रविवार, 8 दिसंबर 2013

विस्थापितों पर नरेन्द्र की नजर नहीं

प्रो. भीम सिंह मुख्य संरक्षक, पैंथर पार्टी

मोदी ने 63 साल से बिना किसी नागरिक और राजनीतिक अधिकार के रह रहे पाकिस्तानी रिफ्यूजियों का कोई जिक्र नहीं किया।ंपाक अधिकृत कश्मीर से आए एक करोड़ भारतीय नागरिक जो राज्य में आज तक बसाए नहीं जा सके हैं। वे ये भी भूल गए कि उन रिफ्यूजियों का क्या हश्र हुआ, जो 1965 से भारत सरकार द्वारा छम्ब और देवा बटाला से उजाड़े गए थे। करीब चार लाख कश्मीरी विस्थापितों और डोडा, रामबन, किश्तवाड़, पुंछ, राजौरी, रियासी और अन्य स्थानों से उजड़े पचास हजार विस्थापितों को आज तक हकदार होते हुए भी कोई राहत मुहैया नहीं कराई गई

नरेन्द्र मोदी ने हालांकि अपने भाषणों में 63 साल से बिना किसी नागरिक और राजनीतिक अधिकार के रह रहे पाकिस्तानी रिफ्यूजियों का कोई जिक्र नहीं किया। जबकि यह बड़ा मुद्दा है और अनुच्छेद-370 पर बहस कराने जितना महत्त्वपूर्ण है। मोदी यह बताना भी भूल गए कि पाक अधिकृत कश्मीर से आए एक करोड़ भारतीय नागरिक राज्य में आज तक बसाए नहीं जा सके हैं। वे यह भी भूल गए कि उन रिफ्यूजियों का क्या हश्र हुआ, जो 1965 से भारत सरकार द्वारा छम्ब और देवा बटाला से उजाड़े गए थे। करीब चार लाख कश्मीरी विस्थापितों और डोडा, रामबन, किश्तवाड़, पुंछ, राजौरी, रियासी और अन्य स्थानों से उजड़े पचास हजार विस्थापितों को आज तक हकदार होते हुए भी कोई राहत मुहैया नहीं कराई गई जबकि इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय ने भी निर्देश दिए थे। मोदी ने युवा खून को भी निराश किया, खासकर राज्य सरकार द्वारा गैरराजपत्रित भर्तियों में रखे गए युवाओं को बहुत थोड़ी तनख्वाह दी जा रही है। अनुच्छेद 370 पर मोदी को उमर अब्दुल्ला के शुभचिंतकों ने समझाया था लेकिन वे फिर भी इसके दुरुपयोग की रिपोर्ट को पेश करने में विफल रहे जबकि भाजपा के पुराने घोषणापत्रों में अनुच्छेद-370 के निरस्त किए जाने की मांग की जाती रही है। यहां तक कि मोदी इस अनुच्छेद में संशोधन के बारे में नहीं बोल सके। अनुच्छेद-370 पर बहस की उन्होंने वकालत की, जो कि नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस तथा साम्यवादी पार्टियों का नारा ही रहा है। मोदी को शायद यह भी नहीं मालूम था कि भारत की संसद को जम्मू-कश्मीर पर कोई कानून बनाने से वंचित किया गया है। स्थायी निवासियों के दज्रे पर कानून की क्षमताओं का अनुच्छेद-370 से कोई लेनादेना नहीं है। स्थायी निवासी की परिभाषा महाराजा द्वारा 1927 में ‘स्टेट सब्जेक्ट‘ के सम्बन्ध में जारी किए गए राज्यादेश से बनाई गई है। महिलाओं के सम्बंध में स्थायी निवासी कानून और गैर-स्थायी निवासी कानून के बीच में क्या सम्बंध है, इन दो कानूनों को समझे बिना मोदी ने टिप्पणी की। 1975 में तत्कालीन राजस्व मंत्री मिर्जा अफजल बेग ने राजस्व मंत्री की हैसियत से एक नियम बनाया था कि जो महिला राज्य के बाहर के किसी गैर-स्थायी निवासी से शादी करेगी तो उसे स्थायी निवासी के अधिकारों से वंचित कर दिया जाएगा। इसका मतलब यह है कि इस मामले में राज्य से बाहर शादी करने वाली महिला अपने नागरिक और राजनीतिक अधिकार खो देगी। इस कानून को अनेक महिलाओं ने चुनौती दी, जिनमें जम्मू-कश्मीर के पूर्व प्रधानमंत्री बख्शी गुलाम मोहम्मद की पुत्री रुबिना बख्शी, पोश चरक, जानीमानी डोगरी कवयित्री पद्मा सचदेव, लद्दाख की आंगमों शानो और कई अन्य स्थायी निवासी बेटियां शामिल थीं। 2001 में जम्मू- कश्मीर उच्च न्यायालय की पूरी बेंच ने सरकार के इस आदेश को रद्द कर दिया और इसे बदनीयती से भरा, पक्षपाती और अधिकारातीत बताया। सर्वोच्च न्यायालय ने तो इस मामले में सुनवाई ही नहीं की। नवम्बर, 2002 में मुफ्ती मोहम्मद सईद के मुख्यमंत्रित्व में एक गठबंधन सरकार बनी। इस सरकार ने उच्च न्यायालय के इस निर्णय के विपरीत कानून लाने की कोशिश की। जम्मू-कश्मीर की विधानसभा ने इस बिल पर बिना बहस और विधायकों को बिना किसी अग्रिम सूचना के ध्वनिमत से पारित कर दिया। जम्मू-कश्मीर विधान परिषद ने इस मामले को कई दिनों तक सुना। सरकार के पास एक मत कम था। इस लेखक (प्रो. भीम सिंह) ने इस विधेयक का समर्थन करने से इनकार कर दिया, तब पैंर्थस पार्टी गठबंधन सरकार में शामिल थी। इसी एक वोट की कमी ने सारा अंतर पैदा कर दिया। मैंने विधान परिषद में अपनी सबसे बड़ी बहस की और विधान परिषद अध्यक्ष अब्दुल राशिद डार ने घोषणा की कि सरकार एक मत से अल्पमत में रह गई है क्योंकि प्रो. भीम सिंह ने इस विधेयक के विरोध में मत किया है। पैंर्थस पार्टी का यह एक ऐतिहासिक निर्णय था, जिसने जम्मू-कश्मीर की महिलाओं के लिए इंसाफ और समानता के सभी द्वार खोल दिए थे। 2002 से ऐसी महिलाओं पर अपनी विरासती जायदाद पर कोई प्रतिबंध नहीं लगा क्योंकि उन्हें शादी करने अथवा शादी न करने पर भी स्थायी निवासी प्रमाणपत्र दिया जाता था। मोदी को इस गलतबयानी से बचना चाहिए था, फिर भी उन्होंने जो कुछ कहा वह सराहना के योग्य है। अनुच्छेद-370 द्वारा संसद की शक्ति पर प्रतिबंध लगाया गया है, जिसे संसद भारतीय संविधान की धारा-368 के हवाले से स्वयं संशोधित कर सकती है। संसद को अधिकार है कि वह जम्मू-कश्मीर के बारे में कानून बना सके, बदल सके, संशोधन कर सके अथवा संविधान के आधारभूत ढांचे में दिए गए प्रावधान को छोड़कर किसी प्रावधान को रद्द भी कर सकती है। रिकॉर्ड पर अनुच्छेद- 370 एक स्थायी प्रावधान है और इसको जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है। अनुच्छेद-370 के अस्थायी प्रावधान पर एक भयंकर भूल नजर आती है, जिसे 1950 में भारत के संविधान में शामिल किया गया था, तब इसका मुख्य उद्देश्य था महाराजा हरि सिंह की राजकीय शक्तियों पर नियंत्रण। 1950 में संविधान सभा ने महाराजा के अधिकार को रद्द नहीं किया था। महाराजा को राजा के रूप में बने रहने दिया गया और इसका उद्देश्य था शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को खुश रखना, जिससे महाराजा के बाद शेख अब्दुल्ला सुल्तान बनने के सपने संजोए रख सकें। अनुच्छेद-370 1952 में निष्फल हो गई, जब जम्मू- कश्मीर विधानसभा ने 20 अगस्त को एक पंक्ति का प्रस्ताव पास करके राजशाही को समाप्त कर दिया। महाराजा की सभी शक्तियां उसी दिन निरस्त हो गई, जब राजशाही से उन्हें अपदस्थ किया गया यानि 1947 में जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय तक। अनुच्छेद 370 को जब सरसरी तौर पर भी पढ़ा जाए तो यह लगता है कि यह महाराजा द्वारा बनाई गई सरकार पर ही लागू होता है। इसमें उल्लेख है कि वह कोई भी कानून तब तक जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं हो सकता, जब तक कि जम्मू-कश्मीर के महाराजा द्वारा बनाई गई जम्मू-कश्मीर की सरकार उसको अनुमोदित नहीं कर देती। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह अनुच्छेद महाराजा की शक्तियों को कम करने के लिए बनाया गया था। जब महाराजा अपदस्थ हो गए तो यह भी स्वत: निष्फल हो गया। यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है कि भाजपा धारा-370 के नाम पर राष्ट्रवादी वर्ग के लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ कर रही है। नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस तो लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ कर ही रही हैं।

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