अब्दुल रशीद (आवाज़-ए-हिन्द.इन)
देश में अवैध खनन के जरिए प्राकृतिक स्रोतों की खुलेआम लूट जारी है। और भाजपा शासित मध्य प्रदेश में तो हालात और भी खराब है कारण जहां एक ओर अवैध खनन में सुरक्षा की अनदेखी से गरीब मजदूरों की जान जा रही हैं वहीं अवैध खनन रोकने वाले बहादुर सिपाही को माफीयाओं द्वारा मौत के घाट उतारा जा रहा है। और शासन मूक दर्शक बनी देख रही है। कारण जो भी हो लेकिन सरकार की अनदेखी का नतीज़ा है कि इस लूट में गरीब मजदूरों कि जिंदगी की बलि चढ रही है और यह खूनी खेल थमने का नाम नहीं ले रहा है।
बीते रविवार की सुबह सिंगरौली जिले में अवैध कोल खनन करते समय 6लोगों की मौत हो गई और 2लोग घायल हो गए। प्राप्त जानकारी के अनुसार घटना बरगवां थाने के अन्तर्गत चीनगी टोला के पास स्थित अवैध खदान में सुबह 6बजे के लगभग पहाड़ दरकने से मजदूर दब गए जिसमें 6मजदूर की मौत हो गई और 2घायल हो गए। बकौल कमलेश कुशवाहा जो घटना में घायल हुआ था,के अनुसार वे 20लोगों के साथ गुफानुमा अवैध खदान के अन्दर जा कर कोयला खनन कर रहा था तभी पहाड़ के भसकने से मजदूर दब गए। मरने वाले सभी स्थानीय लोग थे। इस घटना के बाद डीएम साहब ने कहा मृतक बेहद गरीब हैं इसलिए इनको अंतिम संस्कार के लिए 5000-रु की राशि दिलाई गई। वहीँ एसपी साहब ने कोई कार्रवाई इसलिए न करने की बात की क्योंकि वे बेहद गरीब हैं। जनाब मरने वाले बेहद गरीब ही नहीं अल्पसंख्यक समुदाय के लोग और सिंगरौली के मूल निवासी थे जिनके पेट पर लात रखकर राजनीति किया जाता है और वादे किये जाते है कोई कहता है हम आरक्षण दे रहें हैं और कोई कहता है हम उन्हें मुख्य धारा में लाना चाहते हैं। राजनीति का खेल तो देखिए,मरने के बाद अंतिम संस्कार के नाम पर चन्द सिक्के दे कर रस्म अदायगी कर दी गई। यानी गरीब की जान कि कीमत महज 5000=रु। तो क्या बस इतना सी ही मानवता बची है अब। किसी ने इस बात को जानने और समझने की कोशिश क्यों नहीं किया कि आखिर इन लोगों ने पेट पालने के लिए मौत का रास्ता ही क्यों चुना। यह हालत उस जिले के मूल निवासी का है,जिस जिले के बनने के दिन प्रदेश के मुखिया ने कहा था की सिंगरौली को स्वीट्जरलैंड बना देंगे तो क्या स्वीट्जरलैंड महज चंद लोगों के लिए बनेगा। यह इस जिले के मूल निवासी के लिए त्रासदी नहीं तो क्या है कि जिस जिले से उत्पादन होने वाली बिजली महानगरों को तो रौशन करती है लेकिन इनके घर पे रौशनी तो दूर रोजी रोटी भी मयस्सर नहीं। गर्द और प्रदूषण से होने वाली बिमारी तो बोनस के तौर पर मिलती है। अब करे तो क्या करे जब तक सांस है तब तक आस है अफसोस अब तो बेवफा सांस भी ठीक से साथ नहीं देती।
मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में प्राकृतिक संपदा प्रचुर मात्रा में वरदान स्वरुप मिला जो यहां के मूल निवासी के लिए अभिषाप बन गया है। परियोजना लगाने के नाम पर जमीन तो गया ही अब प्रदूषित वातावरण में रहकर जिंदगी जीने की जद्दोजहद करनी पड़ रही है इस जिले का अकूत प्राकृतिक संपदा जहां उध्योगपतियों को अपनी ओर आकर्षित करता है वहीँ अवैध खनन माफियाओं को भी अपनी ओर आकर्षित करता है,रही बात कायदे कानून की तो जिस प्रदेश में कानून के मुहाफिज ही महफूज नहीं वहां कानून का डर भला माफियाओं को क्यों हो। इस जिले का दोहन केवल खनन माफीया ही नहीं करते बल्कि यहां हर तरह का अवैध कारोबार बेखौफ फल फूल रहा है जैसे कबाड़,कोयला,नशे का कारोबार इत्यादि। सिंगरौली में हो रहे विकास का डंका तो दुनियां में खूब बजाया जाता है लेकिन ऐसे विकास का क्या मतलब जब यहां के मूल निवासी कि स्थिति में कोई बदलाव न ला सकी। हालत तो ऐसी है के यहां के स्थानीय लोग रोजी रोटी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं और शायद खनन माफिया ऐसे ही भूखे पेट लोगों का इस्तेमाल कर अपना काम साधते हैं। ऐसे में सबसे अहम सवाल यह है कि क्या विस्थापन का दंश और बेगारी सिंगरौली के मूल निवासियों कि नियति बन गई है या यह सब किसी राजनीति के तहत सोचीं समझी साजिश ?
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