रविवार, 8 दिसंबर 2013

तब तो फुटबॉल का मैदान हो जाएगा कश्मीर

इस विशाल देश को चलाने के लिए तबियत को भी विशाल आयाम देना होगा। यकीनन आप 370 को हटाएंगे तो 371 भी हटाना होगा। लेकिन ऐसा करके आप आदिवासियों के जल,जंगल,जमीन का अधिकार छीन लेंगे। भारत में जम्मू-कश्मीर का विलय ही इस गारंटी पर हुआ। अगर इसे खत्म करेंगे तो हुर्रियत जैसे अलगाववादियों का ही समर्थन करने लगेंगे। इसलिए 370 का विरोध राष्ट्रीय अस्मिता, संवैधानिक मर्यादाओं, संविधान निर्माताओं की विहंगम दृष्टि और देश की एकता-अखंडता को तोड़ने वाला तथा विभिन्न राज्यों के विलय के प्रस्तावों पर बनी सहमति का भी विरोध है
अतुल कुमार अनजान राजनीतिक विमर्शकार

भारतीय जनता पार्टी समय-समय पर जम्मू-कश्मीर को हमेशा विवाद में घसीट कर लाती रही है। पाकिस्तान के हुक्मरान भी इस सूबे को विवादों में घसीटकर वहां की आंतरिक राजनीति में अपनी भूमिका तलाशते रहते हैं। जैसे वहां के राजनैतिक दल, कुछ बुद्धिजीवी, कुछ अमेरिका की निरंतर जुगाली करने वाले राजनीतिक तत्व, कुछ फौज के रिटार्यड अधिकारी और आईएसआई पाकिस्तान में यही करते हैं। ठीक उसी प्रकार, भारत में भाजपा व उनके कुछ सहयोगी तथा विकट खोपड़ी के बुद्धिजीवी, जो अपनी समझ में निरंतरता का अभाव रखते हैं; वह अनुच्छेद-370 को जम्मू-कश्मीर में कहीं न कहीं अपनी आंतरिक राजनीति का हिस्सा बनाने में संलग्न रहते हैं। अचानक जम्मू में सभा करते हुए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आरएसएस और भाजपा का पुराना राग छेड़ दिया। भाजपा और संघ की गतिविधियों पर पैनी नजर रखने वाले यह पाएंगे कि जब भी भाजपा का कोई नया राष्ट्रीय अध्यक्ष या फिर संघ का नया संघ प्रमुख चुना जाता है, वह अनुच्छेद 370 का जिक्र जरूर करता है। नरेन्द्र मोदी उसी कड़ी के नये सिपाही हैं। संघ और भाजपा के नेता 370 का जिक्र करते-करते यह कहते नहीं थकते कि डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की रहस्यमय परिस्थितियों में जेल में मृत्यु हो गई। प्रश्न यह है कि अगर 370 देश विरोधी है, राष्ट्रीय एकता को तोड़ने वाला है, भारत की सार्वभौमिकता को चुनौती दे रहा है तो जब भाजपा को छह वर्ष तक अटल जी के नेतृत्त्व में प्रधानमंत्री रहते हुए सुअवसर मिला था तो क्यों नहीं वह 370 को समाप्त करने के लिए संसद में संविधान संशोधन ले आए? किसने रोका था? सदन के बाहर शाब्दिक जुगाली और सरकार में रह कर अपने कहे से हट जाने की परिपाटी हिटलर की याद दिलाता है। तत्कालीन गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री अपने को लौह पुरुष कहलाने वाले लालकृष्ण आडवाणी जी ने डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत को नये सिरे से क्यों नहीं जांच कराई? कौन उन्हें रोक रहा था? जिस डा. फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला को आज संघ व भाजपा का एक धड़ा देश द्रोही की परिभाषा में रख रहा है; उनको बाजपेयी जी ने अपने मंत्रिमंडल में क्यों रखा था? उन्हें एनडीए का हिस्सा क्यों बनाया था? आजादी के बाद कोई भी भारतीय नेता जिन्ना की मजार नहीं गया, फिर आडवाणी जी सपरिवार वहां क्यों गए थे? वे वहां फातिहा क्यों पढ़ रहे थे? ये तमाम प्रश्न हैं, जिनके उत्तर 370 पर बहस की शुरु आत करने के साथ संघ और भाजपा को देना होगा।

किन हालातों में 370 यह जानने की जरूरत है कि किन परिस्थितियों में 370 भारत के संविधान का अंग है? जब राजे- रजवाड़े ब्रिटिश साम्राज्य की भारत विरोधी कूटनीति के हिस्सा बन गए और हमारी आजादी को बंटवारे के साथ-साथ गम्भीर चुनौतियों के सामने ढकेल कर लम्बी अवधि तक खेल करना चाहते थे, उसी के तहत जम्मू-कश्मीर, जूनागढ़, निजाम हैदराबाद का प्रयोग किया गया। अंतत: जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल ने जम्मू-कश्मीर के विलय के लिए अनुच्छेद 370 का प्रावधान किया और जम्मू-कश्मीर की हरि सिंह की सरकार से एक समझौता किया। राजा हरि सिंह और शेख अब्दुल्ला दोनों ने समझौते की पुष्टि की। संविधान में 370 का प्रावधान कर जम्मू कश्मीर सदैव के लिए भारत का अविभाज्य अंग बन गया। अगर आज इसको हम हटाते हैं तो भारत का अविभाज्य अंग जम्मू- कश्मीर समझौते के प्रावधानों के आधार पर नहीं रहेगा। और तब फिर विश्व साम्राज्यवाद, अमेरिका, पश्चिम यूरोप के कुछ देश भारत-पाकिस्तान के बीच दंगल भरा फुटबॉल देखने के लिए हर संभव प्रयत्न करेंगे। भारत एक बहुराज्यीय, बहुधार्मिंक, बहुभाषाई, बहुपरम्परावादी और विभिन्न पुरातन व नवीनतम परम्पराओं व सोच के सम्मिश्रणसे पैदा हुआ एक राष्ट्र है। यहां छोटे से छोटे अल्पमत भाषा के हिफाजत की गारंटी हमारा संविधान देता है। सम्भवत: दुनिया में इकलौता यह देश है; जहां कई सारे धर्म हैं। इंग्लैंड में जहां 80 फीसद ईसाई हैं तो अरब में सौ फीसद इस्लाम को मानने वाले हैं, वहीं भारत में शायद ही कोई धर्म होगा जिसके मानने वाले न हों। इसलिए भारत की अक्षुण्णता को बनाए रखने के लिए हमारे संविधान निर्माताओं आवश्यक प्रावधानों का समावेश इसमें किया। इतना ही कहा जा सकता है कि इस विशाल देश को चलाने के लिए तबियत को भी विशाल आयाम देना होगा। यकीनन आप 370 को हटाएंगे तो 371 भी हटाना होगा। लेकिन ऐसा करके आप आदिवासियों के जल,जंगल,जमीन का अधिकार छीन लेंगे। भारत में जम्मू-कश्मीर का विलय ही इसी गारंटी पर हुआ। अगर इसे खत्म करेंगे तो हुर्रियत जैसे अलगाववादियों का ही समर्थन करने लगेंगे और आप आजाद कश्मीर का विस्तार करवाएंगे।

कश्मीर ही नहीं कई राज्यों में लागू यह प्रावधान अनुच्छेद-370 के कई प्रावधानों में सिर्फ जम्मू-कश्मीर ही नहीं है। उत्तर पूर्व के राज्यों, हिमाचल, यहां तक कि कुछ दक्षिण व पश्चिम के राज्य भी कुछ विशिष्ट अधिकार सम्पन्न बनते हैं। अनुच्छेद 371 में बहुत कुछ वर्णित है। यह राज्यों की अपनी-अपनी बनावट की अस्मिता की हिफाजत करता है। बाहरी राज्य का आदमी हिमाचल में जमीन नहीं खरीद सकता। अनुच्छेद 370-371 को यदि बदलना या संविधान से निकालना चाहते हैं तो बहुमत से संशोधन लाना होगा। फिर इसको हटाना होगा। फिर जम्मू-कश्मीर को खोने के लिए अमेरिकी साम्राज्यवादियों तथा भारत विरोधी शक्तियों को खेलने का मौका देना होगा। शायद ये गम्भीर बातें संघ और भाजपा की समझ में नहीं आतीं। लेकिन भावनात्मक आधार पर कुछ वोटों के लिए यह राग वह समय-समय पर आधी रात के वक्त मल्हार की तरह अलापते रहते हैं। अफसोस यह है कि इन विषयों पर संसद के बाहर तो भाजपा और संघ के लोग शाब्दिक कुलांचें भरते हुए दिखाई और सुनाई पड़ते हैं परंतु इस विषय पर संसद के अंदर मुख्य विपक्षी दल होने के नाते कभी भी संविधान संशोधन पेश करने की पहल नहीं करते। देश की संसद में अगर इस विषय को उठाएं तो सम्भवत: बेहतर जवाब मिल जाएगा। साथ ही संविधान सभा में चली हुई बहसों को अगर वे पढ़ लेंगे और संविधान निर्माताओं की दूरदृष्टि को वह समझ लेंगे तो उन्हें पता लगेगा कि राष्ट्रीय आजादी की लड़ाई में ‘साझी शहादत से जो साझी विरासत’

पैदा हुई है, उसे तोड़ना देश द्रोहिता से कम नहीं होगा। हमारे भाजपा व संघ की विडम्बना यह है कि वह राष्ट्रीय आजादी के संघर्षो के हिस्सा नहीं रहे हैं। गो कि संघ का गठन 1925 में हो गया था पर उसका कोई नेता आजादी की लड़ाई में जेल नहीं गया। प्रारम्भ की जनसंघ आज की भाजपा और आरएसएस में 50 लोग भी ऐसे नहीं मिलेंगे, जो आजादी की लड़ाई में जेल गए हों, काला पानी की तो बात ही दूर। इसलिए वह विचार मंथन से पैदा हुए राष्ट्रीय आजादी की लड़ाई के विभिन्न आयामों को अपनी सहभागिता के अभाव के कारण समझ सकने में आज तक असफल रहे हैं। राष्ट्रवाद का नारा लगाकर-370 का भावनात्मक विश्लेषण कर वह अपने को 24 कैरेटीय राष्ट्रवादी होने का दावा कर रहे हैं लेकिन पूरी प्रक्रिया में वह विशाल देश के वक्षस्थल पर निरंतर घाव पर घाव कर रहे हैं। इसलिए 370 का विरोध राष्ट्रीय अस्मिता, संवैधानिक मर्यादाओं, संविधान निर्माताओं की विहंगम दृष्टि और देश की एकता-अखंडता को तोड़ने वाला तथा विभिन्न राज्यों के विलय के प्रस्तावों पर बनी सहमति का भी विरोध है। लिहाजा, अनुच्छेद-370 को समाप्त करने के लिए आवाज उठाना वोटों को बटोरने के लिए राजनैतिक अपरिपक्वता का ज्वलंत उदाहरण है।

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