शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

आजम खां की भैंसें, मीडिया और मालेगांव से मक्का मस्जिद के आतंकी

समाजवादी पार्टी के नेता मौहम्मद आज़म खान की लापता भैसों के मामले में भारतीय मीडिया बहुत चिंतित और परेशान था। ईश्वर को धन्यवाद और मीडिया को भी कि उनकी भैसे मिल गयीं। खैर अब और कम महत्वपूर्ण कार्य भारतीय मीडिया के लिये आया है। सुना है कि किन्हीं तथाकथित स्वामी असीमानंद ने कुछ स्वीकार किया है।

अब देश को ये भी देखना है कि मालेगांव, अजमेर शरीफ, मक्का मस्जिद से लेकर समझौता ब्लास्ट तक के देशद्रोही मामलों में गिरफ़्तार असीमानंद के पीछे कौन है ? कौन फासीवादी है जो देश को साम्प्रदायिकता की आग में झोंकना चाहता है ? देखना है कि इतने लोग जो इन बलास्ट में मारे गये थे उनके बारे में मीडिया की संज़ीदगी आज़म खान की खोई भैसों से अधिक महत्वपूर्ण है कि नहीं। …सवाल तो बनता है साहब।

मैं पिछले कई दिन से भारतीय मीडिया के पत्रकारिता के स्तर से चिंचित हूँ। पत्रकारिता का कौम सा धर्म निभाया जा रहा है। देश की सुर्खियो में खोई हुई भैंसे हैं। एक ऐसा व्यक्ति है जो पूरे देश में घूम- घूम कर गैर गुजराती देशवासियों को विकास में पिछड़ा बताकर ललकार रहा है। छाती के चौड़ीकरण पर बहस है, भूख, गरीबी, पिछड़ापन और सभी का उद्धार जैसे मुद्दे गायब हो गये। सबसे अफसोसनाक बात ये है की चौथा खम्भा जिसकी ये जिम्मेवारी है कि वह मुद्दा बना कर देशवासियों को सही बात और राह बताये, वो भैंस, 56 इंच छाती, ट्रेन में गुजरात जाता बच्चा और गिरगिट जैसे मुद्दों पर चर्चा रखता है।
”कारवाँ” पत्रिका धन्यवाद की पात्र है जिसने इस गम्भीर मुद्दे को उठाया और सही बात रखी। फिर ये कहेंगे कि ये दबाव में दिया गया था। पर ये वक्तत्व सही खोजी पत्रकारिता की दिशा में एक सकारात्मक पहल है। खैर भैंसे तो मिल गयीं मीडिया के सहयोग से। अब इन ब्लास्ट के जिम्मेदार आतंकी भी जल्द मिलेंगे मीडिया के सहयोग से। ऐसी आशा है मुझे।


About The Author

पेसे से चिकित्सक डॉ. इमरान इदरीस, लेखक जमीनी राजनीति के कुशल संयोजक और राजनीति के विद्यार्थी हैं।

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