बुधवार, 30 अप्रैल 2014

बनारस में मोदी के लिये संघ परिवार उतरा मैदान में


मोदी के लिये विहिप के 30 हजार कार्यकर्ता बनारस की खांक छान रहे हैं

नरेन्द्र मोदी के लिये विश्व हिन्दू परिषद के प्रवीण तोगडिया को चाहे आरएसएस ने खामोश कर दिया हो लेकिन बनारस का सच यही है कि नरेन्द्र मोदी के लिये बनारस शहर ही नहीं बल्कि जिले की हर गली में विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता ही घूम रहे हैं। और खास बात यह है कि अय़ोध्या आंदोलन के दौर में विहिप के जिस नेता ने 6 दिसंबर 1992 को लेकर समूची रणनीति बनायी थी, विहिप के वही नेता बनारस में मोदी के जीत का मंत्र भी फूंक रहे हैं। मोदी की जीत के लिये व्यूह रचना बनाते विहिप के अंतराष्ट्रीय महामंत्री चंपत राय लगातार विहिप के सैकड़ों कार्यकर्ताओं को अयोध्या आंदोलन के दौर से इतर जाति और मजहब से इतर कैसे चुनावी जीत साधी जा सकती है, इसकी बिसात बिछा रहे है । जिस तरह की बिसात विहिप बनारस में बना रहा है, उसने पहली बार इसके संकेत दे दिये हैं कि किसी भी राजनीतिक दल से कई कदम आगे चलते हुये किसी भी सामाजिक संगठन का राजनीतिक प्रयोग कैसे किया जा सकता है। दिलचस्प बात यह है कि विहिप के लिये 2014 गोल्डन जुबली का साल है और जन्माष्टमी के दिन अपनी स्वर्णजंयती मनाने से पहले विहिप ने राजनीतिक तौर पर जिस तरह की व्यूह रचना समूचे बनारस में बिछा दी है, उसके बाद मोदी हर-हर या घर-घर पहुंचे या ना पहुंचे लेकिन हर वोटर के घर विहिप राजनीतिक दस्तक देकर यह एहसास करा रहा है कि पहली बार जातीय समीकरण भी टूट रहे हैं और मजहब के नाम पर सियासत भी खत्म हो रही है क्योंकि संघ परिवार का सामाजिक बराबरी का चिंतन लेकर मोदी बनारस से चुनाव जीत कर पीएम बनने जा रहे हैं।

बनारस के लिये विहिप की चुनावी व्यूह रचना प्रखंड से पूर्वा तक की है। यानी करीब 30 हजार से ज्यादा विहिप से जुड़े लोग बनारस के सबसे छोटे गांव यानी पूर्वा तक पहुंचेंगे, जहां ना बिजली पहुंची है और ना ही सड़क यानी विकास की कोई धारा जगा नहीं पहुंची है, वहां मोदी के लिये विहिप वोट के लिये दस्तक दे रहा है। दरअसल बनारस लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की पांच सीटे हैं। हर विधानसभा क्षेत्र में विहिप के दस प्रखंड काम कर रहे हैं। यानी कुल 50 प्रखंड । हर प्रखंड के अंदर दस खंड काम करते हैं। यानी पांच सौ खंड और हर खंड में दस न्याय पंचायत है यानी पांच हजार पंचायत और हर न्याय पंचायत में दो से पांच ग्राम सभा है। यानी औसत करीब पन्द्रह हजार ग्राम सभा और हर ग्राम सभा में 2 से 10 छोटे गांव यानी पूर्वा हैं। यानी पचास हजार से ज्यादा छोटे बड़े गांव तक में विहिप की दस्तक 5 से 10 मई के दौरान हो जायेगी।

दरअसल संघ का यह अपने का नायाब राजनीतिक प्रयोग है जिसे विहिप के कार्यकर्ता मोदी के पीएम पद के उम्मीदवार बनते ही अमली जामा पहनाने में लगा गये। बनारस में बीजेपी को सिर्फ यही काम सौपा गया है कि वह एक बूथ,दस यूथ के तहत काम करे। यानी हर बूथ पर दस युवा कैसे मौजूद रहेंगे, उसके लिये अपनी राजनीतिक इकाई को संघ ने लगा दिया है। आरएसएस के स्वयंसेवक एक पन्ना,एक स्वयंसेवक के तहत काम कर रहे है। यानी वोटर लिस्ट के हर एक पन्ने को हर एक स्वयंसेवक ने संभाला है। जिसमें हर वोटर को लेकर समूची जानकारी हासिल करने में स्वयंसेवक लगे हुये हैं। वही विहिप का काम बनारस में सबसे विस्तृत और सबसे जटिल है। दिल्ली से बनारस के लिये विशेष रुप से भेजे गये राजीव गुप्ता के मुताबिक 20 अप्रैल तक विहिप ने पहला लक्ष्य पा लिया। यानी 50 प्रखंड और 500 खंड में काम पूरा हो चुका है। पांच हजार न्याय पंचायतों में से तीन हजार पंचायत भी कवर हो चुकी हैं, जो पांच अप्रैल तक पूरी हो जायेगी। आखिरी चरण में 5 मई से 10 मई तक विहिप का कार्यकर्ता हर गांव के हर दरवाजे पर दस्तक दे चुका होगा।

दरअसल, बनारस को संघ परिवार ने अगर विहिप के जरीय चुनावी प्रयोगशाला बनाया है तो विहिप के पचास वर्ष के उत्सव की तैयारी के लिये भी संघ इसी प्रयोगशाला के दायरे में उन्हीं मुद्दो को राजनीतिक तौर पर मथ रहा है, जिसे वाजपेयी सरकार के दौर में हाशिये पर रख दिया गया था। बेहद महीन तरीके से मोदी की चुनावी जीत की बिछती बिसात पर राजनीतिक तौर पर सक्रिय वोटरो के सामने संघ परिवार अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और धारा 370 के साथ कश्मीरी पंडितों का सवाल भी उछालने में लगे हैं। विहिप के चंपत राय अगर मोदी की जीत के साथ हिन्दूस्तान की उस परिकल्पना को विहिप कार्यकर्ताओं के सामने परोस रहे है जिसके आसरे आरएसएस के सामाजिक शुद्दीकरण राजनीतिक शुद्दीकरण में बदल जाये तो काशी प्रांत के संगठन मंत्री मनोज श्रीवास्तव का मंत्र अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और धारा 370 को खत्म कर कश्मीरी से भगाये गये पंडितों की वापसी के मौके के तौर पर मोदी के जीत को अंजाम देने में लग गये हैं। यानी पहली बार संघ परिवार चुनाव के मौके को अपने एजेंडे में राजनीतिक तौर पर ढालने की तैयारी भी कर रही है और उसे लगने भी लगा है कि नरेन्द्र मोदी के नाम पर सक्रिय हुई राजनीति का लाभ संघ को मिलेगा। इसलिये बनारस के पन्नालाल मार्ग पर बने केसर भवन में मोदी की चुनावी जीत की बिसात पर यह नारे लगने लगे है कि "अयोध्या में राम मंदिर सुनिश्चित है । धारा 370 का खात्मा होगा । आतंकवाद और नक्सलवाद अपने चरम पर है। देश की सीमाएँ असुरक्षित है । सीमा पर हमारे जांबाज़ जवानों के सिर काट दिया जाता है। आए दिन चीन द्वारा भारत के अन्दर कई किलोमीटर तक घुसपैठ करता है। करोडों बांग्लादेशी हमारे देश में घुसपैठ करते हैं। परंतु हमारी केन्द्र की लचर सरकार चुपचाप इस प्रकार के सभी अपमान सहती रहती है इसलिए भारत के नौजवानों ने देश में परिवर्तन लाने के लिए मन बना लिया है । इसलिए जातिवादी और मजहब की राजनीति करने वालों की दुकानें इस लोकसभा चुनाव में बन्द हो चुकी हैं। "

तो पहली बार आरएसएस की विचारधारा संघ परिवार की राजनीतिक बिसात पर प्यादा है । और संघ का चुनावी प्रयोग सफल हुआ तो प्यादा बने विचार को वजीर के तौर पर उभरना है। और संघ के लिये यह प्रयोगशाला इसलिये उसकी अपनी है क्योकि विकास पुरष नरेन्द्र मोदी काशी में उमडे जमसैलाब से ही लबालब है। जहां विकास की कोई धारा पहुंची नहीं उन गलियों में मोदी या बीजेपी नहीं बल्कि विहिप के नौजवान धूल फांक रहे हैं और आरएसएस की ताकत यही है जिसके आगे मोदी भी नतमस्तक हैं।

पुण्य प्रसून बाजपेयी


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