“उठो ! अहमद शाह अब्दाली, मुहम्मद बिन कासिम, शहीद सईद अहमद और पैगम्बर व उनके साथियों की तरह……एक हाथ में कुरआन और दूसरे हाथ में तलवार लो और जिहाद के क्षेत्र की ओर निकलो।”…. इराक़ और सीरिया की रेगिस्तान की मिट्टी से उठनेवाली पुकार सुनो, ढाढस बाँधो और जिहाद की मातृभूमि अफगानिस्तान की ओर निकलो।” यह पुकार अंसार-उल-तौहीद द्वारा अपने ट्विटर अकाउंट में जारी किये गये वीडियो में है। एक अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार विडियो में दिखाई दे रहा नकाबपोश 39 वर्ष का सुलतान अब्दुल कादिर आरमार है जो कर्नाटक के भटकल गाँव के एक छोटे व्यापारी का बेटा है। अगर यह खबर सही है तो यह पहली बार है जब एक भारतीय द्वारा सार्वजनिक रूप देश के मुसलमानों को वैश्विक जिहाद के लिए आह्वान किया गया है।
उधर बिन लादेन की मौत के बाद सुर्खियों से दूर रहे अलकायदा का जिन्न भी बोतल के बाहर आ गया है। अलकायदा की तरफ से जारी एक वीडियो में अल जवाहिरी ने एलान किया है कि अब उनका इरादा भारतीय उपमहाद्वीप में झंडा लहराने का है। जवाहिरी के मुताबिक उसका संगठन अब “बर्मा, बांग्लादेश, असम,गुजरात और कश्मीर में” मुसलमानों को जुल्म से बचने के लिए लड़ाई लड़ेगा। उसने भारत में तथाकथित “इस्लामिक राज” के वापसी की भी बात की है।
उपरोक्त दोनों घटनायें इस ओर इशारा करती हैं कि ग्लोबल जिहादियों के निशाने पर अब भारत और यहाँ के मुसलमान हैं, भारत के मुसलमानों ने अलकायदा के सरगना के आह्वाहन का सख़्त अल्फाज़ो में मुजम्मत की है, लेकिन इस मुल्क के वहाबी इस्लाम के पैरोकार भी हैं जिनका सब से पहला टकराव उदार और सूफी इस्लामके भारतीय स्वरूप से है।
इस्लामिक स्टेट भी उसी पोलिटिकल इस्लाम की पैदाइश है जिसकी जड़ें वहाबीवाद में है, इनका दर्शन चौदहवी सदी के ऐसे सामाजिक-राजनीतिक प्रारुप को फिर से लागू करने की वकालत करता है, जहाँ असहमतियों की कोई जगह नहीं है, उनकी सोच है कि या तो आप उनकी तरह बन जाओ नहीं तो आप का सफाया कर दिया जायेगा।
पाकिस्तान के मशहूर कार्टूनिस्ट साबिर नज़र ने तथाकथित “अरब स्प्रिंग ” को लेकर एक कार्टून बनाया है जिसमें दिखाया गया है कि विभिन्न अरब मुल्कों में बसंत के पौधे थोड़े बड़े होने के बाद जिहादियों के रूप में फलते–फूलते दिखाई पड़ने लगते हैं, शायद अरब स्प्रिंग की यही सचाई भी है। अपने आप को दुनिया भर में लोकतंत्र के सबसे बड़े रखवाले के तौर पर पेश करने वाले पश्चिमी मुल्कों ने अपने हितों के खातिर एक के बाद एक सिलसिलेवार तरीके से इराक में सद्दाम हुसैन, इजिप्ट में हुस्नी मुबारक और लीबिया में कर्नल गद्दाफी आदि को उनकी सत्ता से बेदखल किया है, इन हुक्मरानों का आचरण परम्परागत तौर पर सेक्यूलर रहा है। आज ये सभी मुमालिक भयानक खून-खराबे और अस्थिरता के दौर से गुजर रहे हैं, अब वहां धार्मिक चरमपंथियों का बोल बाला है। “इस्लामिक स्टेट” कुछ और नहीं बल्कि तथाकथित अरब स्प्रिंग की देन है।
इस्लामिक स्टेट द्वारा आज बहुत कम समय में इराक़ और सीरिया के एक बड़े हिस्से पर अपना कब्ज़ा जमा लिया गया है। इराक जैसा मुल्क जो पुराने समय में मेसोपोटामिया सभ्यता के नाम से विख्यात रहा है, जो एक समय शिक्षा, व्यापार, तकनीक, सामाजिक विकास, संस्कृति को लेकर काफी समृद्ध रहा है, आज अपने अस्तित्व के संकट से गुजर रहा है। अपनी धरती में दफन अकूत तेल के वजह से यह मुल्क समृद्ध तो अभी भी है, लेकिन इसी तेल की वजह से उसे नए जमाने के साम्राज्यवादियों की नज़र लग गयी है और यह मुल्क आईएस जैसे घोर अतिवादी संगठन के चँगुल में फँस कर मध्ययुग के दौर में पहुँच गया दिखाई पड़ता है।
एकांगी इस्लाम में विश्वास करने वाले इस्लामिक स्टेट के सबसे पहले शिकार तो चरमपंथी, सूफी और ग़ैर-सुन्नी मुसलमान ही हैं, वे सूफी और ग़ैर-सुन्नी मुसलामनों के एतिहासिक धार्मिक स्थलों को तबाह कर रहे है क्योंकि उनका शुद्धतावादी वहाबी इस्लाम बताता है कि कब्रों और मक़बरों पर जाना इस्लाम के खिलाफ है। उनकी सोच कितनी संकुचित है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों उन्होंने एक आदेश जारी किया है कि दुकानों पर लगे हुए सभी बुतों के चेहरे ढँके हुए होने चाहिए। आईएस के वहशियों द्वारा की जा रही बर्बरता की दास्तानें रोंगटे खड़ी कर देने वाली हैं। पूरी दुनिया यजीदी समुदाय का बड़े पैमाने पर किये जा रहे जनसंहार को लगातार देख और सुन रही है। यजीदी समुदाय की महिलाओं और बच्चों को जिंदा दफन और महिलाओं को गुलाम बनाया जा रहा है। अगवा किया गये अमेरिकी- ब्रिटिश पत्रकारों की गर्दन काटते हुई वीडियो जारी किये जा रहे हैं और यह सब मजहब के नाम पर हो रहा है।
इन सब के बीच आईएसआईएस के गठन में सीआईए और मोसाद जैसी खुफिया एजेंसियों की सक्रिय भूमिका की ख़बरें भी आयी हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के पूर्व अधिकारी एडवर्ड इस्नोडन ने खुलासा किया है कि इस्लामिक स्टेट का मुखिया अबू बकर अलबगदादी अमेरिका और इसराइल का एजेंट है और उसे इसराइल में प्रशिक्षण प्रदान किया गया है। एडवर्ड के अनुसार सीआईए ने ब्रिटेन और इजरायल के खुफिया एजेंसियों के साथ मिल कर इस्लामिक स्टेट जैसा जिहादी संगठन बनाया है जो दुनिया भर के चरमपंथियों को आकर्षित कर सके, इस नीति को ‘द हारनीटज़ नीसट’ का नाम दिया गया, अमरीका के पुराने इतिहास को देखते हुए एडवर्ड इस्नोडन के इस खुलासे को झुठलाया भी नहीं जा सकता है। आखिरकार यह अमरीका ही तो था जिसने अफ़ग़ानिस्तान में मुजाहिदीनों की मदद की थी, जिससे आगे चल कर अल-क़ायदा का जन्म हुआ था। अमरीका के सहयोगी खाड़ी देशों पर आईएस की मदद करने के आरोप हैं, साथ ही इस संगठन के पास इतने आधुनिक हथियार कहां से आये इसको लेकर भी सवाल है?
इस्लामिक स्टेट का मंसूबा है कि 15वीं सदी में दुनिया के जितने हिस्से पर मुसलमानों का राज था, वहाँ दोबारा इस्लामी हुकूमत कायम की जाये, शायद इसी वजह से इस्लामिक स्टेट ने खिलाफत का ऐलान करते हुए अपने नेता अबु अल बगदादी को पूरी दुनिया के मुसलमानों का खलीफा घोषित कर दिया है, यह स्वयम्भू खलीफा दुनिया भर के मुसलमानों से एकजुट हो कर इस्लामी खिलाफत के लिए जिहाद छेड़ने की अपील जारी कर रहा है।
तो इन सब का असर भारत पर क्या हो रहा है ? पिछले दिनों नदवा जैसी विश्वविख्यत इस्लामी शिक्षा केंद्र के एक अध्यापक सलमान नदवी द्वारा आई एस आई एस के सरग़ना अबूबकर बग़दादी को एक ख़त लिख कर उसकी हुकूमत को बधाई दी गयी है, ख़त का मजमून कुछ यूँ है– “आप जो भूमिका निभा रहे हैं उसको सभी ने स्वीकार किया है और आप को अमीर उल मोमेनीन (खलीफा) मान लिया है”। इसी तरह से महाराष्ट्र के चार युवा जो की पढ़े लिखे प्रोफेशनल है जिहादियीं का साथ देने इराक चले गये हैं। तमिलनाडु में मुस्लिम युवाओं द्वारा इस्लामिक स्टेट के चिन्हों वाली टीशर्ट बाँटे जाने की खबर भी सामने आई है। सोशल मीडिया पर भी पर इस्लामिक स्टेट के तारीफ में पोस्ट और फोटो शेयर किये जा रहे हैं। इन्हें इस्लामिक स्टेट, अल क़ायदा और तालिबान के खूँखार हत्यारों में अपना मसीहा और इराक के क़त्लेआम में एक इस्लामी देश की स्थापना के लिए लड़ा जाने वाला धर्मयुद्ध नज़र आता है।
बेशक यह सब घटनायें चिंता का सबब है। लेकिन इसके बरअक्स आज भी भारत के ज्यादातर मुसलमान सूफी और उदार इस्लाम में यकीन करते हैं और ख्वाजा मुईन-उद-द्दीन चिश्ती, कुतबुद्दीन बख्तियार खुरमा, निजाम-उद-द्दीन औलिया, अमीर खुसरो, वारिस शाह, बुल्लेशाह, बाबा फरीद जैसे सूफियों के तालीम को मानते हैं। इस्लाम का भारतीय संस्करण उदार है, इसमें भारत के स्थानियता (लोकेलिटी) समाहित है। भारत में सूफी-संतों की वजह से इस्लाम की एक रहस्यमयी और सहनशील धारा सामने आई जो एकांकी नहीं है। सूफियों-संतों ने दोनों धर्मों की कट्टरता को नकारा और सभी मतों, पंथों से परम्पराओं और विचारों को ग्रहण किया। उन्होंने हिन्दू और मुसलमानों को सहनशीलता, एक दूसरे के धर्म का आदर करना और साथ रहना, तमाम कोशिशों के बावजूद एक दुसरे के भावनाओं को इज्ज़त करने और साथ मिल कर रहने की तालीम दी जिसका असर अभी भी बाकी है। भारत में ऑल इंडिया उलमा एंड मशाइख़ बोर्ड जैसे संगठन वहाबी (सलफ़ी) विचारधारा का जमकर विरोध कर रहे हैं। करीब चार साल पहले ही इस संगठन द्वारा भारत में वहाबियत के प्रसार के खिलाफ एक रैली कि गयी थी जिसमें लाखों लोग शरीक हुए और नारा दिया गया ‘वहाबी की ना इमामत कुबूल है, ना कयादत कुबूल’।
इधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू कहा है कि,“यह अल क़ायदा की ग़लतफ़हमी है कि भारतीय मुसलमान उसके इशारों पर नाचेंगे….भारतीय मुसलमान देश के लिए ही जिएंगे और भारत के लिए ही जान देंगे,” मोदी ने ये बात अलकायदा द्वारा कुछ दिनों पहले जारी की गयी उस विडियो को लेकर पूछे गये प्रश्न के उत्तर में कही हैं जिसमें अलकायदा ने भारत में अपनी शाखा खोलने और भारतीय मुसलमानों की मदद करने कि बात की है।
लगभग इसी दौरान में देश के प्रख्यात न्यायविद फली एस. नरीमन ने मोदी सरकार को बहुसंख्यकवादी बताते हुए चिंता जाहिर की है कि बीजेपी-संघ परिवार के संगठनों के नेता खुलेआम अल्पसंख्यकों के खिलाफ बयान दे रहे हैं लेकिन सीनियर लीडर इस पर कुछ नहीं कहते। जिस प्रकार से नयी सरकार बनने के बाद से संघ परिवार आक्रमक तरीके से लगातार यह सुरसुरी छोड़ रहा है कि भारत हिन्दू राष्ट्र है,यहाँ के रहने वाले सभी लोग हिन्दू है, उससे फली एस. नरीमन जी कि चिंता सही जान पड़ती है, और प्रधानमंत्री कि कथनी और करनी में फर्क साफ़ दिखाई दे रहा है।
प्रधानमंत्री को मुसलमानों को देशभक्ति का प्रमाणपत्र देने की जगह संघ परिवार और अपने पार्टी के उन नेताओं पर लगाम लगाना चाहिए जो भारत के बहुलतावादी सवरूप को नष्ट करके इसे हिन्दू राष्ट्र बनाने का मंसूबा पाले हुए हैं, दरअसल इनकी ये हरकतें परोक्ष रूप से जिहादी संगठनों और मुल्क मैं मौजूद उनके तलबगारों को मदद ही पहुँचायेगी, मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बना देने की इनकी जिद वहाबियत का रास्ता आसान करेगी, क्योंकि इसी बहाने वे नवजवानों को जुल्म और भेद-भाव का हवाला देकर उन्हें अपने साथ खड़ा करने की कोशिश कर सकते हैं ।
अगर भारत को इस्लामिक स्टेट या अलकायदा जैसे संगठनों से कोई खतरा है तो इसका सबसे ज्यादा असर यहाँ के मुसलमानों पर पड़ेगा, इस मुल्क के एक- आध फीसीदी मुसलमान भी अगर इस्लामिक स्टेट और अलकायदा जैसे जिहादी संगठनों की इमामत स्वीकार कर लेते हैं तो भारत के मुसलमान भी भी उसी आग का शिकार हो सकते हैं जिसमें पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान जल रहे हैं। इसीलिए भारत में इस खतरे का सबसे ज्यादा मुकाबला यहाँ के मुसलमानों को ही करना पड़ेगा। ऑल इंडिया उलमा एंड मशाइख़ बोर्ड और मुस्लिम्स फॉर सेक्युलर डेमोक्रेसी जैसे संगठन इस दिशा में आगे आ रहे हैं ।
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