चढ़ावे के रूप में चढ़ती है लौकी 30 साल की मिलउतीन अपने बच्चे को देवी के सामने सुलाकर प्रार्थना कर रही है। मन ही मन बुदबुदा रही है… मां मेरे लाडले को कभी कोई बीमारी न घेरे। मंदिर से बाहर निकलती इस महिला के चेहरे पर आस्था के भाव थे, आंखें नम थीं। उसके बाहर निकलते ही चढ़ावे के लिए लौकी और तेंदू की लकड़ी लेकर टीकम अपने बच्चे के साथ भीतर जाती है। टीकम के बाद शकुंतला, सुशीला और फिर मीलों दूर से आई ज्योति तिवारी की बारी। ऐसे ही दृश्य पूरे दिन रतनपुर के शाटन देवी मंदिर में देखने को मिलते हैं। यह आम मंदिरों से कई मायनों में अनूठा और अलग है। देशभर में रतनपुर की पहचान महामाया मंदिर को लेकर है। यहां का शाटन देवी मंदिर उन लोगों के लिए अनजाना नहीं है, जिनके बच्चे किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त हों। करीब 150 साल पुराने इस मंदिर को लेकर कई मान्यताएं हैं। यहां चढ़ावे के रूप में फल, प्रसाद या पैसे नहीं, बल्कि लौकी और तेंदू की लकडिय़ां चढ़ाई जाती हैं। रतनपुर में इसे ‘बच्चों का मंदिर’ और देवी को ‘बच्चों की देवी के नाम से जाना जाता है। पुजारी त्रिभुवन दास वैष्णव का कहना है कि सूखा रोग से पीडि़त कई बच्चे मंदिर में आकर ठीक हुए हैं। ऐसी कोई बीमारी नहीं : शिशु रोग विशेषज्ञ डा. सुशील कुमार का कहना है कि बच्चों के पैर जुडऩे को लेकर किसी भी तरह की बीमारी नहीं होती। आए दिन इस तरह की बातें सुनने को मिलती हैं, लेकिन मेडिकल साइंस में इसका कोई आधार नहीं है। मैं देवी-देवताओं की पूजा के खिलाफ नहीं हूं, लेकिन क्या ऐसी बीमारी के ठीक होने के लिए पूजा करना उचित है, जो बीमारी ही नहीं है। कई बच्चे तो अस्पताल में ठीक नहीं हुए तो यहां लाए गए और उन्हें आराम मिला। यह अंधविश्वास नहीं, हजारों लोगों की आस्था से जुड़ा मामला है। लकड़ी और लौकी इसलिए… मंदिर में तेंदू की लकड़ी और लौकी विशेष रूप से चढ़ाई जाती है। इसकी वजह पूछने पर मंदिर के पुजारी त्रिभुवन दास वैष्णव कहते हैं कि तेंदू की लकड़ी लचकदार होती है और लौकी ते से विकसित होने का प्रतीक है। मान्यता है कि इससे बच्चे का शरीर लचकदार व तंदरुस्त होता है और वह लौकी की तरह तेजी से विकसित होता है। दूर होती है पैर सटने की बीमारी बच्चों को सूखा रोग होने पर पैर आपस में सट जाते हैं। ग्रामीणों के मुताबिक यह बीमारी देवी की पूजा से दूर हो जाती है।बच्चों की स्वास्थ्य रक्षा और संतान की मुराद भी पूरी होती है। पुजारी के मुताबिक मां नौदुर्गा का छठवां स्वरूप कात्यायनी देवी का है, जिसे संकट हरिणी, पुत्रदा और बलदा भी कहा जाता है। इसी देवी को यहां शाटन देवी और शटवाई दाई के नाम से पूजा जाता है। मंदिर का उल्लेख नहीं जनश्रुति के मुताबिक नए मंदिर के पहले यहां छोटा सा मंदिर था, जहां ग्रामीण 150 वर्षों से कुष्मांडा देवी को शटवाई दाई के रूप में पूजते आ रहे हैं। जिन ग्रंथों में रतनपुर के बारे में जानकारी है, उनमें या बाद के ग्रंथों में इस मंदिर का उल्लेख नहीं है।
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