बुधवार, 14 मई 2014

1857 के बलिदानियों की याद में सोशलिस्‍ट पार्टी ने नवसाम्राज्‍यवाद विरोधी दिवस मनाया


था। देश को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के मकसद से वे मेरठ से 10 मई को चलकर 11 मई को दिल्ली पहुंचे और बादशाह बहादुरशाह जफर से आजादी की जंग का नेतृत्व करने का निवेदन किया। बादशाह ने सैनिकों और उनके साथ जुटे नागरिकों की पेश्‍कश्‍ का मान रखा और 82 साल की उम्र में आजादी की पहली जंग का नेतृत्व स्वीकार किया। भारत की आजादी के संघर्ष और साझी हिंदू-मुस्लिम विरासत का वह महान दिन था। कई कारणों, जिनमें कुछ भारतीयों द्वारा की गई गद्दारी भी शामिल है, से सैनिक वह जंग जीत नहीं पाए। दिल्ली में करीब 6 महीने और बाकी देश में साल भर से ऊपर चले पहले स्वतंत्रता संग्राम में लाखों की संख्या में सैनिक-असैनिक भारतीय वीरगति को प्राप्त हुए। अंग्रेजों ने बादशाह पर फौजी आदालत में मुकदमा चलाया और अक्तूबर 1858 में उन्हें कैद में दिल्ली से रंगून भेज दिया। वहां 7 नवंबर 1862 को 87 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हुई और ‘बदनसीब जफर’ को वहीं गुमनामी के अंधेरे में दफना दिया गया।
सोशलिस्ट पार्टी पहली जंगे आजादी के महान नेता, उस जमाने के धर्मनिरपेक्ष शासक और अपनी तरह के बेहतरीन शायर बहादुरशाह जफर के अवशेष वापस लाने की मांग पिछले साल भारत के राष्‍ट्रपति से कर चुकी है। पार्टी ने इस बाबत भारत के राष्ट्रपति महोदय को ज्ञापन दिया था अभी दो महीने पहले सोशलिस्‍ट पार्टी के वरिष्‍ठ सदस्‍य जस्टिस राजेंद्र सच्‍चर ने राष्‍टपति से मुलाकात करके प्रार्थना की कि वे बादशाह के अवशेष वापस भारत लाने के लिए सरकार से कहें।
सोशलिस्ट पार्टी ने क्रांतिकारियों के दिल्‍ली पहुंचने की याद में पिछले साल 11 मई को दिल्ली में मंडी हाउस से जंतर-मंतर तक ‘कूच-ए-आजादी’ का आयोजन किया था। इस बार 11 मई को पार्टी ने ‘नवसाम्राज्‍यवाद विरोधी दिवस’ के रूप में मनाया। इस मौके पर पार्टी के दिल्‍ली कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम में वरिष्‍ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी मुख्‍य वक्‍ता थे। उन्‍होंने कहा कि 1857 के संग्राम की प्रेरणा से नवसाम्राज्‍यवादी हमले का मुकाबला किया जा सकता है। केवल सोशलिस्‍ट पार्टी ही हर साल 1857 के शहीदों को याद करती है। इसका कारण है कि वह सोशलिस्‍ट पार्टी नवउदारवाद के रूप में देश पर काबिज नवसाम्राज्‍यवाद का जड्मूल से विरोध करने वाली देश में अकेली पार्टी है। उन्‍होंने कहा कि सोशलिस्‍ट पार्टी की यह मांग बिल्‍कुल सही है कि बहादुरशाह के अवशेष रंगून से भारत लाए जाएं और उनकी मजार के लिए तयशुदा जगह पर रखे जाएंा 1857 की चेतना को बनाए रखने को लिए यह निहायत जरूरी है।

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