बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

23 सालो बाद भी अधूरा न्याय, नाकाम सिस्टम, उठते सवाल - राजीव गांधी हत्या कांड



2014-02-18 05:44 PM को रवि नाईक उवाच पर प्रकाशित

कैसे 23  सालो बाद भी देश के पुर्व  प्रधान मंत्री के हत्यारे  सिस्टम कि नाकामी के  चलते क़ानूनी बारीकियो से बच निकले                    

क्या देश कि सबसे ताकतवर महिला सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी भी हमारी कानून व्यवस्था से हार चुके है ?

आखिर कैसे 11 वर्षो तक दया याचिका पर फैसला  नहीं हो सका ?

इस देरी के क्या कारण थे ? 

23 साल बाद भी राजीव जी के हत्यारो को फांसी देने में नाकाम केसे रहे ?

यह  ऐसे चुभते सवाल है जो देश के  आम नागरिक के मन में इस समय उठ रहे है और उसको इन सवालो के जवाब नहीं मिल रहे है।
लेकिन जब राजीव गांधी हत्याकांड के पुरे मामले को सीलसिलेवार देखा जाये तो समझ में आता है कि हमारा  सामाजिक न्याय का ढाचा कितना सड  चूका है  1991  में राजीव जी कि हत्या के बाद तमाम जाँच एजेंसियो ने आरोपियो को  धर दबोचा और 1998 में आरोपी संथन , मुरूगन और पेरारीपलन को फांसी कि सजा सुनायी गयी, वर्ष 2000  में आरोपियो द्वारा राष्ट्रपति के समक्ष  दया याचिका  लगाई गयी इसके  11 सालो बाद जाकर  राष्ट्रपति ने दया  याचिका ख़ारिज कि, जबकि हकीकत यह हे कि भारत के एटर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में बताया  कि 4  सालो तक  एनडीए  कि सरकार ने इसकी फ़ाइल  राष्ट्रपति  को भेजी ही नहीं  ,यहाँ सवाल उठता है कि इन 4 सालो तक एनडीए सरकार   ने आखिर  क्यों  फ़ाइल अपने पास ही रखी  उसे राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा। क्या ये राजनितिक कारणो से था या हमारे सिस्टम कि नाकामी ?
2005 में दया याचिका कि फ़ाइल  भारत के राष्ट्रपति को फिर  सौपी  गयी उसके बाद भी  6  वर्षो तक  इस पर राष्ट्रपति द्वारा कोई फैसला नहीं लिया गया आखिर क्यों ? जबकि इस दौरान  केंद्र में यूपीए  कि सरकार थी |

 2011  में गृह मंत्रालय ने इस फ़ाइल को वापस बुलाकर नयी सिफारिशो  के साथ  राष्ट्रपति महोदय को भेजी तब जाकर 2011  में उनकी दया याचिका रास्ट्रपति ने ख़ारिज कि, तब तक  आरोपियो ने  दया याचिका  पर  सुनवाई में देरी को लेकर मद्रास हाईकोर्ट में एक याचिका लगा दी जो बाद में सुप्रीम कोर्ट आय़ी और मामला वहां  अटक गया। इन्ही क़ानूनी पेचीदगियों और फ़ैल हो चुके सिस्टम का लाभ उठाकर आरोपियो ने   सविधान कि धारा 21 जीने के अधिकार   को आधार बनाकर  सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सराकर से  इस पुरे मामले में देरी होने का कारण  पूछा तो  बड़ी बेशर्मी के साथ कोर्ट में कहा गया कि केंद्र सरकार के पास इस मामले में देरी  का कोई स्पष्टीकरण  नहीं है,  ये जवाब  अपने  आप में हमारी न्याय व्यवस्था  कि विफलता को सिद्ध करता है, साथ ही यह साबित होता है कि देश के  पूर्व प्रधानमंत्री कि  हत्या   जैसे गम्भीर मामले में  हमारा सिस्टम  किस हद तक फ़ैल हो चूका है तो आम आदमी को  कैसे न्याय मिलेंगा। 

आरोपियो के वकील 21  जनवरी को  सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश  को आधार  बनाकर फांसी कि सजा को उम्र कैद में बदलने कि अपील  कि जिसमे उन्होंने 15  लोगो कि दया याचिका में देरी के कारण   फांसी कि सजा  उम्र कैद में तब्दील कि थी, इसी का लाभ तीनो आरपीयो को मिला और उनकी  फाँसी कि सजा को कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया। यहाँ सवाल उठता है कि इस पुरे प्रकरण में घोर लापरवाही  बरती जा रही थी तब जिम्मेदार लोग क्यों नहीं जागे।  इतिहास  में यहा मामला सिस्टम कि नाकामी के कारण एक प्रधान मंत्री कि हत्या के बाद भी अधूरे न्याय के लिए जाना जायेगा।
पुष्पेंद्र आल्बे

लेखक/रचनाकार: पुष्पेंद्र आल्बे

मोबाइल: 098269 10022 पढ़ाई में अव्वल, खूब कीर्तिमान बनाएं, तोड़े, रसायन शास्त्र से स्नातकोत्तर भी किया, लेकिन युवावस्था में कदम रखने के साथ ही लग गया कि ग्यारह से पांच की सरकारी नौकरी करना अपने बस की बात नहीं। श्रीलंकाई क्रिकेट टीम के बचपन से ही प्रषंसक, सो क्रिकेट के ऊपर लिखना हमेषा ही दिल को भाया। क्रिकेट के साथ ही बॉलीवुड के क्लासिक दिग्गजों-संजीव कुमार, गुलजार साहब जैसो की फिल्में देख-देखकर इसकी भी समझ आ गई। दैनिक जागरण से टेªनी रिपोर्टर के तौर पर काम शुरू किया, फिर गृहनगर छोड़कर मप्र की व्यावसायिक राजधानी इन्दौर में किस्मत आजमाने आ गए। प्रिंट मीडिया से अलग हटकर कुछ करने की चाह हुई, तो खबर इंडिया की नींव रखी। कुछ ही समय में खबर इंडिया इंटरनेट बिरादरी की कुछेक चुनिंदा पोर्टलों में शामिल हो गई है....लेकिन यह तो बस शुरूआत भर है....अभी आगे बहूत दूर जाना है....

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