शुक्रवार, 20 जून 2014

राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियाँ


शनिवार को भारतीय नौसेना के सबसे बड़े विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्‍य से नरेंद्र मोदी ने क्या संदेश दिया?उनकी सरकार बने अभी तीन सप्ताह हुए हैं और उसने एक से ज्यादा बार इस बात की ओर इशारा किया है कि हमारा ध्यान राष्ट्रीय सुरक्षा की ओर है। क्या यह सिर्फ प्रचारात्मक है या इसके पीछे छिपी कोई रणनीति है? विक्रमादित्य का मुआयना करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नौसेना के अधिकारियों और नाविकों को संबोधन में कहा, 'न हम आँख दिखाएंगे और न आँख झुकाएंगे। हम आँख से आँख मिलाकर बात करेंगे।' मोदी ने एक मजबूत नौसेना की जरूरत को रेखांकित करते हुए छत्रपति शिवाजी का उल्लेख किया। शिवाजी जानते थे कि नागरिक व्यापार के लिए ताकतवर नौसेना भी जरूरी होती है।


आने वाले समय में समुद्री व्यापार-मार्गों की सुरक्षा का सवाल महत्वपूर्ण होगा। हिंद सहासागर से होकर जाने वाला समुद्री यातायात लगातार बढ़ रहा है। खासतौर से चीन और जापान की ओर जाने वाले व्यापारिक जहाजों की तादाद बढ़ती जा रही है। इसके अलावा एसियान देशों का महत्व भी बढ़ रहा है। कुछ लोगों को लग सकता है कि नरेंद्र मोदी का देश की रक्षा-प्रणाली पर जोर देना उनके राष्ट्रवादी तेवर से मेल खाता है। पर सच यह है कि भारत के बढ़ते आर्थिक महत्व के साथ उसकी रक्षा जरूरतें भी बढ़ रही हैं। मोदी ने इस बात को विक्रमादित्य के मार्फत ऊँचे स्वरों में कहा है।

अपने शपथ-समारोह को लोकतंत्र के उत्सव के रूप में मनाकर नरेंद्र मोदी ने दक्षिण एशिया में शांति और विकास का संदेश दिया था। दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन अनेक कारणों से अपने उद्देश्यों में पिछड़ गया है और सम्भवतः यह अकेला सहयोग संगठन है, जो राजनीतिक कारणों से अपने लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पा रहा है। नरेंद्र मोदी इस गतिरोध को तोड़कर इस इलाके को प्रगति की राह पर ले जा सकें तो यह उनकी व्यक्तिगत सफलता होगी। पर यह बात एकतरफा है। दक्षिण एशिया में भारत की जिम्मेदारी कई तरह की है। पहली जिम्मेदारी आर्थिक गतिविधियों को तेज करने की है और दूसरी इस इलाके में सुरक्षा का माहौल तैयार करने की है।

सुरक्षा के बगैर आर्थिक गतिविधियाँ सम्भव नहीं। हाल के वर्षों में हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री डाकुओं का उत्पात बढ़ा है। इसे रोकने की जिम्मेदारी हमारी है। संयोग है कि हाल में चीन की नौसेना ने भी इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाई है। चीन ने श्रीलंका में हम्बनटोटा बंदरगाह तैयार कर दिया है। श्रीलंका सरकार चीन से रक्षा मामलों में मदद भी ले रही है। इसी तरह पाकिस्तान में चान ग्वादर बंदरगाह का विकास कर रहा है। इसके अलावा वह गिलगित से लोकर ग्वादर तक सड़क मार्ग भी विकसित कर रहा है। हाल में चीन समुद्री सिल्क मार्ग की योजना पर काम कर रहा है। इसके लिए उसने बांग्लादेश और म्यांमार से भी सहयोग माँगा है। उसने भारत को भी इसमें शामिल करने की इच्छा व्यक्त की है। इस योजना के व्यापारिक पहलुओं के साथ सुरक्षा पहलू भी हैं। इसलिए भारत को इस पर ध्यान भी देना है।

भारत इस इलाके की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। उसकी जिम्मेदारी बनती है कि यहाँ का नेतृत्व वह सम्हाले। ऐसा नहीं हुआ तो चीन इस इलाके में अपना वर्चस्व स्थापित कर लेगा। हमें चीन के साथ भी दोस्ताना रिश्ते बनाने हैं, पर इलाके की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से इस हफ्ते घटनाक्रम काफी सरगर्म रहा। पिछले रविवार को भारत आए चीनी विदेश मंत्री यांग यी ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाकात की। इसके पहले प्रधानमंत्री मोदी की चीनी प्रधानमंत्री के साथ टेलीफोन पर बातचीत हुई थी। उधर जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने भी मोदी से बात की। चीन और जापान के बीच इन दिनों तनाव है। भारत की इस तनाव में भूमिका नहीं है, पर दक्षिण चीन सागर में वियतनाम के साथ तेल की खोज को लेकर चीन के साथ टकराव का अंदेशा है। चीनी राष्ट्रपति के विशेष दूत बन आए यांग के साथ सीमा विवाद और व्यापार असंतुलन घटाने समेत द्विपक्षीय संबंधों के हर मुद्दे पर बात हुई। पर स्टैपल्ड वीज़ा के मामले में चीन का अपने रुख पर कायम रहना भारत के लिए चिंता का विषय है। शायद इसीलिए विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने चीनी विदेशमंत्री से साफ स्वरों में कहा कि हम एक चीन को स्वीकार करते हैं तो चीन को भी एक भारत की मर्यादा को स्वीकार करना चाहिए।

चीन के साथ भारत के रिश्ते दो धरातलों पर हैं। एक द्विपक्षीय व्यापारिक रिश्ते हैं और दूसरे पाकिस्तान, खासकर कश्मीर से जुड़े मामले। स्टैपल्ड वीज़ा का मसला कश्मीर-मुखी है। संयोग से इस हफ्ते जम्मू-कश्मीर सीमा पर फिर से शुरू हुई गोलाबारी ने भारतीय प्रेक्षकों का ध्यान खींचा है। तीन हफ्ते पहले ही नई सरकार ने अपना काम शुरू किया है। शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के आने से सौहार्द्र का माहौल बना है। ऐसे में इस गोलाबारी का मतलब क्या है? यह मात्र संयोग है या इसके पीछे कोई संदेश छिपा है। क्या यह संयोग रक्षामंत्री अरुण जेटली की जम्मू-कश्मीर यात्रा से जुड़ा हुआ है? नवाज शरीफ की दिल्ली यात्रा के ठीक पहले अफगानिस्तान में हेरात स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमला हुआ था, जिसके पीछे पाकिस्तानी संगठन लश्करे तैयबा का हाथ था। लश्करे तैयबा के प्रमुख हफीज़ सईद ने नवाज शरीफ को हिदायत दी थी कि वे दिल्ली यात्रा पर न जाएं। पिछले हफ्ते कराची के नागरिक हवाई अड्डे पर हुए आतंकी हमले के फौरन बाद इन्हीं हफीज सईद ने आरोप लगाया कि यह हमला मोदी सरकार ने कराया है, जबकि उस हमले की जिम्मेदारी तहरीके पाकिस्तान के एक धड़े ने ली थी। पाकिस्तान के साथ रिश्तों को सुधारने में कई जटिलताएं हैं। बेशक दोनों देश एक-दूसरे के बीच भरोसा कायम करने की कोशिशें करेंगे, पर इस भरोसे को तोड़ने की कोशिशें भी होंगी।

मोदी सरकार के सामने रक्षातंत्र को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी भी है। कई प्रकार की शस्त्र प्रणालियाँ पुरानी पड़ चुकी हैं। अब नेटवर्क सेंट्रिक युद्ध का जमाना है। नई सरकार को मीडियम मल्टी रोल लड़ाकू विमानों के सौदे को अंतिम रूप देना है। सन 2011 में भारत ने तय किया था कि हम फ्रांसीसी विमान रफेल खरीदेंगे और उसका देश में उत्पादन भी करेंगे। पर वह समझौता अभी तक लटका हुआ है। तीनों सेनाओं के लिए कई प्रकार के हेलिकॉप्टरों की खरीद अटकी पड़ी है। विक्रमादित्य की कोटि के दूसरे विमानवाहक पोत के काम में तेजी लाने की जरूरत है। अरिहंत श्रेणी की परमाणु शक्ति चालित पनडुब्बी को पूरी तरह सक्रिय होना है। इसके साथ दो और पनडुब्बियों के निर्माण कार्य में तेजी लाने की जरूरत है। रक्षा तकनीक में स्वदेशीकरण का रास्ता साफ करना है, जिसके लिए कुछ बड़े नीतिगत फैसले करने होंगे। इनमें रक्षा क्षेत्र में सौ फीसदी विदेशी पूँजी निवेश भी शामिल है।


इस हफ्ते चार दिन बाद रूसी उप प्रधानमंत्री दिमित्री रोगोजिन भारत यात्रा पर आ रहे हैं। इस दौरान सरकार रक्षा से जुड़े कुछ मामलों पर बड़े फैसले करने वाली है। प्रधानमंत्री नौसेनाध्यक्ष और थलसेनाध्यक्ष के साथ लम्बे विचार-विमर्श कर चुके हैं। जल्द ही वे तीनों सेना प्रमुखों के साथ भी बैठक करने जा रहे हैं। इसी दौरान चीनी सीमा पर एक नई स्ट्राइक कोर तैनात करने के बारे में कुछ बड़े फैसले भी होने वाले हैं। इन सब बातों को जोड़कर देखें तो विक्रमादित्य के मंच से मोदी के आह्वान को नए ताकतवर भारत के संदेश के रूप में लेना चाहिए।  

दिल्ली के अखबार प्रजातंत्र लाइव में प्रकाशित

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें