बुधवार, 2 अप्रैल 2014

महान अन्ना का महान अन्याय

ये सारे एनजीओज सरकार से भी पैसा लेते हैं और विदेशों से भी प्रचुर मात्रा में धन लेते हैं और चूंकि अन्ना हजारे एवं ममता बनर्जी के मिलने से प्रो-पीपुल इकोनॉमी के पक्ष में माहौल बनने की संभावना प्रबल हो गई थी, इसलिए यह साजिश हुई कि अगर अन्ना भाजपा, कांग्रेस और उनके पुराने सहयोगियों की बात मानकर ममता बनर्जी से अलग न हों, तो इन फॉरेन फंडेड एनजीओज को अन्ना को ममता से अलग करने के लिए भेजा जाए. इन एनजीओज के प्रतिनिधियों में दुर्भाग्यवश प्रो-मार्केट इकोनॉमी का विरोध करने वाले वामपंथी भी शामिल हो गए, क्योंकि उन्हें लगा कि इसी से ममता बनर्जी को बंगाल में परास्त किया जा सकता है. उनके लिए देश की जनता का हित गौण हो गया, ममता बनर्जी से लड़ाई प्रमुख हो गई. पिछले एक हफ्ते से ये एनजीओज अन्ना को घेर रहे थे और इनका मकसद अन्ना और ममता की प्रो-पीपुल इकोनॉमी को बर्बाद करना था. इसमें कॉरपोरेट सेक्टर भी शामिल हो गया, क्योंकि उसे डर था कि अन्ना और ममता का साथ उसे भी सार्वजनिक ज़िम्मेदारी निभाने के लिए मजबूर करेगा या दबाव डालेगा. इन लोगों ने अन्ना को संत से राजनीतिज्ञ की श्रेणी में खड़ा कर दिया और यह कहा कि भीड़ कम है, इसलिए नहीं जाइए. 
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मैं श्री अन्ना हजारे द्वारा 14 मार्च को लगाए गए आरोप को इसलिए स्वीकार करता हूं, क्योंकि ये आरोप एक ऐसे व्यक्ति द्वारा लगाए गए हैं, जिनका मैं हमेशा सम्मान करता रहा हूं. मैं हमेशा से मानता रहा हूं कि अन्ना हजारे इस देश के ग़रीब, वंचित, अल्पसंख्यक, खासकर मुसलमानों एवं आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के प्रति संवेदनशील हैं और उनकी ज़िंदगी में बदलाव चाहते हैं. मैं उनका सम्मान उनकी सादगी या सफेद कपड़े व टोपी, मंदिर में रहने की वजह से नहीं करता हूं, बल्कि उनके आर्थिक एजेंडे की वजह से मैं उनका आदर करता हूं. उन्होंने जो 17 सूत्रीय आर्थिक एजेंडा सभी पार्टियों को भेजा, वह समावेशी विकास की कुंजी है. मैं यह मानता हूं कि देश की ज़्यादातर पार्टियां देश की अर्थव्यवस्था को बाज़ारवाद के चक्रव्यूह में फंसा देना चाहती हैं. कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी देश में नव-उदारवादी अर्थव्यवस्था को स्थापित करना चाहती हैं. नव-उदारवाद अमीरों को अमीर बनाता है और ग़रीबों को और भी ग़रीब बनाता है. साथ ही यह देश को अराजकता, गृहयुद्ध और सांप्रदायिकता के कुचक्र में धकेल देने वाली नीति है. अन्ना का आर्थिक एजेंडा इस नव-उदारवादी व्यवस्था के विरोध में था, इसलिए मैंने अन्ना का साथ दिया.

जब अन्ना जी के समर्थकों ने एक राजनीतिक दल बनाया और वह अपने गांव चले गए और चुप होकर बैठ गए, तो मुझे उसका अफ़सोस हुआ. जनरल वी के सिंह के साथ मैं अन्ना जी के पास गया और परिणामस्वरूप अन्ना जी ने  पिछले 30 जनवरी, 2013 को एक विशाल रैली पटना के गांधी मैदान में की. अन्ना ने इस रैली का नाम जनतंत्र रैली रखा, जनतंत्र मोर्चा नामक एक संगठन का ऐलान किया और इंडिया अगेंस्ट करप्शन एवं उनके नाम से चल रहे सभी संगठनों से रिश्ता तोड़ लिया. पटना की इस रैली में अन्ना ने यह घोषणा की कि उनके सारे कार्यक्रम जनतंत्र मोर्चा के तहत किए जाएंगे. इस रैली के पीछे की कहानी यह है कि इस रैली की घोषणा अन्ना ने पहले ही कर दी थी. अन्ना के सारे साथियों ने उनका साथ छोड़ दिया. अन्ना को पता चल चुका था कि उनके पुराने साथी आंदोलन के नाम पर चंदा उठाते हैं और उसे चट कर जाते हैं. जब अन्ना के साथियों ने उन्हें छोड़ दिया, तब मैंने और जनरल वी के सिंह ने अन्ना के कहने पर पटना में रैली की ज़िम्मेदारी ली. इस रैली में हमने कई एनजीओ वालों को मंच पर आने की अनुमति दी. मजेदार बात यह है कि इन लोगों ने सरकार के ख़िलाफ़ एक भी शब्द नहीं बोला. एक ने तो भजन गाकर अपना भाषण ख़त्म कर दिया था. इन्होंने अन्ना का साथ देने का वादा भी किया था, लेकिन जब लगा कि अन्ना के इरादे सरकार के भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ तीखा प्रहार करने वाले हैं, जनरल वी के सिंह कांग्रेस पर हमला करने वाले हैं, तो ये अन्ना से दूर हो गए. फिर किसी कार्यक्रम में इन्होंने साथ नहीं दिया. पटना की रैली के बाद अन्ना ने मुझे और जनरल वी के सिंह से पूरे देश में यात्रा करने की इच्छा जताई. हमने अन्ना की इच्छा को आदेश माना और जनतंत्र यात्रा का आयोजन किया. 30 मार्च, 2013 से अन्ना ने देश में जनतंत्र यात्रा शुरू की और अक्टूबर तक वह 28 हजार किलोमीटर से ज़्यादा छह प्रदेशों में घूमे और आठ सौ से ज़्यादा सभाएं कीं. उनकी इन सारी सभाओं का आयोजन जनतंत्र मोर्चा ने किया.
अन्ना जी ने देश की राजनीति में हस्तक्षेप का मन बनाया और अपने दस्तखत से सारे राजनीतिक दलों को एक पत्र भेजा, जिसमें सत्रह सूत्रीय कार्यक्रम के बारे में उनकी राय मांगी. इस पत्र को लिखने के बाद अन्ना ने अपनी सभाओं में जगह-जगह यह इशारा किया कि वह ऐसे उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे, जो साफ़ छवि वाले होंगे और निर्दलीय होंगे. अफ़सोस की बात यह है कि किसी एक भी उम्मीदवार ने उनसे संपर्क नहीं किया. दिसंबर में पश्‍चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के दल ने उनके पत्र का जवाब दिया, जिसमें सत्रह सूत्रीय कार्यक्रम को पूर्णत: स्वीकार किया गया. अन्ना ने उस पत्र को अपनी दराज में छुपाकर रख लिया, प्रेस को लीक नहीं किया. 13 फरवरी को मुकुल राय श्री अन्ना हजारे से मिलने गए और उन्हें विश्‍वास दिलाया कि ममता बनर्जी उनके आर्थिक कार्यक्रम का समर्थन करती हैं. तब वहां अन्ना हजारे ने मीडिया से कहा कि वह ममता बनर्जी के उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे और उनके उम्मीदवार ज़्यादा से ज़्यादा जीतें, इसके लिए प्रयास करेंगे और ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनाएंगे. इसी मीटिंग में अन्ना हजारे और मुकुल राय के बीच तय हुआ कि दिल्ली में 19 फरवरी को दोनों प्रेस कांफ्रेंस करेंगे और 18 फरवरी की रात दोनों की पहली मुलाकात होगी. अन्ना हजारे ने ममता बनर्जी की भूरि-भूरि प्रशंसा की.
18 तारीख को अन्ना हजारे दिल्ली आए और ममता बनर्जी से उनके घर पर मिले, खाना खाया और लंबी बातचीत की. इसके बाद 19 फरवरी को दोनों ने एक साथ प्रेस कांफ्रेंस की. इस प्रेस कांफ्रेंस में अन्ना हजारे ने फिर दोहराया कि वह ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं और उनके लिए सारे देश में चुनाव प्रचार करेंगे. दिल्ली की रैली अन्ना हजारे के समर्थकों द्वारा आयोजित की गई थी और इसका नाम जनतंत्र रैली रखा गया था. अन्ना हजारे ने स्वयं रैली के पोस्टर देखे थे और उन्हें स्वीकृत किया था. इससे पहले अन्ना हजारे ने मुंबई में एक घंटे की एड फिल्म की शूटिंग की, जो बताता है कि अन्ना यह एडवर्टिजमेंट बनवाने के लिए कितने उत्सुक थे. दरअसल, अन्ना यह चाहते थे कि कैसे तृणमूल सत्ता के नज़दीक पहुंचे और सत्रह सूत्रीय कार्यक्रम को लागू करे. 12 मार्च की रैली प्रस्तावित हुई और इसे अन्ना के समर्थकों ने आयोजित किया. इन समर्थकों में किसान नेता, छात्रनेता एवं अन्ना के पुराने वालंटियर्स शामिल थे. इस रैली के लिए तृणमूल कांग्रेस ने बहुत साधारण आर्थिक सहायता भी दी.
रैली से तीन दिन पहले दिल्ली में भारी बारिश हुई और रैली के दिन सुबह 5 बजे तक पानी बरसा और दिल्ली के आसपास ओले गिरे. बहुत सारे लोग, जो रैली में आना चाहते थे, वे फसल की बर्बादी की वजह से नहीं आ सके. दिल्ली के लोगों को लगा कि इतनी बारिश से रामलीला मैदान की व्यवस्था खराब हो गई होगी, इसलिए वे नहीं आए. उस दिन वर्किंग डे भी था. 2011 के अनशन के दौरान भी देखा गया था कि वर्किंग डे में लोग कम आते थे, जबकि शनिवार-रविवार को ज़्यादा लोग आते थे. एक और बड़ी वजह रही. इस दौरान दिल्ली में परीक्षाएं चल रही हैं, इस वजह से भी अन्ना को चाहने वाले लोग अपेक्षित संख्या में नहीं आ सके. रैली के दिन अन्ना की आंख में इंफेक्शन हो गया और उनकी आंख से लाल पानी निकलने लगा. ममता बनर्जी रैली में आईं, लेकिन अन्ना रैली में नहीं आए. जब उनसे कारण जानने की कोशिश की गई, तो उन्होंने ममता बनर्जी को संदेश भेजा कि उनकी तबियत खराब है, इसलिए वह रैली में नहीं आ रहे हैं. हालांकि, यह ख़बर बाहर आ चुकी थी कि अन्ना हजारे को रैली में आने से रोकने के लिए एनजीओज ने अन्ना की घेराबंदी कर ली है.
13 और 14 तारीख को इन एनजीओज की बैठक अन्ना हजारे के साथ हुई और इन्होंने अन्ना हजारे के साथ मिलकर एक राजनीतिक फ्रंट बनाने का फैसला किया.
अफ़सोस की बात यह है कि एक भी एनजीओ अन्ना की जनतंत्र यात्रा में पिछले वर्ष की जनवरी से लेकर अब तक कहीं नहीं रहा, स़िर्फ एक व्यक्ति मध्य प्रदेश में साथ रहे और वह अन्ना को यह समझाते रहे कि आप अगर ममता का समर्थन करेंगे, तो वामपंथियों का बंगाल में सफाया हो जाएगा. दरअसल, अन्ना और ममता का साथ आना न स़िर्फ नव-उदारवादी अर्थव्यवस्था के लिए ख़तरा था, बल्कि जिस तरह से ममता ने अल्पसंख्यकों का विश्‍वास जीता है, वह उत्तर भारत के कई राज्यों में कई बड़े-बड़े राजनीतिक दलों की राजनीति के लिए पूर्ण विराम साबित हो सकता था. दिल्ली में ममता और अन्ना की जोड़ी आम आदमी पार्टी के लिए ख़तरा बन चुकी थी. अन्ना और ममता 2014 के आम चुनाव पर ही नहीं, बल्कि देश की राजनीति पर असर डालने वाले थे. इसलिए यह समझा जा सकता है कि अन्ना पर कई तरह का दबाव डाला गया होगा. अन्ना ने ममता से रिश्ता तोड़कर भारत में एक नई राजनीतिक पहल का गला घोंटा है, साथ ही अपने समर्थकों को निराश किया है.
अन्ना ने मेरे ऊपर धोखाधड़ी का इल्जाम लगाया है. मैं अन्ना का बहुत आदर करता हूं. अब तक अन्ना के विचारों का सम्मान करते हुए मैंने उनके आंदोलन का समर्थन किया और साथ दिया है. मैंने अपना यह रोल कभी नहीं माना कि मैं अन्ना के लिए भीड़ इकट्ठा कराऊंगा. अन्ना के जिन समर्थकों ने रैली का आयोजन किया था, उनके पास किराए की भीड़ लाने के लिए पैसे नहीं थे. अगर अन्ना हजारे के नाम पर लोग नहीं आए और प्राकृतिक परिस्थितियों के कारण लोग नहीं आए, तो इसमें धोखाधड़ी कहां हुई? अन्ना के नाम पर दस लोग आए या दस हजार लोग आए, वे अन्ना के समाज परिवर्तन और उनके सत्रह सूत्रीय कार्यक्रम के बारे में जानना चाहते थे. जो भी लोग आए, वे अन्ना के नाम पर आए और उन्हें बहुत निराशा हुई, क्योंकि वे अन्ना को सुनने आए थे. अन्ना सात्विक संत हैं, वह आसाराम बापू नहीं हैं कि शर्त रखें कि जब तक इतने लोग नहीं होंगे, तब तक हम बोलने नहीं जाएंगे. अन्ना समाज परिवर्तन का सपना देखते हैं. अन्ना रामलीला मैदान में जो बोलते, उन्हें सुनने आए लगभग दस हजार लोग तो सुनते ही, साथ ही देश-विदेश का मीडिया भी वहां मौजूद था. सारी दुनिया सत्रह सूत्रीय एजेंडे पर उनके विचार सुनती, लेकिन अन्ना को वहां न जाने देने का षड्यंत्र प्रो-मार्केट से जुड़े और सरकारी मंत्री से जुड़े एनजीओज के नेताओं ने सफल कर दिया.
मैं पत्रकार हूं. मैं अन्ना के विचारों का समर्थन कर सकता हूं, साथ चलकर शरीर से समर्थन कर सकता हूं, बोलकर समर्थन कर सकता हूं, लेकिन मैं उनके लिए भीड़ एकत्र करने का औजार हूं, इसकी मैंने कल्पना नहीं की थी. अगर वह मुझसे कह देते कि वह पचास हजार लोगों से कम की सभा में नहीं आएंगे, तो फिर मैं उनसे न सभा में जाने को कहता और न सभा के आयोजकों की मदद करता. ममता बनर्जी ईमानदार और लोगों के हक़ों के लिए लड़ने वाली नेता हैं और अन्ना हजारे गांव को मुख्य शक्ति बनाने का सपना देखते हैं, इसीलिए इन दोनों के मिलन की भूमिका में मैंने थोड़ा-सा योगदान दिया. उस सभा में दरअसल राजनेता होने के नाते ममता बनर्जी को नहीं जाना चाहिए था, क्योंकि आठ से दस हजार की भीड़ थी और संत होने के नाते अन्ना हजारे को जाना चाहिए था. लेकिन, यह दुर्भाग्य है कि भूमिका बदल गई, ममता बनर्जी ने संत का काम किया और अन्ना हजारे ने राजनेता का काम किया.
इसलिए, मैं विनम्रता से श्री अन्ना हजारे और अपने सभी मित्रों से जानना चाहता हूं कि अगर अन्ना को सुनने भीड़ नहीं आई, तो इसमें मैंने धोखाधड़ी क्या की? यह रैली जनतंत्र रैली थी और सत्रह सूत्रीय कार्यक्रम के ऊपर रैली थी. इस बहस का क्या मतलब है कि यह किसकी रैली थी? रैली में जनता थी और सत्रह सूत्रीय कार्यक्रम के बारे में अन्ना को बताना था. अन्ना ने कभी यह साफ़ नहीं किया था कि मैं तृणमूल कांग्रेस की रैली में नहीं जाऊंगा. अन्ना ने 14 तारीख को एनजीओज की प्रेस कांफ्रेंस में दो परस्पर विरोधी बातें कहीं. उन्होंने कहा कि मेरी तबीयत खराब नहीं थी और मैं वहां इसलिए नहीं गया कि वहां भीड़ नहीं थी. जबकि 12 तारीख को अन्ना ने आन रिकॉर्ड यह कहा था कि मेरी तबीयत खराब है. अब इन दोनों बयानों के बीच ही कहीं सच्चाई छिपी हुई है. अन्ना हजारे ने यह भी कहा कि मुझे रैली का सही समय नहीं बताया गया, पहले 11 बजे कहा गया और बाद में एक बजे. अब क्या दो घंटे के इस अंतराल को अपराध माना जाना चाहिए? इसमें मैंने कौन सी धोखाधड़ी की? 30 जनवरी, 2013 की रैली की तैयारी से लेकर 12 मार्च, 2014 की जनतंत्र रैली तक अन्ना हजारे के सारे कार्यक्रमों पर जितना पैसा खर्च हुआ, उसका चंदा नहीं किया गया. किसी से सार्वजनिक तौर पर पैसे नहीं मांगे गए. अन्ना हजारे की सात्विकता, सच्चाई, ईमानदारी में विश्‍वास रखने वाले लोगों के समूह ने अपनी गाढ़ी कमाई में से अंशदान देकर इन सारे कार्यक्रमों को चलाया. अन्ना हजारे ने किसी से न एक पैसा देने के लिए कहा और न कभी यह पूछा कि सारे कार्यक्रम किस तरह चल रहे हैं?
अन्ना हजारे की प्रेस कांफ्रेंस में उनके साथ इस बार वे चेहरे थे, जो सरकारों से बड़ा फंड लेकर अपना एनजीओ चलाते हैं और विदेशों से पैसा लेने में उन्हें कोई शर्म नहीं आती. अन्ना हजारे अपने साथ के लोगों से कई बार कह चुके हैं कि राजनीति में विदेशी पैसा नहीं आना चाहिए, देश की राजनीति देश के पैसे से होनी चाहिए. उनका इशारा अपने एक पूर्व शिष्य की तरफ़ था. आज अन्ना हजारे के साथ एनजीओ के नाम पर विदेशी फंड लेकर, सरकारी पैसा लेकर काम करने वाले लोग नज़र आ रहे हैं, जो देश की राजनीति में हस्तक्षेप कर विधानसभा और लोकसभा में जाने के लिए एक राजनीतिक फ्रंट बनाने की बात कर रहे हैं.
मैं अन्ना हजारे का सम्मान करता रहूंगा और उनकी देशसेवा के काम में जितनी मदद हो सकेगी, करता रहूंगा. अफ़सोस मुझे इस बात का है कि मैंने जितने तथ्य सामने रखे हैं, वे सब श्री अन्ना हजारे द्वारा दिए गए तथ्य हैं. अगर वे कुछ बातें भूल गए हों, तो इसे पढ़कर शायद कुछ याद करें और अपना रास्ता सुधार सकें.
मैं यह श्री अन्ना हजारे के लिए लिख रहा हूं, ताकि वह अपनी स्मृति को ताजा कर सकें. अफ़सोस इस बात का है कि अन्ना हजारे ने जो भाषा इस्तेमाल की और मेरे ऊपर धोखाधड़ी का आरोप लगाया, वह पूर्णत: असत्य, अनर्गल है और एक संत की भाषा नहीं है. यहां मैं एक और महत्वपूर्ण बात साफ़ कर दूं कि अन्ना हजारे ने 12 तारीख के बाद न मुझे फोन किया, न बात की और न यह बताया कि आपके बारे में लोग ऐसा कह रहे हैं. जिन लोगों ने अन्ना हजारे के लिए संपूर्ण समर्पण के भाव से काम किया, आज वे खुद को ठगा-सा महसूस कर रहे हैं और इसे महान अन्ना का महान अन्याय मान रहे हैं. ईश्‍वर से प्रार्थना है कि अन्ना हजारे को बीती बातें याद आ जाएं और अन्ना अपने क़दम विदेशी फंड से संचालित एनजीओज को मजबूत करने की जगह देश के ग़रीबों, दलितों, अल्पसंख्यकों और वंचित तबके के लोगों को मजबूत करने के लिए उठाएं.
चौथी दुनिया
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