वैसे तो आज तक भारत में जितने भी प्रधानमंत्री हुए, सभी ने भारत-पाकिस्तान संबंध सुधारने की दिशा में काफी प्रयास किए, लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात जैसे रहे. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत-पाकिस्तान संबंध में सुधार की उम्मीद की जा रही है. इसके तहत मशहूर हस्तियों ने अपील की है कि दोनों देशों के फिल्मकार ऐसी फिल्में न बनाएं, जिससे लोगों की भावनाएं आहत हों. भारत और पाकिस्तान के बनते-बिगड़ते संबंधों पर दोनों ही देशों की फिल्म इंडस्ट्री में काफी फिल्में बन चुकी हैं. दोनों देशों में एक-दूसरे के ख़िलाफ़ नफरत फैलाने वाली और हिंसात्मक फिल्में बनती रही हैं, पर नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व काल में दोनों देशों के आपसी रिश्ते सुधरने की उम्मीद की जा रही है. नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने आए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ से मुलाक़ात के दौरान धर्मेंद्र, शत्रुघ्न सिन्हा एवं हेमा मालिनी जैसे कलाकारों ने कहा कि देशभक्ति से परिपूर्ण फ़िल्में बनाने की आड़ में ऐसी फ़िल्में नहीं बननी चाहिए, जो किसी देश को कमज़ोर या आपत्तिजनक रूप में दर्शकों के सामने पेश करें. इन कलाकारों ने यह भी कहा कि दोनों ही देशों में शूटिंग के लिए माकूल माहौल होना ज़रूरी है, ताकि भारत के कलाकार पाकिस्तान और वहां के कलाकार भारत आकर आसानी से शूटिंग कर सकें. भारत-पाक के आपसी रिश्तों पर फिल्मों का निर्माण हमेशा से फिल्मकारों का पसंदीदा विषय रहा है. यहां हम आपको बता रहे हैं कुछ ऐसी फिल्मों के बारे में, जो भारत-पाक के रिश्तों पर बनी हैं. . गदर: एक प्रेम कथा (2001) इस फिल्म में विभाजन के समय हुए दंगों पर रोशनी डाली गई है. हिंदू और मुसलमान, दोनों ही कौमें एक-दूसरे के खून की प्यासी हो जाती हैं. इसी में एक प्रेम कहानी जन्म लेती है. सकीना (अमीषा पटेल) का परिवार पाकिस्तान जा रहा है, लेकिन वह उन्मादित सिखों की भीड़ में फंस जाती है. तभी एक सिख ट्रक ड्राइवर तारा सिंह (सन्नी देओल) अपने प्राणों पर खेल कर सकीना को बचाता है. तारा सकीना से प्यार करने लगता है. उसका प्यार देखकर सकीना भी उसे चाहने लगती है. दोनों शादी कर लेते हैं. उनकी ज़िंदगी में नया मोड़ तब आता है, जब सकीना को अपने बिछड़े पिता अशरफ अली (अमरीश पुरी) के विषय में जानकारी मिलती है, जो अब लाहौर के मेयर हैं. अशरफ अली को हिंदुस्तान से सख्त नफ़रत है और बंटवारे में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई थी. वह सकीना को लाहौर बुलाने की व्यवस्था करते हैं. लाहौर पहुंचने पर सकीना को उसके पति तारा सिंह एवं बेटे से अलग करने की साजिशें शुरू हो जाती हैं. तारा सिंह ग़ैर क़ानूनी तरीके से लाहौर पहुंच जाता है, अपनी पत्नी को साथ लाने के लिए. वहां तारा सिंह पाकिस्तानी पुलिस और फौज से अपने परिवार को बचाने की लड़ाई लड़ता है. प हिंदुस्तान की कसम (1973) चेतन आनंद द्वारा निर्देशित यह फिल्म भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 में हुई जंग को लेकर बनी थी. इस फिल्म में युद्ध की बर्बरता दिखाई गई थी. 1973 में रिलीज हुई इस फिल्म में राज कुमार ने मुख्य भूमिका निभाई थी. इसी नाम से 1999 में अभिनेता अजय देवगन के पिता वीरू देवगन ने भी भारत-पाकिस्तान के रिश्तों पर फिल्म बनाई. फिल्म में अजय देवगन दोहरी भूमिका में थे. गरम हवा (1973) यह फिल्म प्रसिद्ध लेखिका इस्मत चुगताई की एक अप्रकाशित कहानी पर आधारित है. इस फिल्म में विभाजन के बाद देश में पैदा हुए हालात पर रोशनी डाली गई. आगरा में रहने वाले जूता व्यापारी सलीम मिर्ज़ा (बलराज साहनी) विभाजन के बाद पाकिस्तान नहीं जाना चाहते. सलीम मिर्ज़ा की बेटी अमीना अपने चचेरे भाई कासिम (जमाल हाशिम) से प्यार करती है. दोनों शादी करना चाहते हैं. सलीम मिर्ज़ा के रिश्तेदार एक-एक करके पाकिस्तान रवाना हो रहे हैं. कासिम भी पिता के साथ पाकिस्तान चला जाता है, इस वादे के साथ कि वह वापस आकर अमीना से निकाह करेगा. सलीम मिर्ज़ा को उम्मीद है कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा. सलीम मिर्ज़ा को अब व्यवसाय में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, जिसकी वजह उनका मुस्लिम होना है. कासिम निकाह के लिए वापस तो आता है, लेकिन राजनीतिक कारणों से उसे निकाह के पहले ही गिरफ्तार करके वापस पाकिस्तान भेज दिया जाता है. दु:खी अमीना शमशाद (जलाल आगा) में प्यार ढूंढती है. व्यवसाय में असफलता की वजह से सलीम मिर्ज़ा का बड़ा बेटा भी पाकिस्तान जाने का ़फैसला करता है. सलीम मिर्ज़ा अपनी बेटी, पत्नी (शौकत आज़मी) और छोटे बेटे सिकंदर (फारुख शेख) के साथ भारत में रह जाते हैं. शमशाद अमीना को बुलाने का वादा करके पाकिस्तान चला जाता है. एक तरफ़ पाकिस्तान में अच्छा भविष्य मिल सकने की उम्मीद और दूसरी तरफ़ भारत में अपने साथ हो रहे भेदभाव, घर से बेघर हो जाने और बेटी का गम. नतीजा, सलीम मिर्ज़ा की हिम्मत टूट जाती है और इन्हीं परिस्थितियों में उन्हें अपना आख़िरी फैसला लेना पड़ता है. लक्ष्य (2004) फरहान अख्तर द्वारा निर्देशित इस फिल्म के मुख्य कलाकार थे रितिक रोशन, प्रीति जिंटा, अमिताभ बच्चन, ओम पुरी और बोमन ईरानी. रितिक रोशन लेफ्टिनेंट करण शेरगिल (बाद में कार्यवाहक कप्तान) की भूमिका में हैं, जो अपनी टीम का नेतृत्व (प्रारंभ में 12 सदस्य और बाद में 6) करके आतंकवादियों को परास्त करते हैं. भारत-पाकिस्तान के आपसी रिश्ते बयान करती यह फिल्म भी करगिल युद्ध पर आधारित थी. एलओसी करगिल (2003) इस फिल्म को जेपी दत्ता ने निर्मित-निर्देशित किया था. यह फिल्म 1999 के भारत-पाक करगिल युद्ध पर आधारित थी. यह मल्टी स्टारर फिल्म थी. पाकिस्तानी सेना को मात देने के लिए तीनों सेनाओं ने मोर्चा संभाला. भारत की जीत हुई, लेकिन दोनों ओर के काफी जवान मारे गए. . वार छोड़ ना यार (2013) वॉर छोड़ ना यार युद्ध की अवधारणा पर बनी एक व्यंग्यात्मक फिल्म है. भारत-पाकिस्तान सीमा पर 24 घंटे की कहानी पर आधारित यह फिल्म गंभीर विषय को व्यंग्य के रूप में प्रस्तुत करती है. फिल्म में दिखाया गया है कि दोनों देशों की सीमा पर जवानों के बीच काफी दोस्ताना संबंध हैं, लेकिन सरकार के आदेश देने पर, न चाहते हुए भी मजबूरन दोनों को एक-दूसरे पर गोली चलानी पड़ती है. फिल्म की कहानी, पटकथा लिखने के साथ-साथ निर्देशन भी फराज हैदर ने किया है. एओपीएल एंटरटेनमेंट द्वारा निर्मित इस फिल्म में संजय मिश्रा, मुकुल देव, मनोज पाहवा एवं दिलीप ताहिल ने प्रमुख भूमिकाएं निभाई हैं. वीर-जारा (2004) भारत-पाकिस्तान का रिश्ता लव एंड हेट का है. वीर प्रताप सिंह भारतीय वायु सेना का पायलट है और ज़ारा हयात ख़ान एक पाकिस्तानी लड़की. जारा किसी काम से अकेले हिंदुस्तान आती है. यहां उसकी जान वीर बचाता है. वीर पहली नज़र में ही ज़ारा से प्यार करने लगता है. वीर ज़ारा से उसकी ज़िंदगी का एक दिन मांगता है और उसे अपना गांव दिखाने ले जाता है. वीर के घरवालों को भी ज़ारा पसंद आ जाती है. ज़ारा की शादी कहीं और तय हो चुकी है. वीर ज़ारा के लिए लाहौर जाता है, लेकिन वहां उसे जासूसी के आरोप में जेल हो जाती है. क़ानूनी पचड़े और दोनों देशों के . क्या दिल्ली क्या लाहौर (2014) आज़ादी के लगभग साढ़े छह दशक गुजर जाने के बाद भी इस विषय पर फिल्में बनती रही हैं. ऐसा नहीं है कि इस विषय पर फिल्म बनाकर फिल्मकार व्यवसायिक लाभ चाहते हैं, बल्कि भारत और पाकिस्तान को लेकर सबकी अपनी- अपनी समझ है, जिसे वे पर्दे पर उतारना चाहते हैं. जाने-माने अभिनेता विजय राज ने भी भारत-पाक रिश्तों पर आधारित क्या दिल्ली क्या लाहौर नामक एक फिल्म निर्देशित की है. कम बजट और कम कलाकारों वाली इस फिल्म की कहानी बंटवारे के क़रीब एक साल बाद के हालात पर आधारित है. यह सरहद पर अपने-अपने देश के लिए लड़ते दो ऐसे सिपाहियों की कहानी है, जो बदले हालात में बंदूक की भाषा यानी गोलियां चलाना भूलकर प्यार की भाषा सीख जाते हैं. यह एक भावना प्रधान फिल्म है. इसमें भारत-पाकिस्तान के आपसी रिश्ते समझने की कोशिश की गई है, जिसे राजनेता नहीं समझ पाते. क्या दिल्ली क्या लाहौर में स़िर्फ दो किरदार हैं, भारतीय सेना का खानसामा मनु ऋषि और पाकिस्तानी फौज का सिपाही विजय राज. ट्रेन टू पाकिस्तान (1998) यह फिल्म प्रख्यात लेखक-पत्रकार खुशवंत सिंह की किताब ट्रेन टू पाकिस्तान पर आधारित है. इस फिल्म में पंजाब के एक गांव मनु माजरा का नक्शा खींचा गया है. यह गांव भारत-पाक सीमा के क़रीब स्थित है. यहां सदियों से मुसलमान और सिख मिल-जुल कर जीवन व्यतीत कर रहे हैं. लेकिन, देश विभाजन के साथ ही स्थितियां बदलती हैं और लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं. दोनों समुदायों की नफरत की इस जंग में एक प्रेम कहानी भी है.
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