यदि राजनीति में मानवीय संवेदना का लेस मात्र भी बचा होता तो जो हालात देश का आज है वह शायद न होता और शहीदों के देश में भ्रष्टाचारी,घोटालेबाजो,और लुच्चों का नामोंनिशान न होता। बहरहाल मैं आज आप से एक ऐसे कलम के बेताज सिपाही के विषय में चर्चा करने जा रहा हूं। जिनको भले ही मीडिया नें गुमनामी के अंधेरे में रख छोड़ा हो लेकिन उनके द्वारा किया गया काम भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में ऐसा मील का पत्थर बन चुका है जिसे इतिहास हमेशा याद रखेगा। जहां पत्रकारिता जगत में सर्वाधिक स्लोगन सुना जाता है कि हम हैं देश के नंबर वन वहीं हस्तलिखित अखबार के संपादक गौरी शंकर रजक ने अपने अखबार को नंबर वन जैसे स्लोगन की जगह कब मिटेगा आतंकवाद,कब मिटेगा भ्रष्टाचार जैसे स्लोगन के सहारे लगभग 26 साल से अकेले आठ पृष्ठों का हस्तलिखित अखबार “दीन दलित” निकाल कर उन आवाजों को बुलंद करते रहें जिनके हालात पर चकाचौंध की दुनियां कि नज़र या तो पड़ती नहीं और यदि गाहे बगाहे पड़ भी जाती तो उसे नज़रअंदाज़ कर दिया जाता रहा। “दीन दलित” अखबार के मुद्रक,प्रकाशक,संवाददाता,लेखक, संपादक और हाकर सभी कार्यों कि जिम्मेदारी अकेले अपने हौंसले और इमानदारी के दम पर निभाने वाले कलम के सिपाही गौरी शंकर का कलम थम गया। बिमारी के कारण या यूं कहें अपनी गरीबी के कारण बिमारी से नहीं लड़ सके और खामोशी से जहाने पानी से 23नवम्बर12 को कूच कर गए।
महात्मा गांधी के मार्गों पर चलने वाले गौरी शंकर का जन्म 15 जनवरीए 1930 से तत्कालीन बिहार अब झारखंड के दुमका जिले के गिधनी में हुआ था। श्री रजक के पिता स्व0छेदी रजक धोबी का काम करते। गौरीशंकर भी पिता के ही कामों में हाथ बटाते थे। थोडा बहुत समय बचता तो कभी.कभी स्कूल जाते। किसी तरह से 10वीं की पढाई में पूरी की थी।
दलित समुदाय की उनकी पीड़ा उनके सामने कई बार आयी। पिछडों और दलितों पर होते जुल्म से दोचार होना पड़ा। सरकारी अधिकारियों से लेकर समाज के ऊँचे वर्ग के लोगों ने उनकी संवेदना से खूब खिलवाड़ किया। एक बार किसी काम से सरकारी दफतर का चक्कर लगाते कई दिन बीतने और बडे अफसरों से गुहार लगाने के बाद भी कुछ हासिल नहीं हुआ। जब एक पत्रकार उन्हें बताया कि पत्रकार की बात सभी सुनते हैं तब यह बात उनके मन में जा बैठा। फिर तो श्री रजक ने कलम पकड़ ली। अफसरों की मनमानी के खिलाफ उनका कलम चल पड़ा। हाथ से लिखकर सरकारी अधिकारियों की मनमानी को लोगों तक उजागर करने लगे। हस्तलिखित खबर ने हंगामा मचाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते दलित पत्रकार संपादक गौरी शंकर रजक चर्चा में आ गये।
महात्मा गांधी के मार्गों पर चलने वाले गौरी शंकर का जन्म 15 जनवरीए 1930 से तत्कालीन बिहार अब झारखंड के दुमका जिले के गिधनी में हुआ था। श्री रजक के पिता स्व0छेदी रजक धोबी का काम करते। गौरीशंकर भी पिता के ही कामों में हाथ बटाते थे। थोडा बहुत समय बचता तो कभी.कभी स्कूल जाते। किसी तरह से 10वीं की पढाई में पूरी की थी।
दलित समुदाय की उनकी पीड़ा उनके सामने कई बार आयी। पिछडों और दलितों पर होते जुल्म से दोचार होना पड़ा। सरकारी अधिकारियों से लेकर समाज के ऊँचे वर्ग के लोगों ने उनकी संवेदना से खूब खिलवाड़ किया। एक बार किसी काम से सरकारी दफतर का चक्कर लगाते कई दिन बीतने और बडे अफसरों से गुहार लगाने के बाद भी कुछ हासिल नहीं हुआ। जब एक पत्रकार उन्हें बताया कि पत्रकार की बात सभी सुनते हैं तब यह बात उनके मन में जा बैठा। फिर तो श्री रजक ने कलम पकड़ ली। अफसरों की मनमानी के खिलाफ उनका कलम चल पड़ा। हाथ से लिखकर सरकारी अधिकारियों की मनमानी को लोगों तक उजागर करने लगे। हस्तलिखित खबर ने हंगामा मचाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते दलित पत्रकार संपादक गौरी शंकर रजक चर्चा में आ गये।
“दीन दलित” हस्तलिखित था और उसके अखबार निबंधित में परेशानी आने लगी। लेकिन श्री रजक के जज्बें को देखते हुए बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रशेखर ने उनके हस्तलिखित हिन्दी पत्र को निकालने की अनुमति दी। हालांकि हस्तलिखित पत्र “दीन दलित”से दुमका के उपायुक्त से लेकर जिला प्रसाशन को अवगत कराया गया लेकिन किसी ने इसे निबंधित पत्रिका का दर्जा न देते हुए मान्यता नहीं दी। श्री रजक ने अपनी लड़ाई जारी रखी और उन्होंने देश के तत्कालीन राष्ट्रपति के0 आर0 नारायण को पत्र लिखकर अपनी पीड़ा जतायी। राष्ट्रपति के0 आर0 नारायण ने 15 दिनों के अंदर “दीन दलित” पत्रिका को सप्ताहिक अखबार का दर्जा 02 नवम्बर1986को दिलवाया।
हस्तलिखित अखबार “दीन दलित” वंचितों विभिन्न पहलूओं के साथ देश.समाज के अंदर गरीबों की पीड़ा को उठाता रहा है। गौरी शंकर रजक ने लगातार 1986से हाथ से लिखकर “दीन दलित” समाचार पत्र को प्रकाशित करते रहे। इस काम के लिए उन्हें को अंतराष्ट्रीय प्रेस दिवस 2008 के मौके पर जनमत मीडिया आवार्ड से सम्मानित भी किया गया।
हस्तलिखित अखबार “दीन दलित” वंचितों विभिन्न पहलूओं के साथ देश.समाज के अंदर गरीबों की पीड़ा को उठाता रहा है। गौरी शंकर रजक ने लगातार 1986से हाथ से लिखकर “दीन दलित” समाचार पत्र को प्रकाशित करते रहे। इस काम के लिए उन्हें को अंतराष्ट्रीय प्रेस दिवस 2008 के मौके पर जनमत मीडिया आवार्ड से सम्मानित भी किया गया।
उनके हौंसला और इमानदारी को मेरा सलाम।
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