- कॉरपोरेट घरानों को लोकपाल के दायरे में लाए बिना लोकपाल अथवा कथित जनलोकपाल कानून कमजोर, इससे महाघोटालों पर रोक नामुमकिन
- काम के मौलिक अधिकार, साम्प्रदायिक हिंसा निरोधक बिल पारित कराने, कॉरपोरेट द्वारा कृषि योग्य भूमि की खरीद पर रोक समेत जनमुद्दों पर 7 फरवरी से दस दिवसीय उपवास का ऐलान
- प्रकाश करात, एबी वर्धन, न्यायमूर्ति राजेन्द्र सच्चर, वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नय्यर समेत जनांदोलन के प्रतिनिधि होंगे शामिल
नई दिल्ली, 6 फरवरी 2014, आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा है कि कॉरपोरेट घरानों को लोकपाल कानून के दायरे में लाए बिना भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल अथवा कथित जनलोकपाल कानून कमजोर और अपर्याप्त है, ऐसे कमजोर कानून से देश में हो रहे महाघोटालों पर रोक लगना असम्भव है।
आज प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता को सम्बोधित करते हुए श्री सिंह ने कहा कि कॉरपोरेट घरानों व एनजीओ को लोकपाल के दायरे में लाने के लिए जंतर-मंतर पर 7 फरवरी को अपराह्न 1 बजे से दस दिवसीय उपवास करने का ऐलान किया।
इस विषय में जानकारी देते हुए अखिलेन्द्र ने बताया कि इस उपवास कार्यक्रम को देश की तमाम लोकतांत्रिक, प्रगतिशील व इंसाफपसंद ताकतों का समर्थन हासिल है और पहले दिन सीपीआई (एम) के महासचिव का0 प्रकाश करात, सीपीआई के पूर्व महासचिव का0 ए0 बी0 वर्धन, न्यायमूर्ति राजेन्द्र सच्चर, वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नय्यर और सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव डा0 प्रेम सिंह समेत जनांदोलन के प्रतिनिधि इसमें शरीक होंगे। इस उपवास में उ0 प्र0, बिहार, झारखण्ड, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखण्ड़, महाराष्ट्र, तमिलनाडू, कर्नाटक समेत विभिन्न राज्यों से प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे। उन्होंने कहा कि कॉरपोरेट घरानों ने पूरे राजनीतिक तंत्र को भ्रष्ट कर दिया है। राजनीतिक व नौकरशाही तंत्र से गठजोड़ कायम कर वह हमारे प्राकृतिक संसाधनों व सरकारी खजाने समेत बहुमूल्य राष्ट्रीय सम्पदा की लूट में लिप्त है। सच तो यह है कि यही कॉरपोरेट घराने देश में भ्रष्टाचार की गंगोत्री है लेकिन इन्हें लोकपाल के दायरे में नहीं रखा गया है। इसी तरह फोर्ड फांउडेशन जैसी साम्राज्यवादी एजेंसियों के फंड से संचालित एनजीओ हमारे राष्ट्रीय जीवन में भ्रष्टाचार के खतरनाक स्रोत हैं। उनकी बढ़ती घुसपैठ के हमारे स्वंतत्र नीति निर्णयों तथा सुरक्षा के लिए गम्भीर निहितार्थ हैं। लेकिन एनजीओ कारोबार भी लोकपाल के दायरे के बाहर है।
आइपीएफ नेता ने बताया कि इसके साथ ही रोजगार के अधिकार को नीति निर्देशक तत्व की जगह संविधान के मूल अधिकार में शामिल करने, साम्प्रदायिक हिंसा निरोधक बिल को संसद से पारित कराने, कृषि योग्य भूमि के कॉरपोरेट खरीद पर रोक लगाने, कृषि लागत मूल्य आयोग को वैधानिक दर्जा देने, राष्ट्रीय भूमि उपयोग नीति व सर्वागीण जनपक्षीय खनन नीति बनाने, कॉरपोरेट पर टैक्स बढ़ाने, शिक्षा-स्वास्थ्य-कृषि समेत जनहित के मदों पर खर्च बढ़ाने, राष्ट्रीय वेतन नीति बनाने, महंगाई रोकने के लिए वायदा कारोबार पर रोक लगाने, ठेका व दिहाड़ी श्रमिकों को नियमित करने, अति पिछड़ों, पिछड़े-दलित मुसलमानों, आदिवासियों के सामाजिक न्याय के अधिकार, हिफाजत, इंसाफ, जम्हूरियत और कानून का राज स्थापित करने समेत आम नागरिक की जिदंगी के लिए महत्वपूर्ण सवालों को उपवास के माध्यम से उठाया जायेगा। उन्होंने कहा कि बगैर जनपक्षिय नीतियों को लागू किए और लोकतंत्रिक अधिकारों व सामाजिक न्याय की गारंटी के सुशासन की बात महज दिखावा है। आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट एक रेडिकल तथा समावेशी जन एजेण्डा पर तमाम जनतांत्रिक ताकतों को एकताबद्ध करने वाला व्याप्क राजनीतिक मंच है। हम अपने पदाधिकारियों में पचास फीसदी महिलाओं और कुल मिलाकर पच्चहत्तर फीसदी दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों व अल्पसंख्यकों समेत समाज के वंचित तबकों को नेतृत्वकारी पदों पर लाने की सागंठनिक दिशा पर काम कर रहे हैं ताकि सही मायने में एक लोकतांत्रिक समाज का निर्माण हो सके। इसी के तहत प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और जनांदोलनों में सक्रिय डा0 सुलभा ब्रहमे को आइपीएफ का राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व आइजी व दलित चितंक एस आर दारापुरी और प्रो0 निहालुद्दीन अहमद को राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया है। हमारे इस आंदोलन को भारत सरकार के पूर्व वित व वाणिज्य सचिव एसपी शुक्ला, पूर्व सचिव के0 बी0 सक्सेना, पीएस कृष्णनन, प्रख्यात अर्थशास्त्री अमित भादुड़ी का समर्थन हासिल है। पत्रकार वार्ता में अर्थशास्त्री डा0 जया मेहता, वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा व सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता दीपक चौहान तथा प्रो. दीपक मलिक भी उपस्थित रहे।
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