देश की सुरक्षा से जुड़ी तीन-चार खबरें एक साथ सामने आईं हैं. इस हफ्ते जम्मू-कश्मीर सीमा पर फिर से गोलाबारी हुई है. तीन हफ्ते पहले ही नई सरकार ने अपना काम शुरू किया है. शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का आगमन खास खबर थी. ऐसे में गोलाबारी का मतलब क्या है?क्या यह संयोग रक्षामंत्री अरुण जेटली की जम्मू-कश्मीर यात्रा से जुड़ा हुआ था? हालंकि अरुण जेटली ने इस गोलाबारी को ज्यादा महत्व नहीं दिया, पर तमाम पहेलियाँ अनबुझी हैं.
नवाज शरीफ की दिल्ली यात्रा के ठीक पहले अफगानिस्तान में हेरात स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमला हुआ था. उसके पीछे पाकिस्तानी संगठन लश्करे तैयबा का हाथ बताया गया था. लश्कर के प्रमुख हफीज़ सईद ने नवाज शरीफ को हिदायत दी थी कि वे दिल्ली यात्रा पर न जाएं. एक हफ्ते पहले कराची के नागरिक हवाई अड्डे पर हुए आतंकी हमले के फौरन बाद इन्हीं हफीज सईद का आरोप लगाया हमला मोदी सरकार ने कराया है, जबकि उसकी जिम्मेदारी तहरीके पाकिस्तान के एक धड़े ने ले ली थी. मतलब साफ है कि पाकिस्तान के भीतर कोई ताकत ऐसी है जो स्थितियाँ सामान्य नहीं होने देगी. चिंताजनक खबर दो रोज़ पहले की है कि अल-कायदा ने कश्मीर में जेहाद की घोषणा की है. संगठन के एक वीडियो में कहा गया है कि अब हम अफगानिस्तान के रास्ते कश्मीर में घुसेंगे. यह पहली बार है जब अल-कायदा ने कश्मीर का नाम लेकर इस किस्म की बात कही है.
कहा जा रहा है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी होते ही पाकिस्तान में बैठी जेहादी ताकतें कश्मीर में नया अभियान शुरू करने वाली हैं. चिंताजनक खबर यह है कि तालिबान के पास धन की और साधनों की इफरात है. यह बात संयुक्त राष्ट्र की एक रपट में कही गई है. इन सारी बातों को देखते हुए देश की सुरक्षा के सवालों पर गौर करने की जरूरत है. शनिवार को भारतीय नौसेना के सबसे बड़े विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य पर खड़े होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय सुरक्षा के बाबत कुछ महत्वपूर्ण संदेश दिए हैं. नई सरकार सुरक्षा को लेकर तेजी से सक्रिय हुई है. कहा जा सकता है कि यह सिर्फ प्रचारात्मक है. पर विक्रमादित्य की सवारी केवल फोटो अपॉरच्युनिटी से कुछ ज्यादा लगती है. मोदी ने एक मजबूत नौसेना की जरूरत को रेखांकित करते हुए समुद्री व्यापार-मार्गों की सुरक्षा का सवाल उठाया. पर ज्यादा महत्वपूर्ण बात सुरक्षा प्रौद्योगिकी के स्वदेशीकरण की कही. उन्होंने परम्परागत भारतीय नीति से हटते हुए यह भी कहा कि हमें रक्षा सामग्री के निर्यात के बारे में भी सोचना चाहिए. यह एक महत्वपूर्ण नीतिगत वक्तव्य है. अभी तक भारत सरकार शस्त्र निर्यात के खिलाफ रही है. हाल में अफगानिस्तान ने कुछ हथियारों की जरूरत पेश की तो भारत ने रूस से हथियार दिलवाकर उनके भुगतान की व्यवस्था की, पर सीधे हथियार नहीं दिए.
भारत इस वक्त दुनिया का सबसे बड़ा शस्त्र आयातक देश है. कुछ साल पहले तक चीन सबसे बड़ा शस्त्र आयातक होता था, पर उसने अपनी तकनीक का विकास करने और शस्त्र निर्यात करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया और आज वह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा शस्त्र निर्यातक है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह पाकिस्तान का सबसे बड़ा राक्षा साझीदार है. मिसाइलों, जेएफ-17 लड़ाकू विमानों और तोपखाने से लेकर नौसेना तक चीनी तकनीक पाकिस्तान में प्रवेश कर रही है. पाकिस्तान में ही नहीं चीन श्रीलंका, म्यांमार, बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव जैसे देशों के साथ रक्षा सहयोग बढ़ा रहा है. बहरहाल मोदी सरकार के सामने रक्षा को लेकर बड़ी चुनौतियाँ हैं. इनमें सबसे बड़ी चुनौती है सेना के आधुनिकीकरण को पूरा करना. शस्त्र प्रणालियाँ पुरानी पड़ चुकी हैं. अब नेटवर्क सेंट्रिक युद्ध का जमाना है.
नई सरकार को मीडियम मल्टी रोल लड़ाकू विमानों के सौदे को अंतिम रूप देना है. सन 2011 में भारत ने तय किया था कि हम फ्रांसीसी विमान रफेल खरीदेंगे और उसका देश में उत्पादन भी करेंगे. पर वह समझौता अभी तक लटका हुआ है. तीनों सेनाओं के लिए कई प्रकार के हेलिकॉप्टरों की खरीद अटकी पड़ी है. विक्रमादित्य की कोटि के दूसरे विमानवाहक पोत के काम में तेजी लाने की जरूरत है. अरिहंत श्रेणी की परमाणु शक्ति चालित पनडुब्बी को पूरी तरह सक्रिय होना है. इसके साथ दो और पनडुब्बियों के निर्माण कार्य में तेजी लाने की जरूरत है. रक्षा तकनीक में स्वदेशीकरण का रास्ता साफ करना है, जिसके लिए कुछ बड़े नीतिगत फैसले करने होंगे. इनमें रक्षा क्षेत्र में सौ फीसदी विदेशी पूँजी निवेश भी शामिल है.
हाल में सरकार ने रक्षा परियोजनाओं को तेजी से मंजूर करने के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति में तेजी लाने का फैसला किया है. चीनी सीमा पर लगभग छह हजार किलोमीटर लम्बी सड़कों का निर्माण कार्य इंतजार कर रहा है. चूंकि रक्षा सौदों और इस प्रकार के निर्माण कार्यों के साथ कई प्रकार के विवाद भी जुड़े होते हैं, इसलिए फैसलों में देरी होती है. यह देर प्रशासनिक दोष है. इस हफ्ते रूसी उप प्रधानमंत्री दिमित्री रोगोजिन भारत यात्रा पर आ रहे हैं. प्रधानमंत्री नौसेनाध्यक्ष और थलसेनाध्यक्ष के साथ लम्बे विचार-विमर्श कर चुके हैं. जल्द ही वे तीनों सेना प्रमुखों के साथ भी बैठक करने जा रहे हैं. इसी दौरान चीनी सीमा पर एक नई स्ट्राइक कोर तैनात करने के बारे में कुछ बड़े फैसले भी होने वाले हैं. इन सब बातों को जोड़कर देखें तो विक्रमादित्य के मंच से मोदी का आह्वान नए ताकतवर भारत का आह्वान है.
भारत इस इलाके की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. उसकी जिम्मेदारी बनती है कि यहाँ का नेतृत्व वह सम्हाले. ऐसा नहीं हुआ तो चीन इस इलाके में अपना वर्चस्व स्थापित कर लेगा. हमें चीन के साथ भी दोस्ताना रिश्ते बनाने हैं, पर इलाके की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है. राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से इस हफ्ते घटनाक्रम काफी सरगर्म रहा. पिछले रविवार को भारत आए चीनी विदेश मंत्री यांग यी ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाकात की. इसके पहले प्रधानमंत्री मोदी की चीनी प्रधानमंत्री के साथ टेलीफोन पर बातचीत हुई थी. उधर जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने भी मोदी से बात की. चीन और जापान के बीच इन दिनों तनाव है. भारत की इस तनाव में भूमिका नहीं है, पर दक्षिण चीन सागर में वियतनाम के साथ तेल की खोज को लेकर चीन के साथ टकराव का अंदेशा है. चीनी राष्ट्रपति के विशेष दूत बन आए यांग के साथ सीमा विवाद और व्यापार असंतुलन घटाने समेत द्विपक्षीय संबंधों के हर मुद्दे पर बात हुई. पर स्टैपल्ड वीज़ा के मामले में चीन का अपने रुख पर कायम रहना भारत के लिए चिंता का विषय है. शायद इसीलिए विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने चीनी विदेशमंत्री से साफ स्वरों में कहा कि हम ‘एक चीन’ को स्वीकार करते हैं तो चीन को भी ‘एक भारत’ की मर्यादा को स्वीकार करना चाहिए. विदेश नीति अपनी जगह है, पर देश अपनी सैनिक शक्ति की उपेक्षा नहीं कर सकता.
प्रभात खबर में प्रकाशित
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