धर्मेन्द्र: एक जीवंत प्रेरणा |
कभी जब लिखने बैठता हूँ तो लगता है ये सब कुछ खाली है, कहीं कुछ बदलना तो नहीं है लेकिन अगले पल ख्याल आता है कोशिश तो कर ले. फिर कोशिश शुरू होती है कहीं अंतहीन एक कोशिश. कल दो लोगों से मिला एक तो मेरे काफी पुराने मित्र हैं जो कल काफी दिनों के बाद मिले और दूसरे कल एक केन्द्रीय विद्यालय के सेवानिवृत प्रधानाचार्य भी मिले जिनसे हुआ वार्तालाप मैंने फेसबुक पर भी पोस्ट किया जरा बानगी देखिएगा.
(क्या आप को भी ऐसे शिक्षक चाहिए?कल एक केन्द्रीय विद्यालय से रिटायर्ड प्रधानाचार्य मिले, उनकी एक अजीब अनुनय थी पाण्डेय जी मैंने आज तक कोई भ्रष्टाचार नहीं किया बड़े ईमानदारी से नौकरी की अब आपसे एक विनती है कहीं अपने सम्बन्धों का प्रयोग कर मेरे बेटे को जिसने केन्द्रीय विद्यालय पी जी टी (इतिहास) का पेपर दिया है पास करवा दो... जितना भी लेना देना पड़े कोई बात नहीं.
एस जी नाथन: खूबसूरत जिन्दगी |
ये व्यक्ति काफी समर्थ हैं और बेटे के पास आरक्षण की ढाल भी है... फिर भी नौकरियां खरीद रहें हैं क्या नौकरियां यूं बिकती हैं? क्या कोई इन के बेटे की मदद करेगा खैर में कल केन्द्रीय विद्यालय संगठन जाकर कोशिश करता हूँ और फिर बताता हूँ की ये संभव है या नहीं...) Post by Ashutosh Pandey. (पूरा पोस्ट देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें). ये तो हाल है हमारे देश को संभालने वाले गुरूओं का. खैर नौकरियां खरीदने के साथ डिग्रियां खरीदने वालों की भी भरमार है. जो ये सब खरीद ले सारा जहां उसका दीवाना.
दूसरे मित्र का उल्लेख भी उनके नाम के साथ करूंगा. एस जी नाथन एक आम लेकिन ख़ास शख्शियत का आदमी जिसके लिए जिन्दगी में मूल्यों का विशेष मूल्य है. जब भी जो किया उस ईश की कृपा मान कर किया और जीवन के हर पल को खूबसूरत बना दिया. इसके साथ एक बड़ा नाम जिसका उल्लेख में कर रहा हूँ एक योगी का है जिसे कर्मयोगी कहूं या फिर एक इंसान (क्योंकि आज करोड़ों की भीड़ में सब मिलते हैं सिवा इंसान के) धर्मेन्द्र कुमार सिंह इस चेहरे पर जो शांत और निश्चल मुस्कान खिली होती है वो जो कहती है वह वास्तव में सम्मोहित करने वाली है. यूपी के कानपुर में साह्वेस के नाम से एक प्राकृतिक आन्दोलन जिसमें अनन्य भक्ति के साथ कई लोगों को जीवन प्रेरणा देकर उन्हें इंसान बना देना ये एक छोटा काम नहीं है. इन सब लोगों से घिरा क्या महसूस करता हूँ क्या कहूं? जब सबसे पहले वाले प्रधानाचार्य मिलते हैं तो लगता है धन ही जीवन है और जब नाथन या धर्मेन्द्र से मुखातिब होता हूँ तो लगता है एक जीवन सुधार दूंगा तो तमाम सम्पत्ति मिल जायेगी. सच कहूं तो उन प्रधानाचार्य के चेहरे पर चिंता चिता बन सुलग रही थी लेकिन ये दो लोग खुल कर मुस्कराते हैं इनके हाथ खुले होते हैं और ऊपर वाला भी इन पर नियामत लुटाता है. बस कोशिश करें की हम भी इन दो जैसे हाथों को फैला सारे जहां को समा लें...
मेरे दोस्त धर्मेन्द्र और नाथन को... शब्द खत्म हो जाते हैं सिर्फ दुआएं निकलती हैं.
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