बुधवार, 2 अप्रैल 2014

‘डिवाइन लाइट मिशन’



सतपाल महाराज यह ‘डिवाइन लाइट मिशन’ के माध्यम से 1989 में कांग्रेस में आए। लेकिन छह साल बाद ही इसे छोड़ गए। इसके एक दशक बाद 1999 में लौटे और तब से लोक सभा में कई बार कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया। उत्तराखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री हरीश रावत से मतभेद की वजह से सतपाल ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और भाजपा में शामिल हो गए। राम विलास पासवान जयप्रकाश नारायण आंदोलन के समय युवा नेता के बतौर राजनीति में शामिल हुए और 1977 में पहली बार सांसद बने। 2000 में पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी बनाई। केंद्र में वाजपेयी मंत्रिमंडल में मंत्री भी रहे पर गुजरात दंगे के विरोध में इन्होंने एनडीए छोड़ दिया। लालू प्रसाद और कांग्रेस के साथ मिल कर पिछला चुनाव लड़े पासवान अब भाजपा में हैं। डी पुरन्देश्वरी एनटी रामाराव की पुत्री पुरन्देश्वरी यूपीए सरकार में हाल तक तक मंत्री रही हैं। आंध्र प्रदेश के विभाजन के विरोध में इन्होंने कांग्रेस छोड़ दी है। अब ये भाजपा में हैं और उसके टिकट पर चुनाव भी लड़ सकती हैं। चंद्रबाबू नायडू आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और एनडीए के संयोजक के रूप में 1999 और 2004 में सक्रिय रहे नायडू ने 2004 में एनडीए की हार के बाद इससे नाता तोड़ लिया। आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद की परिस्थितियों में 63 चंद्रबाबू का भाजपा के साथ गठबंधन तय है। रामकृपाल यादव राजद नेता लालू प्रसाद के सबसे भरोसेमंद रहे रामकृपाल उस समय पार्टी छोड़ गए जब उन्हें पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र से टिकट न दिया गया। इससे नाराज होकर रामकृपाल लालू की धुर विरोधी पार्टी भाजपा में शामिल हो गए। अब रामकृपाल यहां से भाजपा टिकट पर लालू की बेटी मीसा भारती को चुनौती दे रहे हैं। जगदम्बिका पाल उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे पाल हवा का रुख भांप कर कांग्रेस से रुखसत हो लिये और भाजपा में आ गए। अब डुमरियागंज सीट से भाजपा के उम्मीदवार हैं। एन के सिंह नौकरशाह के रूप में वित्त सचिव और प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव रहे एनके सिंह अवकाश प्राप्ति के बाद नीतीश कुमार के जदयू में 2008 में शामिल हुए और राज्य सभा से उस पार्टी के सांसद हैं। लोक सभा चुनाव लड़ने के नीतीश कुमार के निर्देश से खफा होकर एनके सिंह ने भाजपा का हाथ थाम लिया है। मेहबूबा मुफ्ती पीडीपी नेता मेहबूबा ने चुनाव जीतने की सूरत में केंद्र में एनडीए सरकार के साथ काम करने का इरादा जताया है। इसके पहले भी वह एनडीए के साथ रही हैं। उनका कहना है कि दिल्ली में ‘मजबूत नेतृत्त्व’ का होना कश्मीर के लिए अच्छा है। इसके पहले, पीडीपी का कांग्रेस से गठबंधन कर संयुक्त सरकार चला चुकी हैं। मीरवाइज फारूक हुर्रियत कान्फ्रेंस नेता फारूक हालांकि चुनाव लड़ने से इनकार करते हैं लेकिन वह अपनी याददाश्त और अनुभव के आधार पर कहते हैं कि यूपीए की तुलना में वाजपेयी की एनडीए सरकार ने कश्मीर मसले के लिए बहुत किया था। लिहाजा, वह एनडीए का समर्थन कर सकते हैं।

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