मंगलवार, 26 अगस्त 2014

सोनभद्र-तहसील और थाने भ्रष्टाचार के अडडे?


डाँ कुणाल सिंह (आवाज़-ए-हिन्द.इन)

अपने आठ माह के शासन के बाद मुख्य मंत्री ने यह तो जान और मान लिया है कि तहसील और थाने भ्रष्टाचार के अडडे हैं।दूःखद है कि इस बेबाक टिप्पडी के बाद भी सुशासन का वादा कर चुके अखिलेश यादव लाचार और असहाय दिख रहें हैं।वो उम्मीद लगाये बैठे हैं कि पार्टी नेता ही इस भ्रष्टाचार को दूर कर सकते हैं।सच्चाई यह है कि यही नेता ही इस कदर के भ्रष्टाचार की जड मे हैं।पार्टी के चुनावी वादे भी इस भ्रष्टाचार की जड में है।

यह सच है कि चनाव वादों पर ही लडे जाते हैं परन्तु जीत के लिये अनैतिक व असहज वादों का सहारा लिया जाना भ्रष्टाचार का केन्द्र विन्दु बन जाता है।सपा ने कई वादे किये।सरकार बन जाने पर बेरोजगार युवको को बेरोजगारी भत्ता व क्षात्रों को लापटाप दिये जाने की परन्तु यह दोनो ही वादों की पृष्ठभूमि अस्पष्ट रही। भत्ता के लिये पात्रता क्या होगी और कौन सी शर्तें पुरी करनी होगी। लैपटाप पाने की औपचारिकता क्या निभानी होगी यह भी अस्पष्ट था। जो बमुश्किल इण्टर के आगे नहीं जा सकने की आर्थिक मजबुरी मे पढाई छोड बैठे उन्हें रोजगार चाहिए था रोजगार भत्ता नहीं परन्तु 35 वर्ष से कम उमर की शर्त से उन्हे न तो रोजगार भत्ता मिलना है न ही लापटाप ही।इधर उधर नौकरी की दौड भाग मे तहसील स्तर से इनका भी आर्थिक दोहन हो रहा है।

दुसरा वादा था सरकार बनते ही पुलिस जवानो की उनके इच्छित स्थानो पर तैनाती की।सो सरकार बनते ही पुलिस वाले अपने इच्छित जिला मे तैनाती पा गए। तय है कि वह वहॉं हरिश्चद्र बनने के लिये नही गये होंगे।अगर थाना स्तर से भ्रष्टाचार रोकना है तो सिपाही से कप्तान तक जोन से बाहर का लाना होगा।स्थानीय अपराधी,स्थानीय नेता व स्थानीय पुलिस वालों से तालमेल बनना बहुत ही आसान होता है।कोई भी स्थानीय अपराधी या स्थानीय माफिया थानेदार से थानेदार के चहेते पुलिस वाले के माध्यम से ही बना पाता है ।वर्षों से आसपास जिलों मे तैनात रहे पुलिस वाले बेहतर माध्यम बन जाते हैं।

पार्टी नेताओं पर भरोषा कर रह अखिलेश यादव को शायद यह पता नही कि थाना संचालन थानाप्रभारी नहीं बल्कि पार्टी के रसूख वाले स्थानीय नेता ही चलाते दिख रहे हैं। सुशासन कैसे हो दिग्भ्रमित हैं मुख्यमंत्री जी। पार्टी निति निर्धारक व सलाहकार समिति के सदस्य ही उन्हें अंधेरे मे रख्खे हुए हैं।जिला सोनभद्र का उदाहरण सामने है।उर्जा व उद्दयोग का हब बनचुका जिला सोनभद्र गिटटी मोरम कोयला सीमेन्ट व विद्धयुत उत्पादन का बडा बाजार बन चुका है।यहॉं की आवाम आज आन्दोलनरत है कि उसे एक अदद जिलाधिकारी चाहिए जो पद पिछले कई माह से खाली पडा है। दुःखद है कि 13 दिसम्बर से यह जिला कप्तान विहीन भी हो गया है। एसपी के जाते ही कोल कबाड माफिया निरंकुश हो चुके हैं और चोपन से ओबरा होते हुर अनुपरा से शक्तिनगर तक उनका एकछत्र राज हो गया है।थाना या तो असहाय हो उठा है या भ्रष्टाचार की गंगा मे नहा रहा है।प्रदेशभर के थानो पर अगर आवजाही बढी है तो वह पैरवीकार सपाईयों की ही है। जिले के पूर्व जिलाधिकारी पन्धारी यादव के केबिनेट सचिव बनन के बाद भी अगर सीएम को सोनभद्र की सच्चाई न पता हो तो कहना मुश्किल है कि प्रदेश भर के तहसील व थानो का भ्रष्टाचार मिट भी पायेगा।सोनभद्र जैसी स्थिति तो प्रदेश के हर जिले की है।

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