बुधवार, 14 मई 2014

आम आदमी पार्टी का काला सच



आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेता अरविंद केजरीवाल की असलियत अब सामने आने लगी है. सत्ता की ख़ातिर पहले उन्होंने अन्ना हज़ारे को धोखा दिया, उसके बाद दिल्ली की जनता को. और, अब वह अपनी पार्टी के नेताओं को भी नज़रअंदाज़ करने लगे हैं. ख़ुद को बेहद मामूली शख्स बताने वाले केजरीवाल की पार्टी को किस तरह अरब देशों और फोर्ड फाउंडेशन के माध्यम से बेशुमार धन मिल रहा है. क्या है पूरा मामला, बता रहे हैं आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य रह चुके अश्‍विनी उपाध्याय. उनसे बातचीत की है चौथी दुनिया के संपादक समन्वय डॉ. मनीष कुमार ने. प्रस्तुत हैं मुख्य अंश…

अरविंद केजरीवाल से आपकी पुरानी दोस्ती थी, फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि आप आम आदमी पार्टी से अलग हो गए?

पिछले कई महीनों से कुछ बातों को लेकर हमारा विरोध चल रहा था. हमारा पारिवारिक रिश्ता है, लेकिन हमारे लिए सत्ता पहले नहीं, बल्कि देश पहले है. अब वे लोग रास्ता भटक गए हैं, उनमें देश के लिए कोई जज्बात बचे नहीं हैं. उनके लिए भ्रष्टाचार अब कोई मुद्दा नहीं है और भ्रष्टाचार के नाम पर वे लोगों को धोखा दे रहे हैं.

केजरीवाल को लेकर आपकी इतनी नाराज़गी क्यों है?

मैं आपको दो-तीन उदाहरण देता हूं. दिल्ली में एक लोकायुक्त क़ानून है, जो सबसे बढ़िया है. केजरीवाल मुख्यमंत्री बने, अगर उनकी नीयत साफ़ होती, तो वह उसमें बदलाव कर सकते थे. केजरीवाल जिस लोकपाल की ढफली बजाते हैं, उसकी धाराएं अगर वह चाहते, तो लोकायुक्त क़ानून में डाल सकते थे. अगर उसका नाम लोकायुक्त ही रहता, तो इससे क्या फ़़र्क पड़ता? भ्रष्टाचार नाम से नहीं, बल्कि धाराओं से कम होता है. उन्होंने (केजरीवाल) ऐसा नहीं किया, क्योंकि उनकी मंशा ठीक नहीं थी. दूसरी बात, मुख्यमंत्री बनने के पहले केजरीवाल ने जनता को बेवकूफ बनाया कि हम जनमत संग्रह कराएंगे, लेकिन इस्तीफ़ा देते समय उन्होंने ऐसा नहीं किया.

आख़िर केजरीवाल ने अचानक इस्तीफ़ा क्यों दे दिया?

दरअसल, चार लोगों की मीटिंग हुई थी, जिसमें योगेंद्र यादव, अरविंद केजरीवाल, संजय सिंह और मनीष सिसौदिया शामिल थे. यहां तक कि उसमें प्रशांत भूषण भी शामिल नहीं थे. उन्हीं चार लोगों ने मिलकर यह ़फैसला लिया था.

इस तरह के ़फैसले लेने के पीछे मुख्य वजह क्या है?

उनकी मानसिकता यह थी कि वे चारों तरफ़ जाएंगे और सभी जगहों से चुनाव लड़ेंगे. दरअसल, वे देश में खिचड़ी सरकार बनने की इच्छा रखते हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि हंग पार्लियामेंट बनने की स्थिति में उन लोगों को एक बड़ी डील मिलने वाली है. किसी तरह देश अस्थिर सरकार की ओर बढ़ जाए, यही उनका एजेंडा है. यानी देश में सत्ता विरोधी लहर के तहत पड़ने वाला वोट किसी तरह तितर-बितर हो जाए, ताकि मतदाताओं के बीच अराजकता फैल जाए.

इसका मतलब कि केजरीवाल ने जन-लोकपाल की वजह से इस्तीफ़ा नहीं दिया. इस बात में कितनी सच्चाई है कि उनके दफ्तर में जम्मू-कश्मीर के आतंकवादी आते हैं, नक्सली आते हैं. क्या आम आदमी पार्टी के दफ्तर में आपने उन्हें कभी देखा है?

हां आते हैं. कनॉट प्लेस स्थित ऑफिस में भी आते हैं, प्रो-टेररिस्ट आते हैं. कभी-कभी आतंकवादी भी आते हैं. नक्सली प्रशांत भूषण के जंगपुरा स्थित ऑफिस में भी आते और मीटिंग करते हैं. जो तड़ीपार हैं, भगोड़े हैं, जिन्हें पुलिस जम्मू, छत्तीसगढ़, उड़ीसा एवं असम में ढूंढ रही है, ऐसे लोग भी आते हैं. मैं यह बात पूरी ज़िम्मेदारी से कह रहा हूं.

कुछ लोगों के मन में धारणा है कि केजरीवाल व्यवस्था परिवर्तन की बात करते हैं. क्या उनके पास वाकई ऐसी कोई योजना है या फिर महज दिखावा है?

नहीं, ऐसी चर्चा तो हमारे यहां नहीं होती है. इसे लेकर कभी कोई मीटिंग नहीं हुई. हालांकि आरटीआई वगैरह की चर्चा हम लोग पहले करते थे. आरटीआई में हम लोग ग्राउंड वर्क करते थे कि कहां आरटीआई डाली जाए, लेकिन देश की इकोनॉमी और विदेश नीति पर कभी कोई चर्चा नहीं हुई.

आशुतोष और आशीष खेतान जैसे लोगों को टिकट देने के पीछे क्या वजह थी?

वहांं स़िर्फ चार आदमी हैं और वही सब कुछ हैं. पार्टी में प्रशांत भूषण की भी नहीं चलती. कुमार विश्‍वास को भी आजकल किनारे कर दिया गया है. अरविंद केजरीवाल, योगेंद्र यादव, मनीष सिसौदिया और संजय सिंह ही फरमान जारी करते हैं. इसके अलावा पार्टी में किसी की विशेष अहमियत नहीं है. हम लोगों ने छह महीने पहले यह चर्चा की थी कि पार्टी किन-किन जगहों से चुनाव लड़े. ज़्यादातर लोगों की राय यह थी कि एडीआर की रिपोर्ट में जहां टॉप 35 करप्ट और टॉप 35 क्रिमिनल हैं, उन सीटों पर पार्टी चुनाव लड़े, लेकिन अचानक यह फैसला हुआ कि पार्टी 350 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जो बढ़कर 450 सीटें हो गईं. कांग्रेस और भाजपा से ज़्यादा जगहों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार खड़े हैं.

आख़िर इस निर्णय के पीछे मुख्य वजह क्या थी?

केवल एक ही एजेंडा है कि देश में खिचड़ी सरकार बने. जबसे अरविंद मुख्यमंत्री बने हैं, तबसे योगेंद्र यादव परेशान हैं. उन्हें लगता है कि जब अरविंद मुख्यमंत्री बन सकता है, तो मैं क्यों नहीं. हरियाणा में अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं और वहां पार्टी ने बतौर मुख्यमंत्री योगेंद्र यादव के नाम का ऐलान कर दिया है. कांग्रेस की जो हालत दिल्ली में है, वही हालत हरियाणा में है.

केजरीवाल ने वाराणसी से चुनाव लड़ने का ़फैसला क्यों किया?

केवल मीडिया में बने रहने के लिए. उनका एक ही मक़सद है, सुर्खियों में बने रहना. लिहाज़ा, वह मीडिया में बने रहने के लिए कुछ भी कर सकते हैं.

वाराणसी में आम आदमी पार्टी के कितने कार्यकर्ता हैं?

हमारे जो फुलटाइम वर्कर हैं, वही दिल्ली से बनारस गए हैं. पार्टी ने जून-जुलाई में दिल्ली के हर विधानसभा क्षेत्र में दस-दस कार्यकर्ता नियुक्त किए थे, जिन्हें 25 हज़ार रुपये मिलते थे. उन सभी लोगों को कैश पेमेंट मिलता था. यह कैश नवीन जिंदल की ओर से आता है. वही फंड करते हैं. चेक पेमेंट सीताराम जिंदल करते हैं.

वाड्रा के बचाव में उतरे एक शख्स को पार्टी का टिकट मिला, आख़िर उसे टिकट देने की कहानी क्या है?

आपको याद होगा वाड्रा के नाम पर अरविंद केजरीवाल ने मीडिया में खूब नाम कमाया. लोगों को लगा कि अरविंद ईमानदार आदमी है, क्योंकि वह वाड्रा की आलोचना कर रहा है. खेमका का तबादला हो गया, उसके बाद युद्धवीर आया उसकी जगह. उसने आते ही रिपोर्ट बनाई कि वाड्रा की जमीन ठीक है. उसने री-स्टोर कर दिया, जो पहले से कैंसिल था और खेमका के ख़िलाफ़ उसने चार्जशीट तैयार कर दी. योगेंद्र यादव का गांधी परिवार से काफी पुराना संबंध है. वह पहले एनएसी में थे, सिब्बल की यूजीसी में भी थे और कम से कम चालीस अन्य कमेटियों में रहे पिछले दस वर्षों में. योगेंद्र यादव ने युद्धवीर से कहा, आप पहले उसे (वाड्रा) क्लीनचिट दीजिए और फिर नौकरी से अपना इस्तीफ़ा. इसके बदले हम आपको टिकट दे देंगे. वजह, कांग्रेस उसे टिकट नहीं दे सकती थी, इसलिए आम आदमी पार्टी से युद्धवीर को टिकट मिला.

कबीर और पीसीआरएफ संस्था पर आरोप लगते रहे हैं कि उन्हें फोर्ड फाउंडेशन की ओर से पैसे मिलते हैं, सच्चाई क्या है?

हमारी पार्टी के संविधान में लिखा हुआ है कि एक ही आदमी को चुनाव का टिकट मिलेगा और एक आदमी कोर कमेटी में रहेगा. इसलिए प्रशांत भूषण कोर कमेटी के सदस्य हैं, लेकिन शांति भूषण नहीं हैं. हालांकि पीछे से वह पूरा सपोर्ट करते हैं, लेकिन ऑन पेपर उनका नाम नहीं है. कविता रामदास मुखिया हैं फोर्ड फाउंडेशन की. उनके पिता एल रामदास, माता ललिता रामदास, बहन सागरी रामदास आम आदमी पार्टी की कोर कमेटी में शामिल हैं. क्या कोई आम आदमी नहीं बचा भारत में कि फोर्ड फाउंडेशन का पूरा कुनबा आपने पार्टी में शामिल कर लिया? जिस युद्धवीर ने वाड्रा को क्लीनचिट दी, वह हमारी लैंड इक्वीजिशन कमेटी में है. अब वह बताएगा कि जमीनें कैसे अधिग्रहीत की जाएंगी. जो योगेश दहिया सहारनपुर के किसानों का 300 करोड़ रुपये मुआवजा खा गया, वह हमारा एग्रीकल्चर रिफॉर्म बनाएगा. अब मैं फोर्ड की कहानी बताता हूं. यह कबीर की रिपोर्ट है, जिसकी जांच हुई है. अगर सबकी जांच हो, तो कई मामले सामने आएंगे. 12 नवंबर, 2007 को उसका रजिस्ट्रेशन हुआ और 2005 में 44 लाख रुपये मिल गए यानी दो साल पहले. 2006 में 32 लाख रुपये मिल गए कबीर के नाम पर यानी संगठन बना नहीं और पैसे मिलने शुरू हो गए. इस मेहरबानी का मतलब क्या है. यह है कबीर की असलियत. मुझे तकलीफ इस बात की है कि पार्टी में रहकर भी मैं आम आदमी पार्टी की असलियत देर से जान पाया. भारत की आम जनता को जब इसका पता चलेगा, तब तक काफी देर हो चुकी होगी. इस देश की हालत सोवियत रूस जैसी होने वाली है, उसी तरह पंद्रह टुकड़ों में बंट जाएगा यह देश, क्योंकि वे हर जगह जनमत संग्रह कराने की बात करते हैं. वे वोट की खातिर कुछ भी करने को तैयार हैं. केजरीवाल ने दिल्ली में झाड़ू यात्रा निकाली थी. एक दिन पहले वह ओखला में पहुंचती है, जहां बटला हाउस है. वहां लोगों से वह कहते हैं कि मारे गए लड़के निर्दोष थे, इसकी जांच होनी चाहिए. अगले दिन झाड़ू यात्रा द्वारका पहुंचती है और वह मोहन चंद शर्मा की पत्नी माया शर्मा से कहते हैं कि मुझे बहुत दु:ख है कि आपके पति आतंकवादियों को मारते हुए शहीद हो गए. इस तरह का दोहरा चरित्र आपने कहीं देखा है? दरअसल, अरविंद केजरीवाल की असलियत यही है. योगेंद्र यादव गुड़गांव के अहीरवाल क्षेत्र में कहते हैं कि मैं यादव हूं, कृष्ण का वंशज हूं, जबकि मेवात इलाके में अपना हुलिया बदल कर वह मुसलमानों से कहते हैं कि मेरे बचपन का नाम तो सलीम है. अब वहां उन्हें सब लोग सलीम भाई, सलीम भाई बुलाते हैं. इतना दोहरा चरित्र तो किसी पार्टी और नेताओं का नहीं रहा होगा. जब कमाल फारूकी ने बोला कि यासीन भटकल निर्दोष है, तो मुलायम सिंह को भी शर्म आई और उन्होंने उसे महासचिव पद से हटाते हुए पार्टी से बाहर कर दिया. उस आदमी को केजरीवाल ने बरेली से टिकट पक्का कर दिया. रजा मुजफ्फर भट्ट, जो कहता है कि अफजल गुरु निर्दोष, भटकल निर्दोष और कसाब निर्दोष, उसे श्रीनगर से टिकट मिल गया. सोनी सोरी, जो एस्सार और जिंदल का पैसा पहुंचाती थी नक्सलियों तक, उसे बस्तर से आम आदमी पार्टी का टिकट दे दिया गया.

आम आदमी पार्टी पर आरोप लगते रहे हैं कि वह फोर्ड फाउंडेशन के इशारे पर काम करती है. क्या कोई विदेशी नागरिक आपके यहां काम करता था, जिसका बायोडाटा आपको संदिग्ध लगा हो?

हां, एक लड़की मनीष सिसौदिया के यहां काम करती थी कबीर संस्था में. मैं तो पीसीआरएफ में काम करता था.

आम आदमी पार्टी के नेताओं ने आंदोलन से पहले कितने विदेशी दौरे किए?

फॉरेन टूर उनका काफी फ्रीक्वेंट रहा है. अगर अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसौदिया और योगेंद्र यादव का वर्ष 2004 से लेकर अब तक का विदेश यात्रा वाला डाटा सामने आ जाए, तो बहुत बड़ा खुलासा हो जाएगा. भारत में किसी पार्टी को अरब देशों से पैसा नहीं आता, लेकिन मैं जानता हूं कि विधानसभा चुनाव के दौरान अरब देशों से पैसा आया और आम आदमी पार्टी ने उसे पानी की तरह बहाया. इसी तरह फोर्ड फाउंडेशन का पैसा आता है. अरविंद केजरीवाल को बताना चाहिए कि वह अरब देश क्या करने जाते हैं, जर्मनी और अमेरिका क्यों जाते हैं? मैंने अरविंद केजरीवाल से यही पूछा था कि आप दस जनपथ में काम करने वाले आशीष तलवार के साथ जर्मनी क्या करने गए थे, लेकिन उन्होंने आज तक इसका जवाब नहीं दिया.

अरविंद केजरीवाल किस मकसद से जर्मनी और अमेरिका जाते थे?

एक बड़ी डील की कहानी उससे जुड़ी हुई है. दरअसल, एक पेपर उनके हाथ लग गया था, सोनिया विहार वाटर ट्रीटमेंट के 400 करोड़ रुपये के घोटाले का. उसी पेपर के जरिये वह एनएसी में इंट्री करना चाहते थे. अगर उनकी नीयत सही होती, तो वह उस पेपर को पुलिस को देते, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. बाद में जब सोनिया गांधी को लगा कि यह तो ख़तरनाक आदमी है, तो उन्होंने आशीष तलवार के साथ केजरीवाल को विदेश भेज दिया. उसके बाद योगेंद्र यादव को एनएसी में ले लिया गया.

आम आदमी पार्टी की नेता संतोष कोली की मौत को भी कई लोग संदिग्ध मान रहे हैं. आपका क्या मानना है?

निश्‍चित रूप से संतोष कोली की मौत को लेकर एक रहस्य है. केजरीवाल ने संतोष कोली को शहीद का दर्जा देकर उसके नाम पर दिल्ली चुनाव में वोट मांगे. उन्होंने कहा था कि हम इसकी जांच कराएंगे, लेकिन 49 दिनों तक सरकार में रहने के बावजूद उन्होंने संतोष कोली की मौत की उच्चस्तरीय जांच नहीं कराई. इसका मतलब कहीं न कहीं दाल में कुछ काला ज़रूर है.

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चौथी दुनिया के संपादक समन्वय डॉ. मनीष कुमार और आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे अश्‍विनी उपाध्याय के बीच हुई पूरी बातचीत देखने के लिए इस लिंक को क्लिक करें:- http://www.chauthiduniya.com/2014/04/aam-aadmi-party-exposed-2.html

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